30 मार्च, 2019

सबको समय समझाएगा



क्या हुआ
यदि द्रौपदी का चीरहरण हुआ
और सभा बेबस चुप रही ?!
क्या हुआ
यदि सीता वन में भेज दी गईं
उसके बाद क्या हुआ,
यह अयोध्या क्यों सोचती !
प्रश्न उठाया राम ने,
तो पूरी सभा अकुलाई चुप रही
तो क्या हुआ ?
सीता धरती में गईं,
मान लो, होनी तय थी
बहस कैसी !!
क्या हुआ
यदि सोई यशोधरा को छोड़
सिद्धार्थ चले गए ?
राहुल और यशोधरा के पास महल रहा,
स्वादिष्ट भोजन रहा,
समाज ने क्या प्रश्न उठाये होंगे,
इस व्यर्थ बात पर कैसी माथापच्ची
तुम्हारा क्या गया जो तुम रोओ !
कृष्ण गोकुल से चले गए,
मथुरापति बने,
तो तुम्हें किस बात की शिकायत है ?
युग बीत जाने के बाद,
किसी प्रश्न,उत्तर,अनुमान का
क्या औचित्य ?
कोई ग़लत नहीं बंधु,
न हिंसक, ना अहिंसक !
तुम्हारे "हाँ" या "ना" को ही क्यों सुना जाए ?
सबकी अपनी सोच है,
अपने हिस्से की सहमति,असहमति है ।
झूठ बोलना पाप है कहते हुए
हम कितने सारे झूठ बोलते हैं ...
बोलते हैं न ?
और अपनी समझ से वह वक़्त की मांग थी,
तो दूसरे के झूठ पर हाय तौबा क्यों,
उसके आगे भी वक़्त है ही न ?!
तुम्हारी बेबसी बेबसी
दूसरे की बेबसी नाटक,
हद है बंधु, हद है,
शांत हो जाओ,
न प्रश्नों की भरमार से किसी को घेरो
न उत्तर दो,
यकीन रखो
 सबको समय समझाएगा  !!!

26 मार्च, 2019

परिचय

YOUTUBE.COM
जीवन की आपाधापी में मैंने सपनो का मूल्य जाना, और टूटे फूटे शब्दों में उसे अर्थ देने को आतुर हुई। खामोशियों के रेगिस....

24 मार्च, 2019

आसान नहीं मर जाना



कभी कभी स्थितियाँ बड़ी गम्भीर होती हैं,
इतनी कि जीवन की जगह मृत्यु खड़ी होती है,
मृत्यु अर्थात पूरे वजूद में
श्मशान की लपटें होती हैं !
अदृश्य कफ़न में लिपटा शरीर,
बार-बार,
लगातार,
... अपनी चिता खुद बनाता है,
लेकिन,
आत्महत्या नहीं कर पाता !
आसान नहीं होता मर जाना,
साँसों में जिम्मेदारियां होती हैं,
जो आखिरी सांस से पहले पूछ बैठती हैं
"मेरा क्या होगा?"
अनेकों बार यही सवाल
जीने का कारण बनते हैं,
और यही "कारण"
उन रहस्यों के द्वार खोलते हैं,
जिसे हम "अद्भुत ज्ञान" कहते हैं ।
दर्द का मारा ही
सुख के असली मायने बताता है,
बाकी सब
झूठ है,
सिर्फ झूठ,
बस झूठ !!!

