जब कभी बारिश होती है
जब कभी रुपहले बादल नीचे उतरते हैं
जब कभी चाँदनी धरती पर उतरती है
उस उम्रदराज़ औरत के भीतर से
एक छुईमुई लड़की निकलती है
हथेलियों में भर लेती हैं बूँदें
बादलों में छुप जाती है
चाँदनी को घूँट घूँट पीती है
मन की ख़ामोशी से परे
वह बन जाती है शोख हवा ...
अल्हड़ सी
नंगे पैरों खुली सड़क पर छम छम नाचती है
ज़िन्दगी उसके बालों में
बूंदों की घुंघरुओं सी खनकती है
अपनी सफ़ेद लटों को
चेहरे पर लहराते हुए
वह खुद में शायर बन जाती है !
कभी सुनना उसके घर की बातें
शायरी सुनते हुए उसकी माँ कहती है
- "हाँ तो अभी तुम्हारी उम्र ही क्या हुई!"
बड़े कहते हैं -
"तुम सबसे छोटी हो"
और वह उम्रदराज़ औरत
अपने बच्चों की उम्र की हो जाती है
उसकी थकी आँखों में
एक नन्हीं सी बच्ची खिलखिलाती है
और फिर घंटों अपने मन के आँगन में
वह खेलती है कंचे
इक्कट दुक्कट
डेंगापानी
कबड्डी - आइसबाइस
डाक डाक - किसकी डाक !
उम्रदराज़ सहेलियाँ भी
उम्र के केंचुल से बाहर निकल आती हैं
...
नई, बिल्कुल नई हो जाती हैं
ज़िन्दगी की तरह
!!!!!!!!!