25 सितंबर, 2015

महादेवी वर्मा और एक कोशिश सी मैं


महादेवी वर्मा हिंदी साहित्य के छायावादी कवियों में एक महत्वपूर्ण स्तंभ मानी जाती हैं ... शिक्षा और साहित्य प्रेम महादेवी जी को एक तरह से विरासत में मिला था। महादेवी जी में काव्य रचना के बीज बचपन से ही विद्यमान थे। छ: सात वर्ष की अवस्था में भगवान की पूजा करती हुयी माँ पर उनकी तुकबंदी कुछ यूँ थी -

ठंडे पानी से नहलाती
ठंडा चन्दन उन्हें लगाती
उनका भोग हमें दे जाती
तब भी कभी न बोले हैं
मां के ठाकुर जी भोले हैं 

वेदना और करुणा महादेवी वर्मा के गीतों की मुख्य प्रवृत्ति है, असीम दु:ख के भाव में से ही महादेवी वर्मा के गीतों का उदय और अन्त दोनों होता है !

उनकी दो रचनाओं की ऊँगली मैंने यानी मेरी कलम ने थामने की कोशिश की है  … 

महादेवी वर्मा 

तुम मुझमें प्रिय! फिर परिचय क्या
तारक में छवि, प्राणों में स्मृति
पलकों में नीरव पद की गति
लघु उर में पुलकों की संसृति
भर लाई हूँ तेरी चंचल
और करूँ जग में संचय क्या!
तेरा मुख सहास अरुणोदय
परछाई रजनी विषादमय
वह जागृति वह नींद स्वप्नमय
खेलखेल थकथक सोने दे
मैं समझूँगी सृष्टि प्रलय क्या!
तेरा अधर विचुंबित प्याला
तेरी ही स्मित मिश्रित हाला,
तेरा ही मानस मधुशाला
फिर पूछूँ क्या मेरे साकी
देते हो मधुमय विषमय क्या!
रोमरोम में नंदन पुलकित
साँससाँस में जीवन शतशत
स्वप्न स्वप्न में विश्व अपरिचित
मुझमें नित बनते मिटते प्रिय
स्वर्ग मुझे क्या निष्क्रिय लय क्या!
हारूँ तो खोऊँ अपनापन
पाऊँ प्रियतम में निर्वासन
जीत बनूँ तेरा ही बंधन
भर लाऊँ सीपी में सागर
प्रिय मेरी अब हार विजय क्या!
चित्रित तू मैं हूँ रेखाक्रम
मधुर राग तू मैं स्वर संगम
तू असीम मैं सीमा का भ्रम
काया छाया में रहस्यमय
प्रेयसि प्रियतम का अभिनय क्या!
तुम मुझमें प्रिय! फिर परिचय क्या


मेरी कलम से 


कौन हो तुम
कौन हूँ मैं 
क्या दोगे तुम परिचय 
क्या दूँ मैं अपने लिए  … 
ध्रुवतारे में तुम्हें देखा है 
सप्तऋषि की परिक्रमा कर 
तुमसे बातें की है 
टूटते तारे के रूप में 
तुम्हारे संग टूटी हूँ 
आकाश से उतरी हूँ  … 
परिचय तुम्हारा मैं 
मेरा अस्तित्व तुमसे  निनादित 
मैं कहलाऊँ तुम 
तुम छायांकित मुझमें 
साधक तुम साध्य हूँ मैं 
मैं ध्यानावस्थित 
ध्यान हो तुम 
चल अचल धीर गंभीर 
सागर तुम हो 
मैं हूँ लहरें 
तुम रेतकण 
मैं हूँ नमी 
स्पर्श तुम 
मैं हूँ सिहरन 
हो आग तुम 
मैं हूँ तपन 
विद्युत सी चमक तुझमें लय है 
बादल सी गति मुझमें लय है 
मैं वशीकरण 
तुम हो वश में 
तुम कौन हो 
कहो,
कौन हूँ मैं ? 
तुम मौन मेरा साथ हो,
मैं मौन अनुगामिनी
नाम तेरा मैं न जानूं
तुम भी मुझको ना पहचानो,
फिर भी हैं ये आहटें
साथ चलता साया है !
मौन मुझसे बातें करता
मौन मेरी बातें सुनता !
मौन अपना साथ है,
मौन अपना प्यार है
मौन अपनी जीत है
मौन अपने गीत हैं.........
मौन ही चलते रहें हम
क्षितिज तक मिलने के भ्रम में
भ्रम ही बन जायें हम-तुम
और यूँ मिल जायें हम-तुम !


कहती हैँ महादेवी जी - 

जो तुम आ जाते एक बार ।

कितनी करूणा कितने संदेश
पथ में बिछ जाते बन पराग
गाता प्राणों का तार तार
अनुराग भरा उन्माद राग
आँसू लेते वे पथ पखार
जो तुम आ जाते एक बार ।

हंस उठते पल में आद्र नयन
धुल जाता होठों से विषाद
छा जाता जीवन में बसंत
लुट जाता चिर संचित विराग
आँखें देतीं सर्वस्व वार
जो तुम आ जाते एक बार ।


मैं अपनी कलम को पकड़कर अपने मन को उतारती हूँ - 



कोई आहट रुकी है जानी-पहचानी,
मेरे मन की सांकलें सिहर उठी हैं...
मैं तो ध्यानावस्थित थी,
ये कौन आया बरसों बाद?
मुझे याद दिलाया-मैं जिंदा हूँ.......!
किसने मेरे खाली कमरे में घुँघरू बिछा डाले,
जो पुरवा की तरह बज उठे हैं!
क्यों मुझे राधा याद आ रही?
उधो की तरह मैं 
गोपिकाओं सी क्यों लीन हो उठी?
ये बांसुरी की तान कहाँ से आई है?
यमुना के तीरे ये क्या माज़रा है!
क्यों ब्रज में होली की धूम मची है?
क्या कृष्ण ने फिर अवतार लिया है 
ये कौन आ गया फिर मेरे द्वार ?





12 टिप्‍पणियां:

  1. नमन आपकी कलम को!
    क्या खूब उतारा है मन!

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  2. वाह जैसे पग चिन्हों के ऊपर से बिना आबाज किये गुजर गया कोई ! बहुत सुंदर !

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (26-09-2015) को "सवेरा हो गया-गणपति बप्पा मोरिया" (चर्चा अंक-2110) (चर्चा अंक-2109) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. वाह...नमन उन महान रचनाकार को...नमन आपको !

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  5. वाह...नमन उन महान रचनाकार को...नमन आपको !

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  6. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  7. दोनों का एकाकार होना मन में गहरे उतर गया ..
    ...बहुत सुन्दर ...

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  8. kalam kee nirantartaa banee huyee hai , sadiyon ke baad bhee badhai

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  9. जय मां हाटेशवरी...
    अनेक रचनाएं पढ़ी...
    पर आप की रचना पसंद आयी...
    हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
    इस लिये आप की रचना...
    दिनांक 19/07/2016 को
    पांच लिंकों का आनंद
    पर लिंक की गयी है...
    इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।

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एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...