13 मार्च, 2019

बरगद होने के बाद तुम समझोगे



जब तुम्हारी आंखें रोने रोने होती हैं,
जब तुम्हारे होठ थरथराते हैं,
मेरे अंदर प्रसव पीड़ा होती है !
मुझमें घृणा,नफ़रत जैसी कोई स्थिति नहीं,
लेकिन मेरे मस्तिष्क में स्थित त्रिनेत्र,
स्वतः,
उन सारी स्थितियों को स्वाहा करने लगता है,
जो तुमको रुलाते हैं,
कमज़ोर बनाते हैं !
तुम समझोगे इस स्थिति को एक दिन,
जब प्रसव पीड़ा जैसी पीड़ा,
तुम्हारे भीतर होगी
और उस दिन "माँ" के शांत चेहरे के पीछे छुपे दावानल का अर्थ
तुम पंक्ति दर पंक्ति समझ लोगे ।
मैं तुम्हारे सत्य के साथ हूँ,
तुम्हारी ख्वाहिशों के तने पर
मेरी दुआएं बंधी हैं,
लेकिन , आँधियों की चेतावनी मैं हमेशा दूँगी,
शायद वह चेतावनी तुम्हें मेरा रौद्र रूप लगे,
पर, जिन यत्नों से
मैंने तुम्हें वृक्ष बनाया है,
उतनी ही जतन से,
तुम्हारे अस्तित्व से
पक्षियों का कलरव नहीं जाने दूँगी,
मैं तुम्हारी जड़ों में
दीमक नहीं लगने दूँगी
..
बरगद होने के बाद
तुम समझोगे प्रकृति और माँ को :)

10 मार्च, 2019

मत करो नारी की व्याख्या


मत करो नारी की व्याख्या,
वह अनन्त है,
विस्तार है,
गीता सार है ...
शिव की जटा माध्यम बनती है,
तब जाकर वह पृथ्वी पर उतरती है ।
पाप का घड़ा भर जाए,
तो सिमट जाती है,
शनैः शनैः विलुप्त सी हो जाती है ।
सावधान,
वह विलुप्त दिखाई देती है,
होती नहीं,
कब,किस शक्ल में
वह अवतरित होगी,
जब तक समझोगे,
विनाश मुँह खोले खड़ा होगा,
और तुम !!!
तब भी इसी प्रश्न में उलझे रहोगे,
ऐसा क्यों हुआ ??!!
जवाब देने का साहस रखो
तो यह भी तय है
कि गंगा सदृश्य स्त्री
क्षमारूपिणी होगी,
मातृरूपेण होगी ।
शांत भाव लिए
हो जाएगी-
अन्नपूर्णा,सरस्वती,लक्ष्मी
तुलसी बन घर-आँगन को,
सुवासित करेगी ...
दम्भयुक्त उसकी व्याख्या मत करो,
वह हाथ नहीं आएगी,
रहस्यमई सी,
ऋतुओं के रहस्य रंगों में घुल जाएगी,
तुम जबतक उसे पहचानोगे,
वह बदल जाएगी ।

08 मार्च, 2019

उदाहरण यूँ ही तो नहीं स्त्रियाँ




युगों से स्त्रियों की छाप है, वे कभी कमज़ोर नहीं थीं, 
बस अत्यधिक स्वामिभक्ति में अहिल्या हुईं 
प्रेम में पारो बनी 
उन्होंने खुद ही अपनी पहचान मिटा दी ! और जब पहचान मिट जाए तब कौन किसे पूछता है !

प्रेम,ख्याल,रसोई की  खुशबू में ढली स्त्री गलत नहीं थी, दरअसल वह घर की नींव थी  ... परन्तु दिनभर फिरकनी की तरह खटती स्त्री ने जाने कब खुद को रोटी का मोहताज मान लिया, और अपने को बेड़ियों में जकड़ दिया।  निर्भय हो त्रिलोक की परिक्रमा करने की क्षमता रखनेवाली, भयभीत होने लगी - कहाँ जाऊँगी, क्या करुँगी !!!
फिर - वह परित्यक्ता हुई, जला दी गई, गर्भ में ही मरने लगी, सरेराह सरेआम दरिंदगी का शिकार होने लगी !
क्या सच में यही नियति है एक स्त्री की अर्थात, एक माँ , एक बहन, एक पत्नी , एक अस्तित्व की  ?  ....... नहीं, बिल्कुल नहीं !!
स्त्री दुआओं का धागा है, मन्नतों की सीढ़ियाँ है,  ... मान्यताओं पर जाएँ तो दुर्गा,लक्ष्मी, पार्वती है 
निःसंदेह, ताड़का,मंथरा, होलिका,शूर्पणखा भी है 
ठीक उसी तरह जिस तरह, ब्रह्मा,विष्णु,महेश हैं 
तो कंस, रावण, दुःशासन, हिरण्यकश्यप भी है  .... 
फिर भी पुत्र को घी का लड़डू माना जाए, और माखन बनानेवाली यशोदा को अर्थहीन माना जाए - सही नहीं। 

लेकिन यह अंतर् हुआ क्यूँ ? 

