सूई है
धागा भी
बस हाथ थरथराने लगे हैं
नज़र कुछ कमज़ोर हो गई है
जीवन को सी लेना
इतना भी आसान नहीं
खासकर ऐसे में,
जब वह धुंधला नज़र आने लगे
और सूई में धागा पिरोया न जा सके ...
जो कुछ उधड़ चुका है
उसे बार-बार सामने क्या रखना !
'क्या हुआ था?'
जैसे प्रश्न का क्या औचित्य !
तुम,वो,ये ...
कोई जौहरी तो नहीं
जो व्याख्या करोगे
तपाओगे
मूल्य निर्धारित करोगे !!
सही-गलत जो भी है
मेरा निर्णय है
और चलो मान लो
मैं साधारण पत्थर हूँ
लेकिन मेरे लिए
मेरी हर साँस
कंचन,हीरा,नीलम,माणिक ... है
... जिसे मुझे स्वयं तराशना है !!!
यूँ गौर करो
तो तुम्हारी ज़िन्दगी
उसकी ज़िन्दगी भी उधड़ी है
रफू करके देखना
....
आसान नहीं है सीना,
खुद जान लोगे
या जानते भी होगे
पर दूसरे के दर्द को कुरेदते हुए
एक संतुष्टि मिलती होगी
सहज इंसानी आदत ... !!!
धागा भी
बस हाथ थरथराने लगे हैं
नज़र कुछ कमज़ोर हो गई है
जीवन को सी लेना
इतना भी आसान नहीं
खासकर ऐसे में,
जब वह धुंधला नज़र आने लगे
और सूई में धागा पिरोया न जा सके ...
जो कुछ उधड़ चुका है
उसे बार-बार सामने क्या रखना !
'क्या हुआ था?'
जैसे प्रश्न का क्या औचित्य !
तुम,वो,ये ...
कोई जौहरी तो नहीं
जो व्याख्या करोगे
तपाओगे
मूल्य निर्धारित करोगे !!
सही-गलत जो भी है
मेरा निर्णय है
और चलो मान लो
मैं साधारण पत्थर हूँ
लेकिन मेरे लिए
मेरी हर साँस
कंचन,हीरा,नीलम,माणिक ... है
... जिसे मुझे स्वयं तराशना है !!!
यूँ गौर करो
तो तुम्हारी ज़िन्दगी
उसकी ज़िन्दगी भी उधड़ी है
रफू करके देखना
....
आसान नहीं है सीना,
खुद जान लोगे
या जानते भी होगे
पर दूसरे के दर्द को कुरेदते हुए
एक संतुष्टि मिलती होगी
सहज इंसानी आदत ... !!!