कस्तूरी मृग बन मैंने ज़िन्दगी गुजारी
प्रभु तुम तो मेरे अन्दर ही सुवासित रहे !
मैं आरती की थाल लिए
व्यर्थ खड़ी रही
प्रभु तुम तो मेरे सुकून से आह्लादित रहे !
मेरे दुःख के क्षणों में
तुमने सारी दुनिया का भोग अस्वीकार किया,
तुम निराहार मेरी राह बनाने में लगे रहे
और मैं !
भ्रम पालती रही कि -
आख़िर मैंने राह बना ली !
मैं दौड़ लगाती रही,
दीये जलाती रही
- तुम मेरे पैरों की गति में,
बाती बनाती उँगलियों में स्थित रहे !
जब-जब अँधेरा छाया
प्रभु तुम मेरी आंखों में
आस-विश्वास बनकर ढल गए
और नई सुबह की प्रत्याशा लिए
गहरी वेदना में भी
मैं सो गई -
प्रभु लोरी बनकर तुम झंकृत होते रहे !
प्रभु तुम तो मेरे अन्दर ही सुवासित रहे !
मैं आरती की थाल लिए
व्यर्थ खड़ी रही
प्रभु तुम तो मेरे सुकून से आह्लादित रहे !
मेरे दुःख के क्षणों में
तुमने सारी दुनिया का भोग अस्वीकार किया,
तुम निराहार मेरी राह बनाने में लगे रहे
और मैं !
भ्रम पालती रही कि -
आख़िर मैंने राह बना ली !
मैं दौड़ लगाती रही,
दीये जलाती रही
- तुम मेरे पैरों की गति में,
बाती बनाती उँगलियों में स्थित रहे !
जब-जब अँधेरा छाया
प्रभु तुम मेरी आंखों में
आस-विश्वास बनकर ढल गए
और नई सुबह की प्रत्याशा लिए
गहरी वेदना में भी
मैं सो गई -
प्रभु लोरी बनकर तुम झंकृत होते रहे !
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प्रभु तुमने सुदामा की तरह मुझे अनुग्रहित किया
मुझे मेरे कस्तूरी मन की पहचान दे दी !
प्रभु तुमने सुदामा की तरह मुझे अनुग्रहित किया
मुझे मेरे कस्तूरी मन की पहचान दे दी !