कहते हैं सब रहिमन की पंक्तियाँ -
"रहिमन निज मन की व्यथा, मन ही राखो गोय।
सुनि इठिलैहें लोग सब, बाटि न लैहैं कोय।।"
तो व्यथा की चीख मन में रख हो जाओ बीमार
डॉक्टर के खर्चे उठाओ
नींद की दवा लेकर सुस्त हो जाओ !!!!!!!!!!!!!!!
रहीम का मन इठलानेवाला नहीं था न
व्यथित रहा होगा मन
तो एहसासों को लिखा होगा ....
जो सच में व्यथित है - वह कैसे इठलायेगा
तो ........
कहीं तो होगा ऐसा कोई रहीम
जिससे मैं जी भर बातें कर सकूँ
सूखी आँखें उसकी भी उफन पड़े
मैं भी रो लूँ जी भर के ..............
सही मायनों में जी भरके