30 जनवरी, 2009

कवि सुमित्रानंदन पन्त से एक मुलाकात अबोध मन की............


आज मैं आपको प्रकृति कवि सुमित्रानंदन पन्त जी से मिलवाने समय के उस बिन्दू पर ले चलती हूँ,जहाँ मुझे नहीं पता था कि वे कौन हैं ,उनकी महत्ता क्या है !
नन्हा बचपन,नन्हे पैर,नन्ही तिलस्मी उड़ान सपनों की और नन्ही-नन्ही शैतानियाँ- उम्र के इसी अबोध,मासूमियत भरे दिनों में मैं अपने परिवार के साथ इलाहाबाद गई थी। मेरे पापा,मेरी अम्मा, हम पाँच भाई-बहन -छोटे भाई के फूल संगम में प्रवाहित करने गए थे। उम्र को मौत के मायने नहीं मालूम थे, बस इतना पता था कि वह नहीं है - फूल,संगम .... अर्थ से बहुत परे थे।
आंसुओं में डूबे दर्द के कुछ टुकड़े मेरे पापा,मेरी अम्मा ने संगम को समर्पित किया, पानी की लहरों के साथ लौटती यादों को समेटा और लौट चले वहां , जहाँ हम ठहरे थे। हाँ , संगम का पानी और माँ की आंखों से गिरते टप-टप आंसू याद हैं। और याद है कि हम कवि पन्त के घर गए (जो स्पेनली रोड पर था)। माँ उन्हें 'पिता जी' कहती थीं,कवि ने उनको अपनी पुत्री का दर्जा दिया था, और वे हमारे घर की प्रकृति में सुवासित थे, बाकी मैं अनजान थी।
उस उम्र में भी सौंदर्य और विनम्रता का एक आकर्षण था, शायद इसलिए कि वह हमारे घर की परम्परा में था।
जब हम उनके घर पहुंचे, माथे पर लट गिराए जो व्यक्ति निकला.....उनके बाल मुझे बहुत अच्छे लगे,बिल्कुल रेशम की तरह - मैं बार-बार उनकी कुर्सी के पीछे जाती.....एक बार बाल को छू लेने की ख्वाहिश थी। पर जब भी पीछे जाती, वे मुड़कर हँसते..... और इस तरह मेरी हसरत दिल में ही रह गई।
उनके साथ उनकी बहन 'शांता जोशी' थीं, जो हमारे लिए कुछ बनाने में व्यस्त थीं । मेरे लिए मीठा,नमकीन का लोभ था, सो उनके इर्द-गिर्द मंडराती मैंने न जाने कितनी छोटी-छोटी बेकार की कवितायें उन्हें सुनाईं.....कितना सुनीं,कितनी उबन हुई- पता नहीं, बस रिकॉर्ड-प्लेयर की तरह बजती गई ।
दीदी,भैया ने एक जुगलबंदी बनाई थी -
'सुमित्रानंदन पन्त
जिनके खाने का न अंत', .... मैं फख्र से यह भी सुनानेवाली ही थी कि दीदी,भैया ने आँख दिखाया और मैं बड़ी मायूसी लिए चुप हो गई !
फिर पन्त जी ने अपनी कवितायें गाकर सुनाईं, माँ और दीदी ने भी सुनाया..... मैं कब पीछे रहती -सुनाया,'नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए....'
उसके बाद मैंने सौन्दर्य प्रिय कवि के समक्ष अपने जिज्ञासु प्रश्न रखे - ' नाना जी, पापा हैं तो अम्मा हैं, मामा हैं तो मामी , दादा हैं तो दादी......फिर यहाँ नानी कहाँ हैं?'प्रकृति कवि किसी शून्य में डूब गए, अम्मा, पापा सकपकाए , मैं निडर उत्तर की प्रतीक्षा में थी (बचपन में माँ,पिता की उपस्थिति में किसी से डर भी नहीं लगता)। कुछ देर की खामोशी के बाद कवि ने कहा ,'बेटे, तुमने तो मुझे निरुत्तर कर दिया,इस प्रश्न का जवाब मेरे पास नहीं....' क्या था इन बातों का अर्थ, इससे अनजान मैं अति प्रसन्न थी कि मैंने उनको निरुत्तर कर दिया, यानि हरा दिया।
इसके बाद सुकुमार कवि ने सबका पूरा नाम पूछा - रेणु प्रभा, मंजु प्रभा , नीलम प्रभा , अजय कुमार और मिन्नी !
सबके नाम कुछ पंक्तियाँ लिखते वे रुक गए, सवाल किया - 'मिन्नी? कोई प्रभा नहीं ' - और आँखें बंदकर कुछ सोचने लगे और अचानक कहा - 'कहिये रश्मि प्रभा , क्या हाल है?' अम्मा ,पापा के चेहरे की चमक से अनजान मैंने इतराते हुए कहा -'छिः ! मुझे नहीं रखना ये नाम ,बहुत ख़राब है। एक लडकी-जिसकी नाक बहती है,उसका नाम भी रश्मि है................' पापा ने डांटा -'चुप रहो', पर कवि पन्त ने बड़ी सहजता से कहा, 'कोई बात नहीं , दूसरा नाम रख देता हूँ' - तब मेरे पापा ने कहा - 'अरे इसे क्या मालूम, इसने क्या पाया है....जब बड़ी होगी तब जानेगी और समझेगी ।'
जैसे-जैसे समय गुजरता गया , वह पल और नाम मुझे एक पहचान देते गए ।
वह डायरी अम्मा ने संभालकर रखा है , जिसमें उन्होंने सबके नाम कुछ लिखा था। मेरे नाम के आगे ये पंक्तियाँ थीं,
' अपने उर की सौरभ से
जग का आँगन भर देना'...........
कवि का यह आशीर्वाद मेरी ज़िन्दगी का अहम् हिस्सा बन गया......इस नाम के साथ उन्होंने मुझे पूरी प्रकृति में व्याप्त कर दिया ।