स्त्रियाँ तो हमेशा से मेधावी थीं, शारीरिक,मानसिक रूप से अलौकिक - साम,दाम,दंड, भेद का रहस्य उन्हें भी पता था, धरती को नापने की क्षमता उनके पास भी थी  ...  पहले तो दसवीं पास लड़कियाँ विलक्षण होती थीं, स्नातक होना तो स्वर्ण पदक होने सा था।  
फिर अचानक, इस शोर का क्या अर्थ ? - बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, उन्हें आत्मनिर्भर बनाओ  .... ! यह गुहार किससे ? अपनेआप से ? सीता का उदाहरण देते न थकनेवाले पूर्वज क्यूँ उनकी अग्नि परीक्षा लेने लगे ? उसे घूरे में फेंकने लगे ? उसे आत्मनिर्भर बनाकर उसके पैसे का हिसाब किताब करने लगे ?  ... क्या यह बेटियों का दोष था ? - नहीं न ? फिर जिनका दोष हुआ, उन्हें फेंकिए, भरे बाजार में हिम्मत हो तो उनकी अग्नि परीक्षा लीजिये, अपनी रोटियों का मूल्य लेनेवालों को मूल्य देना सिखाइये और जरा पीछे की ओर दृष्टि घुमाइए - स्त्रियाँ प्राचीनकाल से उदाहरण थीं !

मीरा बाई जन्म: 1498, मृत्यु: 1547 एक मध्यकालीन हिन्दू आध्यात्मिक कवियित्री और कृष्ण भक्त थीं। वे भक्ति आन्दोलन के सबसे लोकप्रिय भक्ति-संतों में एक थीं। भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित उनके भजन आज भी उत्तर भारत में बहुत लोकप्रिय हैं और श्रद्धा के साथ गाये जाते हैं। मीरा का जन्म राजस्थान के एक राजघराने में हुआ था। मीरा बाई के जीवन के बारे में तमाम पौराणिक कथाएँ और किवदंतियां प्रचलित हैं। ये सभी किवदंतियां मीराबाई के बहादुरी की कहानियां कहती हैं और उनके कृष्ण प्रेम और भक्ति को दर्शाती हैं। इनके माध्यम से यह भी पता चलता है की किस प्रकार से मीराबाई ने सामाजिक और पारिवारिक दस्तूरों का बहादुरी से मुकाबला किया और कृष्ण को अपना पति मानकर उनकी भक्ति में लीन हो गयीं। उनके ससुराल पक्ष ने उनकी कृष्ण भक्ति को राजघराने के अनुकूल नहीं माना और समय-समय पर उनपर अत्याचार किये।
मीरा का विवाह राणा सांगा के पुत्र और मेवाड़ के राजकुमार भोज राज के साथ सन 1516 में संपन्न हुआ। उनके पति भोज राज दिल्ली सल्तनत के शाशकों के साथ एक संघर्ष में सन 1518 में घायल हो गए और इसी कारण सन 1521 में उनकी मृत्यु हो गयी। उनके पति के मृत्यु के कुछ वर्षों के अन्दर ही उनके पिता और श्वसुर भी मुग़ल साम्राज्य के संस्थापक बाबर के साथ युद्ध में मारे गए।
ऐसा कहा जाता है कि उस समय की प्रचलित प्रथा के अनुसार पति की मृत्यु के बाद मीरा को उनके पति के साथ सती करने का प्रयास किया गया किन्तु वे इसके लिए तैयार नही हुईं और धीरे-धीरे वे संसार से विरक्त हो गयीं और साधु-संतों की संगति में कीर्तन करते हुए अपना समय व्यतीत करने लगीं।



