जो रिश्ता रिश्तों के नाम पर
एक धारदार चाकू रहा,
उसे समाज के नाम पर
रिश्तों का हवाला देकर खून बहाने का हक दिया जाए
अपशब्दों को भुलाकर क्षमा किया जाए,
कुरुक्षेत्र की अग्नि में घी डाला जाए _ क्यों ?
यह कैसी अच्छाई है !!!
क्या शकुनी बदल जाएगा
धृतराष्ट्र की महत्त्वाकांक्षा बदल जाएगी
गांधारी अपनी आँखों की पट्टी खोल देंगी
फिर द्युत क्रीड़ा नहीं होगी
द्रौपदी के चीरहरण के मायने बदल जाएंगे
अभिमन्यु जीवित हो जाएगा ...
इस बेतुकी सीख का अर्थ क्या है ?
अगर सम्मान नहीं है एक दूसरे के लिए
आँख उठाकर देखने की भी इच्छा नहीं
तो किसी तीसरे की यह सीख
कि भूल जाइए
क्षमा कर दीजिए
आप ही बड़प्पन निभा दीजिए... आग में घी ही है !
सूक्ति बोलनेवाले को अपना वर्चस्व दिखाना है
वरना सोचनेवाली बात है
कि कोई महाभारत को भुलाकर
चलने की सलाह कैसे दे सकता है !
यूँ भी किसी रिश्ते की बुनियाद समझ है,
स्नेह है
सम्मान है ...
क्षमा के लिए,
कुछ भूलकर चलने के लिए,
-इसी बुनियाद की जरूरत है !
रश्मि प्रभा