शोर से अधिक एकांत का असर होता है, शोर में एकांत नहीं सुनाई देता -पर एकांत मे काल,शोर,रिश्ते,प्रेम, दुश्मनी,मित्रता, लोभ,क्रोध, बेईमानी,चालाकी … सबके अस्तित्व मुखर हो सत्य कहते हैं ! शोर में मन जिन तत्वों को अस्वीकार करता है - एकांत में स्वीकार करना ही होता है
15 जुलाई, 2014
05 जुलाई, 2014
लड़की है न !
उसे सुनते हुए लगेगा
- वह विद्रोही है
बोलते हुए वह झाँसी की रानी दिखाई देती है
पर इस सुनाई - दिखाई से परे
उसकी बौखलाहट से परे
उसकी असंयत आंतरिक स्थिति के कारण से सब उदासीन हैँ
……… लड़की है न !
लड़की प्राचीन युग की हो
मध्यकाल की हो
आधुनिकता की सहचरी हो
उसके आस-पास सबक की बस्तियाँ बसी हुई हैं
चेहरे पहचाने हुए हैं !
वही चेहरे
जो कहते हैं -
"तुम्हारा एक वजूद है
अपना अस्तित्व बनाओ - वह ईश्वर की देन है
हारना तुम्हारी किस्मत नहीं
तुम्हारी सोच तुम्हारी किस्मत है" …
हादसों के बाद
विवाह के बाद
बेटी की माँ बनने के बाद -
यही चेहरे सख्त हो जाते हैं !
भाषा बदल जाती है !
रस्सी पर नट की तरह चलने के मशविरे
गिरने पर उलाहने
उदाहरणों की भरी बोरियाँ उलटने मेँ
ये चेहरे
अपने को सर्वज्ञानी मान लेते हैं
अपने पूर्वपदचिन्हों को बेदाग बताते हैं …
…
सामने जो लड़की है
उसे मान लेना होता है
वर्ना - आत्महत्या,अर्धविक्षिप्तता के रास्ते खुले हैं
और इस विकल्प में भी उपदेश
क्योंकि ....... आखिर में तो वह लड़की है न !
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गंगा
गंगा ! तुम परंपरा से बंधकर बहती, स्त्री तो हो किंतु परंपरा से अलग जाकर अबला अर्थ नहीं वहन करती वो रुपवती धारा हो जिसका वेग कभी लुप्त नही...
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