05 सितंबर, 2022

अकेलापन !!!




कुछ भी कह लो
सफाई देने में
भले ही साम दाम दंड भेद अपना लो
पर्व, त्योहार,
एवं किसी के आने पर
खाने की जिस खुशबू से
घर मह मह करता था,
खुशियों की खिलखिलाती पायल बजती थी,
वह अब गुम है
_ बिल्कुल उस गौरेये की तरह
जो आंगन में उतरकर राग सुनाती थी !
घर-परिवार यानी सारे रिश्ते
साथ होते थे ...
तो हर लड़ाई, बहस के बावजूद
रिश्ता,
रिश्तों की जिम्मेदारी बनी रहती थी !
अब तो सबके अपने फ्लैट हैं,
अपनी लीक से हटकर पसंद है
एक दूसरे के लिए समय की कमी है
उपेक्षा है, अवहेलना है
चेहरे पर निगाह डालने से परहेज है !!
और इसमें कमाल की बात यह है
कि सबको अकेलेपन की शिकायत है
और इसलिए सबसे शिकायत है ।
अपनी अदालत है,
अपनी सुनवाई है
तो फैसला अपने हक में ही रहता है
साइड इफेक्ट में
कोई न कोई बीमारी है
खीझ है
सारे मसालों के बावजूद
कहीं कोई स्वाद नहीं है,
अगर कभी स्वाद मिल जाए
तो दंभ की अग्नि जलाने लगती है
...
सारांश _ !!!
निरर्थक घर,
तथाकथित सुख सुविधाओं के सामान
और ...... अकेलापन !!!

जो गरजते हैं वे बरसते नहीं

 कितनी आसानी से हम कहते हैं  कि जो गरजते हैं वे बरसते नहीं ..." बिना बरसे ये बादल  अपने मन में उमड़ते घुमड़ते भावों को लेकर  आखिर कहां!...