03 जनवरी, 2009

आप क्या कहना चाहेंगे ?


मैं एक सच्चा वाक्या प्रस्तुत करती हूँ आपके आगे - देश के ऐसे नागरिकों को क्या आप संवेदनशील कहेंगे ? क्या यह होती है देश के प्रति निष्ठा? हाँ , बातें हैं देश के लिए ही !.......
मेरा बेटा, ( जो एक आर्मी ऑफिसर है ) - ट्रेन से अपने लोकेशन पर जा रहा था। उसी कम्पार्टमेंट में एक महाशय एक लड़की पर प्रभाव जमाते हुए जोश में कह रहे थे - जवाब देना है, हमें हाथ-पर-हाथ रखकर नही बैठना है! मैं चाहता हूँ युद्ध हो, मैं अनुभव करना चाहता हूँ......... बहुत देर से उनकी बातें सुन रहा था मेरा बेटा, अनुभव की बात पर उसने पूछा - "क्या आपके घर का कोई सदस्य फौज में है?" उन्होंने कहा - 'नही'। मेरे बेटे ने कहा - 'फिर? फिर आप क्या अनुभव कर पाएँगे और किस मायने में? पहले अपने घर से किसी को देश की सुरक्षा में भेजें , फिर ऐसी बात कहें..........!!!'

वो महापुरुष थोड़ा रुके और फिर अपना प्रश्न दागा - 'आप क्या करते हैं?' बड़े फक्र से मेरे बेटे ने कहा - 'मैं फौज में हूँ, मैं एक आर्मी ऑफिसर हूँ!'

उन्होंने तो चुप्पी साध ली, पर आप कहिये - क्या यह कोई टाइम पास मसला है, या कोई बौद्धिक अनुभव?

एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...