सरोजिनी नायडू , जन्म- 13 फ़रवरी, 1879, हैदराबाद; मृत्यु- 2 मार्च, 1949, इलाहाबाद) सुप्रसिद्ध कवयित्री और भारत देश के सर्वोत्तम राष्ट्रीय नेताओं में से एक थीं। वह भारत के स्वाधीनता संग्राम में सदैव आगे रहीं। 

'श्रम करते हैं हम
कि समुद्र हो तुम्हारी जागृति का क्षण 
हो चुका जागरण 
अब देखो, निकला दिन कितना उज्ज्वल।'

ये पंक्तियाँ सरोजिनी नायडू की एक कविता से है, जो उन्होंने अपनी मातृभूमि को सम्बोधित करते हुए लिखी थी।

सरोजिनी नायडु पहली भारतीय महिला कॉग्रेस अध्यक्ष और ‘भारत की कोकिला’ - इस विशेष नाम से पहचानी जाती है, क्योंकि इन्होंने एक राष्ट्रिय नेता के रूप में भाग लेने के साथ-साथ काव्य के क्षेत्र में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। 
१९४७ में स्वतंत्र भारत में के उत्तर प्रदेश के पहली राज्यपाल के रूप में उन्हें चुना गया।

महादेवी वर्मा (26 मार्च, 1907 – 11 सितंबर, 1987) हिन्दी की सर्वाधिक प्रतिभावान कवयित्रियों में से हैं। वे हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक मानी जाती हैं।आधुनिक हिन्दी की सबसे सशक्त कवयित्रियों में से एक होने के कारण उन्हें आधुनिक मीरा के नाम से भी जाना जाता है। कवि निराला ने उन्हें “हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती” भी कहा है। महादेवी ने स्वतंत्रता के पहले का भारत भी देखा और उसके बाद का भी। वे उन कवियों में से एक हैं जिन्होंने व्यापक समाज में काम करते हुए भारत के भीतर विद्यमान हाहाकार, रुदन को देखा, परखा और करुण होकर अन्धकार को दूर करने वाली दृष्टि देने की कोशिश की। न केवल उनका काव्य बल्कि उनके सामाजसुधार के कार्य और महिलाओं के प्रति चेतना भावना भी इस दृष्टि से प्रभावित रहे। उन्होंने मन की पीड़ा को इतने स्नेह और शृंगार से सजाया कि दीपशिखा में वह जन जन की पीड़ा के रूप में स्थापित हुई और उसने केवल पाठकों को ही नहीं समीक्षकों को भी गहराई तक प्रभावित किया।
उन्होंने खड़ी बोली हिन्दी की कविता में उस कोमल शब्दावली का विकास किया जो अभी तक केवल बृजभाषा में ही संभव मानी जाती थी। इसके लिए उन्होंने अपने समय के अनुकूल संस्कृत और बांग्ला के कोमल शब्दों को चुनकर हिन्दी का जामा पहनाया। संगीत की जानकार होने के कारण उनके गीतों का नाद-सौंदर्य और पैनी उक्तियों की व्यंजना शैली अन्यत्र दुर्लभ है। उन्होंने अध्यापन से अपने कार्यजीवन की शुरूआत की और अंतिम समय तक वे प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्या बनी रहीं। उनका बाल-विवाह हुआ परंतु उन्होंने अविवाहित की भांति जीवन-यापन किया। प्रतिभावान कवयित्री और गद्य लेखिका महादेवी वर्मा साहित्य और संगीत में निपुण होने के साथ साथ कुशल चित्रकार और सृजनात्मक अनुवादक भी थीं। उन्हें हिन्दी साहित्य के सभी महत्त्वपूर्ण पुरस्कार प्राप्त करने का गौरव प्राप्त है। भारत के साहित्य आकाश में महादेवी वर्मा का नाम ध्रुव तारे की भांति प्रकाशमान है। गत शताब्दी की सर्वाधिक लोकप्रिय महिला साहित्यकार के रूप में वे जीवन भर पूजनीय बनी रहीं। 

