पुरुष ने स्त्री को देवदासी बनाया,
अपनी संपत्ति मान ली
फिर घर में रहने वाले
उसे उपेक्षित नज़रों से देखने लगे ... !!!
पुरुष ने स्त्री के पैरों में पाज़ेब की जगह
घुंघरू पहनाए,
उन घुंघरुओं की झंकार सुनने की खातिर,
थके मन की थकान दूर करने के लिए
उसके घर की सीढ़ियां चढ़ने लगे
और अपने घर की स्त्रियों से कहा
- दूर रहना उनसे,
वे भले घर की स्त्रियां नहीं हैं ...!!!
पुरुष ने अपने घर की स्त्रियों से कहा,
घर तुम्हारा है,
कर्तव्य तुम्हारे हैं
आंगन तुम्हारा है ...
दालान या दहलीज तक आने की जरूरत नहीं है !
स्त्रियों का दम घुटने लगा,
कुछ सवालों ने सर उठाया
तब मासूम पुरुष ने झल्लाकर हाथ उठा दिया,
चीखने लगा -
ज़ुबान चलाती स्त्रियां भली नहीं होतीं,
रोटी मिलती है,
महीने का खर्चा मिलता है
मेरे नाम की पहचान मिली है
और क्या चाहिए भला ???!!!
स्त्रियों ने बेबसी से देवदासियों को देखा,
तमकती, गरजती विधवाओं को देखा,
घुंघरू झनकाती निर्लज्ज औरतों को देखा
और आरंभ हुआ - देवी का आना,
दालान से दहलीज तक उसका निकलना,
झंझावात में उलझी मानसिक स्थिति से जूझना
आर्थिक रूप से समर्थ होना
और अपनी पहचान की रेखा खींच कर
पुरुष को आगाह करना
कि दूर रहना अब अपनी चालाकियों से
और याद रखना
- कि हम नासमझ नहीं रहे !
किसी रोज़ जो तुम्हारी चाल पर उतर आए
तो संभल नहीं पाओगे !!!
रश्मि प्रभा