24 फ़रवरी, 2019

ज़िन्दगी ही है













कहने को तो खेल है,
पर सबके मायने हैं !

कितकित  ... एक पैर पर छोटे से दायरे को
कूद कूदकर पार करना,
कहीं क्षणिक विराम के लिए
दोनों पाँव रखना,
फिर बढ़ना  ... ज़िन्दगी ही है !

रुमाल चोर  ...
मस्तिष्क को जाग्रत रखना,
दृष्टि को गिद्ध दृष्टि बनाना,
पीछे से दौड़ते हुए
कौन कब मुज़रिम बना दे,
कौन जाने !  ... ज़िन्दगी ही है !

लुक्काछुप्पी  ...
किसी का छुप जाना,
किसी की खोज  ... ज़िन्दगी ही है !

रस्सी कूद  ...
बाधाओं को पार करना,
धरती से रिश्ता बनाये रखना  ... ज़िन्दगी ही है !

शतरंज  ...
हर मोहरे का दिन होता है,
सोची-समझी चाल चलने के बाद भी,
बादशाह का घिर जाना,
मात खाना   ... ज़िन्दगी ही है !

लूडो  ...
समयानुसार एक से छः अंकों की ज़रूरत,
आखिरी पड़ाव पर गोटी का कट जाना,
फिर से शुरुआत करना,
... ज़िन्दगी ही है !

पतंग  ...
उड़ान उड़ान उड़ान
माझे की सधी हुई पकड़,
दूसरे से आगे जाने के लिए,
जीत के लिए.
दूसरे की डोर काटना  ... ज़िन्दगी ही है !

कागज़ की नाव बनाना,
पानी में उसे उतारना,
यही संदेश देता है,
लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती  ...
बचपन में खेला गया यह खेल,
... ज़िन्दगी ही है !

रस्साकस्सी, गोली,गोटी, पिट्टो, लट्टू, चोर सिपाही ...
इन सारे मासूम खेलों में
ज़िन्दगी है !!!



21 फ़रवरी, 2019

कहानी जहाँ से शुरू होती है वहीं रहती है




किसी कहानी के पात्र बदले जा सकते हैं,
बदल जाते हैं !,
दिशा बदल सकती है,
पर जो कहानी जहाँ से शुरू होती है,
वहीं रहती है ।
कथा की समाप्ति की घोषणा के बाद भी,
कुछ छिटपुट एहसास
नहीं लिखे गए पन्नों पर
लेते रहते हैं शक्ल !
उसे कितना भी अर्थहीन कह लें,
अर्थहीन होता नहीं है !
- उसका कोई न कोई  प्रयोजन होता है
दीवार बनने या ढह जाने में
आत्मावलोकन में अन्यथा आत्मग्लानि में  !!!

06 फ़रवरी, 2019

एक शून्यात्मक विस्तार



कोई प्यासा मर जाता है, कोई प्यासा जी लेता है,
कोई परे मरण जीवन से कड़वा प्रत्यय पी लेता है ..."
मर जाना कोई पलायन नहीं,
क्षमता की बात है,
जी लेना भी आंतरिक शक्ति है,
पर जो पी लेता है कड़वा प्रत्यय,
उसकी आत्मशक्ति में होता है देवत्व,
विकल्पों का लंबा रास्ता,
किसी भी सत्य-झूठ से अलग
एक "मैं",
जिसकी जड़ें बंजर को भी उर्वरक बनाती हैं,
जो तपते रेगिस्तान के मध्य
बन जाते हैं पानी से भरा बादल का एक टुकड़ा,
जो अपनी अदृश्य पोटली में
लेकर चलते हैं,
सूरज,बादल,बसन्त,पृथ्वी,वायु
और एक शून्यात्मक विस्तार !!!

एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...