अमृता प्रीतम  जन्म: 31 अगस्त, 1919, पंजाब (पाकिस्तान); मृत्यु: 31 अक्टूबर, 2005 दिल्ली) प्रसिद्ध कवयित्री, उपन्यासकार और निबंधकार थीं, जिन्हें 20वीं सदी की पंजाबी भाषा की सर्वश्रेष्ठ कवयित्री माना जाता है। इनकी लोकप्रियता सीमा पार पाकिस्तान में भी बराबर है। इन्होंने पंजाबी जगत् में छ: दशकों तक राज किया। अमृता प्रीतम ने कुल मिलाकर लगभग 100 पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें उनकी चर्चित आत्मकथा 'रसीदी टिकट' भी शामिल है। अमृता प्रीतम उन साहित्यकारों में थीं, जिनकी कृतियों का अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ। अपने अंतिम दिनों में अमृता प्रीतम को भारत का दूसरा सबसे बड़ा सम्मान 'पद्म विभूषण' भी प्राप्त हुआ। उन्हें 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' से पहले ही अलंकृत किया जा चुका था।
अमृता एक दौर में आजाद ख्याल लड़कियों का रोल मॉडल रही हैं 


मैत्रेयी पुष्पा जन्म- 30 नवम्बर, 1944, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश) हिंदी की प्रसिद्ध साहित्यकार हैं। उन्हें हिन्दी अकादमी, दिल्ली की उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया है। मैत्रेयी पुष्पा ने अपनी लेखनी में ग्रामीण भारत को साकार किया है। उनके लेखन में ब्रज और बुंदेल दोनों संस्कृतियों की झलक दिखाई देती है। मैत्रेयी पुष्पा को रांगेय राघव और फणीश्वर नाथ 'रेणु' की श्रेणी की रचनाकार माना जाता है।

सरोजनी प्रीतम हिन्दी साहित्य की आधुनिक महिला साहित्यकार और लेखक हैं। व्‍यंग्य से हिन्दी साहित्य जगत को समृद्ध करने वाली सरोजनी जी 'हंसिकाएँ' नाम की एक नई विधा की जन्मदात्री हैं। उन्हें नारी वेदना की सजीव अभिव्यक्ति के लिए विशेष तौर पर जाना जाता है। हिन्दी साहित्य की अध्येता रहीं सरोजनी प्रीतम ने पहली रचना महज मात्र 11 साल की उम्र में प्रकृति को कथ्य मानकर लिखी थी। उनके लेखन में गद्य एवं पद्य दोनों में समान अधिकार से व्यंग्य एवं वेदना व्यक्त हुई है। सरोजनी जी ने अपनी 'हंसिकाओं' से दुनिया भर के श्रोताओं को प्रभावित किया है। उनकी हंसिकाओं का अनुवाद नेपाली, गुजराती, सिंधी और पंजाबी सहित कई भारतीय भाषाओं में हो चुका है।

रानी लक्ष्मीबाई (जन्म: 19 नवम्बर 1835 – मृत्यु: 18 जून 1858) मराठा शासित झाँसी राज्य की रानी और 1857 के प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की वीरांगना थीं। उन्होंने मात्र 23 वर्ष की आयु में अंग्रेज़ साम्राज्य की सेना से संग्राम किया और रणक्षेत्र में वीरगति प्राप्त की किन्तु जीते जी अंग्रेजों को अपनी झाँसी पर कब्जा नहीं करने दिया।

