17 सितंबर, 2024

अन्याय कब नहीं था ?

 अन्याय कब नहीं था ?

मुंह पर ताले कब नहीं थे ?

हादसों का रुप कब नहीं बदला गया ?!!!

तब तो किसी ने इतना ज्ञान नहीं दिखाया !

और आज 

सिर्फ़ ज्ञान ही ज्ञान दिखा रहे हैं ।

सड़क पर इन ज्ञानियों में से कोई नहीं उतरता है !

ये बस एक बाज़ी खेलते हैं,

सरकार की !!

किसका बेटा,

किसकी बेटी ... इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ता इनको !

यह वह समूह है,

जो व्यक्ति विशेष को 

गाली देने के लिए बैठा है ...

उससे ऊपर कुछ है ही नहीं ।


अरे क्या सवाल पूछते हो तुम भी ???

"अपनी बेटी,बहन होती तो ?"

तो क्या ?

क्या कर लेंगे ये ?

ये बस फुफकारेंगे,

वर्ना इनका दिल भी जानता है 

कि इनको कोई फ़र्क नहीं पड़ा था

जब अपनी बहन, बेटी थी ।

इन्हें फ़र्क पड़ा बताने से !

इन्होंने उनको चुप करवा दिया,

और खुद भी 

अपनी अनदेखी इज्ज़त बचाने में 

मूक रहे ।

व्यथा को कभी शब्द दिए ही नहीं,

कभी गले लगाकर अपनी बहन, बेटी से पूछा तक नहीं,

कि तुमने अपने भय पर काबू कैसे किया !!!

उनको बिलखकर रोने की इजाज़त भी नहीं दी !

और मर्म की बात करते हैं !!!...


रश्मि प्रभा

2 टिप्‍पणियां:

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 कितनी आसानी से हम कहते हैं  कि जो गरजते हैं वे बरसते नहीं ..." बिना बरसे ये बादल  अपने मन में उमड़ते घुमड़ते भावों को लेकर  आखिर कहां!...