29 दिसंबर, 2008

दुआओं के दीप........


आंसुओं की नदी में
मैंने अपने मन को,
अपनी भावनाओं को
पाल संग उतार दिया है.........
आंसुओं के मध्य
जाने कितनी अजनबी आंखों से
मुलाक़ात हो जाती है-
फिर उन लम्हों को पढ़ते हुए
मेरी आँखें
उनके जज्बातों की तिजोरी बन जाती हैं.........
जाने कितनी चाभियाँ
गुच्छे में गूंथी
मेरी कमर में,मेरे साथ चलती हैं.....
और रात होते
मेरे सिरहाने,
मेरे सपनों का हिस्सा बन जाती हैं,
जहाँ मैं हर आंखों के नाम
दुआओं के दीप जलाती हूँ !

23 दिसंबर, 2008

अम्मा के लिए......




मेरी कलम ने अम्मा के नाम लिखा है, पर यह एक आम सोच है..... क्रम जीवन का चलता रहता है , सोच जाने कैसे-कैसे रूप लेती रहती है ! बात उम्र की होती है या परिस्थितियों की........ पता नहीं , पर अपनी-अपनी धुरी पर सबकी
अपनी सोच होती है.........
एक प्रयास है हमारी भावना अम्मा के लिए---------------

हर दिन
एक शब्द तलाश करती हूँ
जो तुम्हे खुशी दे...........
मैं हार जाती हूँ, तुम्हारी निराशा के आगे
निराशा !?!
........ उम्र तो बढती ही जाती है
शरीर थकता ही जाता है
और फिर मुक्ति.....
यह तो शाश्वत क्रम है,
पर वजूद तो पूरी ज़िन्दगी का सार है !
.... अवश शरीर से यह मत सोचो
' अब मेरी क्या ज़रूरत ?'......
तुमने जो किया,
और हम जितने तुम्हारे करीब हैं
वैसा कईयों के हिस्से नहीं आता
....... सिर्फ़ यही महसूस करो
तो सुकून की बारिश से राहत मिलेगी !
माँ,
जिन चूजों को तुमने पंखों की ओट दी थी
उनके पंख भी ओट देते थक चले हैं
उनके पंखों की भाषा भी सीमित हो गई है !
पर उस भाषा में,
उनकी जिम्मेदारियों के मध्य तुम हो
और यह -
उनका गुरुर है ,
विवशता नहीं.....................

18 दिसंबर, 2008

कैसे कहें?


'जो बीत गई,वो बात गई........!'
अगर ऐसा होता रहा
तो पास क्या रह जाएगा !
आज की हर तस्वीर
कल की ही तो परछाईं है !
उसे मिटा दें
तो फिर जज्बातों,संवेदनाओं का क्या होगा !
वे सितारे जो टूटे
और हमने 'विश' माँगा
--उसे भूल जायें?
कैसे?
कैसे कह दें,
जो बीत गई...................

15 दिसंबर, 2008

ताउम्र का साथ !


बहार आए और थम जाए,
ऐसा होता नहीं है
और अगली बहार का इंतज़ार न हो
ये मुमकिन नहीं है .......
ज़िन्दगी को गर जीना है
तो मायूसी का दामन ना पकडो,........
मायूसी में-
खुशियों की आहटें गुम हो जाती हैं,
फिर लंबे समय तक
ये आहटें हमसे रूठ जाती हैं........
जीने के लिए-
दूसरों की खामियां न ढूंढो,
हंसने की ख्वाहिश है
तो अपनी खामियों के दस्तावेज़ खोलो..........
राहें तभी बनती हैं !
गुरुर की अवधि बड़ी छोटी होती है,
दीवारें रिसने में देर नहीं लगती,
संभालो ख़ुद को
खुशियों की आहटों को जानो
उठ जाओ
.....
खुशियों की अवधि कम ही सही
यादें बड़ी गहरी होती हैं,
ताउम्र साथ चलती हैं..........

06 दिसंबर, 2008

अलग-अलग परिणाम !!!


परिस्थितियाँ एक नहीं होतीं,
हादसे एक नहीं होते,
कोई मर जाता है,
कोई जी जाता है,
कोई ज़िन्दगी खींच लेता है !
किसी के हिस्से गंगा आती है
कहीं यमुना
कहीं नाले का गन्दला पानी........
कोई गंगा की लहरों में समा जाता है,
कोई गंदले पानी में कमल बन जाता है !
सुबह की किरणों के संग-
कोई गीत गाता है
कोई रोता है
कोई सूरज से होड़ लगाता है !
बन्धु,
अलग-अलग कैनवास हैं,
भावों के रंग हैं,
आकाश किसके हाथ होगा-
कौन जानता है !

02 दिसंबर, 2008

नए मंज़र की आहटें !


ज़िन्दगी कभी सरल नहीं होती
उसे बनाना पड़ता है
बेरंग लम्हों को
उम्मीद के रंगों से
ज़बरदस्ती भरना पड़ता है !
जिन वारदातों को
हम इन्तहां समझते हैं
- वे नए मंज़र की आहटें होती हैं ......................
निर्माण से पूर्व बहुत कुछ सहना होता है !
ज़िन्दगी अगर आसान ही हो जाए
तो जीने का मज़ा ख़त्म हो जाए !
माथे पर पसीने की बूंदें ना उभरीं
तो नींद का मज़ा क्या !
रोटी,नमक में स्वाद नहीं पाया
तो क्या पाया ?
......
ज़िन्दगी रेगिस्तान में ही रूप लेती है,
पैरों के छाले ही
मंजिलों के द्वार खोलते हैं !

दौड़ जारी है...

 कोई रेस तो है सामने !!! किसके साथ ? क्यों ? कब तक ? - पता नहीं ! पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से बहुत घबराहट होती है ! प्रश्न डराता है,...