राजकुमारी यशोधरा (563 ईसा पूर्व - 483 ईसा पूर्व) राजा सुप्पबुद्ध और उनकी पत्नी पमिता की पुत्री थीं। यशोधरा की माता- पमिता राजा शुद्धोदन की बहन थीं। १६ वर्ष की आयु में यशोधरा का विवाह राजा शुद्धोधन के पुत्र सिद्धार्थ गौतम के साथ हुआ। बाद में सिद्धार्थ गौतम संन्यासी हुए और गौतम बुद्ध के नाम से प्रसिद्ध हुए। यशोधरा ने २९ वर्ष की आयु में एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम राहुल था। अपने पति गौतम बुद्ध के संन्यासी हो जाने के बाद यशोधरा ने अपने बेटे का पालन पोषण करते हुए एक संत का जीवन अपना लिया। उन्होंने मूल्यवान वस्त्राभूषण का त्याग कर दिया। पीला वस्त्र पहना और दिन में एक बार भोजन किया। जब उनके पुत्र राहुल ने भी संन्यास अपनाया तब वे भी संन्यासिनि हो गईं। उनका देहावसान ७८ वर्ष की आयु में गौतम बुद्ध के निर्वाण से २ वर्ष पहले हुआ।
यशोधरा के जीवन पर आधारित बहुत सी रचनाएँ हुई हैं, जिनमें मैथिलीशरण गुप्त की रचना यशोधरा (काव्य) बहुत प्रसिद्ध है।

सीता रामायण और रामकथा पर आधारित अन्य रामायण ग्रंथ, जैसे रामचरितमानस, की मुख्य पात्र है। सीता मिथिला के राजा जनक की ज्येष्ठ पुत्री थी। इनका विवाह अयोध्या के राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र राम से स्वयंवर में शिवधनुष को भंग करने के उपरांत हुआ था। इनकी स्त्री व पतिव्रता धर्म के कारण इनका नाम आदर से लिया जाता है| त्रेतायुग में इन्हे सौभाग्य की देवी लक्ष्मी का अवतार मानते है।

द्रौपदी महाभारत के सबसे प्रसिद्ध पात्रों में से एक है। इस महाकाव्य के अनुसार द्रौपदी पांचाल देश के राजा द्रुपद की पुत्री है जो बाद में पांचों पाण्डवों की पत्नी बनी। द्रौपदी पंच-कन्याओं में से एक हैं जिन्हें चिर-कुमारी कहा जाता है। ये कृष्णा, यज्ञसेनी, महाभारती, सैरंध्री अदि अन्य नामो से भी विख्यात है।द्रौपदी का विवाह पाँचों पाण्डव भाईयों से हुआ था। पांडवों द्वारा इनसे जन्मे पांच पुत्र (क्रमशः प्रतिविंध्य, सुतसोम, श्रुतकीर्ती, शतानीक व श्रुतकर्मा) उप-पांडव नाम से विख्यात थे।


इन्दिरा प्रियदर्शिनी गाँधी  (19 नवंबर 1917-31 अक्टूबर 1984) वर्ष 1966 से 1977 तक लगातार 3 पारी के लिए भारत गणराज्य की प्रधानमन्त्री रहीं और उसके बाद चौथी पारी में 1980 से लेकर 1984 में उनकी राजनैतिक हत्या तक भारत की प्रधानमंत्री रहीं। वे भारत की प्रथम और अब तक एकमात्र महिला प्रधानमंत्री रहीं।

मेनका गांधी (२६ अगस्त १९५६ --) भारत की प्रसिद्ध राजनेत्री एवं पशु-अधिकारवादी हैं। पूर्व में वे पत्रकार भी रह चुकी हैं। किन्तु भारत की महिला प्रधान मंत्री इन्दिरा गांधी के छोटे पुत्र स्व॰ संजय गांधी की पत्नी के रूप में वे अधिक विख्यात हैं। उन्होने अनेकों पुस्तकों की रचना की है तथा उनके लेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रायः आते रहते हैं। वे वर्तमान में भारत की महिला एवं बाल विकास मंत्री हैं।

पी. टी. उषा पूरा नाम पिलावुळ्ळकण्टि तेक्केपरम्पिल् उषा) भारत के केरल राज्य की खिलाड़ी हैं। 1976 में केरल राज्य सरकार ने महिलाओं के लिए एक खेल विद्यालय खोला और उषा को अपने ज़िले का प्रतिनिधि चुना गया। भारतीय ट्रैक ऍण्ड फ़ील्ड की रानी माने जानी वाली पी. टी. उषा भारतीय खेलकूद में 1979 से हैं। वे भारत के अब तक के सबसे अच्छे खिलाड़ियों में से हैं। नवें दशक में जो सफलताएँ और ख्याति पी. टी. उषा ने प्राप्त की हैं वे उनसे पूर्व कोई भी भारतीय महिला एथलीट नहीं प्राप्त कर सकी। वर्तमान में वे एशिया की सर्वश्रेष्ठ महिला एथलीट मानी जाती हैं। पी. टी. उषा को उड़न परी भी कहा जाता है।

सुधा चन्द्रन 

सुधा चन्द्रन हिन्दी फ़िल्मों की एक अभिनेत्री हैं।मशहूर भरतनाट्यम नृत्यांगना और अभिनेत्री सुधा चंद्रन ने अपनी सफलता की गाथा एक पैर से लिखी है।1981 में एक हादसे के बाद 16 साल की उम्र में उनका दाहिना पैर काटना पड़ा था, तब भी उन्होंने हौसला नहीं खोया। जयपुर फुट के कृत्रिम पैर के सहारे उन्होंने दोबारा भरतनाट्यम किया । उनके नृत्य को देखकर किसी को अहसास नहीं हुआ कि उनका एक पैर कृत्रिम है।


मैत्रेयी, शकुंतला, सीता, अनुसूया, दमयंती, सावित्री, गार्गी आदि स्त्रियाँ ज्वलंत उदाहरण हैं। 

हिंदी फ़िल्मी क्षेत्र में भी कई प्रतिष्ठित नाम हैं - 

नरगिस दत्त, मीनाकुमारी, नूतन, वहीदा रेहमान, शर्मिला टैगोर, हेमामालिनी, जया बच्चन, सुष्मिता सेन, ऐश्वर्या रॉय, शबाना आज़मी, स्मिता पाटिल,  ... जिन्होंने अपने सशक्त पदचिन्ह बनाये हैं। 
उदाहरण हैं वे अलिखित स्त्रियाँ जो समयानुसार दुर्गा, अन्नपूर्णा, बन, मातृत्व के कर्तव्यों को निभाती हैं और समय की मांग पर अंगारों पर दौड़ जाती हैं। 

इन उद्धृत नामों से इतर स्त्रियाँ स्वयं अपने अंदर झांककर देखें, - वह कौन सा प्रकाश है, जो उनके भीतर नहीं ? और दिल पर हाथ रखकर कहिये, 
क्या आप उदाहरण नहीं ?

02 मार्च, 2019

साथ की अहमियत



जब तुम
तुम्हारा मन
तुम्हारा दिमाग
झंझावातों के मध्य रास्ता ढूंढता है,
जब तुम्हारी ही ज़रूरत सबको होती है,
तो धरती का ज़र्रा ज़र्रा तुम्हारे साथ होता है,
उस रास्ते के व्यवधान को
मिटाने की दुआएं लिए,
एक संवेदनशील वर्ग होता है,
तुम पर कोई आंच न आये,
इसके लिए जो साम दाम दंड भेद का
मार्ग अपनाता है,
उसे तुम कभी अनदेखा,
अनसुना मत करो ।
क्रिकेट का मैच हो
या ज़िन्दगी का मैच,
उस समय खिलाड़ी ही उतरता है मैदान में
और उसकी जीत
हमारी जीत होती है,
उसकी हार,
हमारी हार ...!
कोई और बल्ला नहीं उठाता,
ना ही कैच लेता है,
लेकिन थरथराती साँसों के संग
सब उसी पर नज़रें टिकाए रहते हैं ।
कुछ भी कहनेवाला
न कभी सही था,
ना होगा
पर साथ चलनेवाला
हमेशा सही होता है ।

दौड़ जारी है...

 कोई रेस तो है सामने !!! किसके साथ ? क्यों ? कब तक ? - पता नहीं ! पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से बहुत घबराहट होती है ! प्रश्न डराता है,...