जब कोई हमें neglect करता है तो हम अपने अपमान में सोचते हैं, हम हार गए ।
वक़्त लगता है इस समझ के सुकून को पाने में कि हम हारे नहीं, हम बच गए असली जीत के लिए । और रही बात अपमान की, तो यह अपमान सही मायनों में उनका होता है, जो ग़लत करने से रोकते हैं, जो बेइन्तहां प्यार करते हैं ।
अम्मा (स्व सरस्वती प्रसाद) ने इसे सहज भाव से समझने के लिए "मन का रथ" ही लिख दिया है -
"मन का रथ जब निकला
आए बुद्धि - विवेक
रोका टोका समझाया
दी सीख अनेक
लेकिन मन ने एक ना मानी
रथ लेकर निकल पड़ा
झटक दिया बातों को जिद पर रहा अड़ा
सोचा मैं मतवाला पंछी नील गगन का
कौन भला रोकेगा झोंका मस्त पवन का
जब चाहे मुट्ठी में भर लूं चाँद सितारे
मौजों से कहना होगा कि मुझे पुकारे
आंधी से तूफाँ से हाथ मिलाना होगा
अंगारों पे चलके मुझे दिखाना होगा
लोग तभी जानेंगे हस्ती क्या होती है
अंगूरी प्याले की मस्ती क्या होती है
मन की सोच चली निर्भय हो आगे - आगे
अलग हो गए वो अपने जो रास थे थामे
यह थी उनकी लाचारी
कुछ कर न सके वो
चाहा फिर भी
नही वेग को पकड़ सके वो
समय हँसा...
रे मूरख ! अब तू पछतायेगा॥
टूटा पंख लिए एक दिन वापस आएगा...
सत्य नही जीवन का नभ में चाँद का आना
सच्चाई हैं धीरे धीरे तम का छाना
समझ जिसे मधुरस मानव प्याला पीता हैं
वह केवल सपनो में ही जीता मरता हैं
अनावरण जब हुआ सत्य का,
मन घबराया
रास हाथ से छूट गई कुछ समझ न आया
यायावर पछताया ,
रोया फूट फूट कर
रथ के पहिये अलग हो गए टूट टूट कर
रही सिसकती पास ही खड़ी बुद्धि सहम कर
और विवेक अकुलाया मन के गले लिपट कर
लिए मलिन मुख नीरवता आ गयी वहाँ पर
लहू-लुहान मन को समझाया अंग लगा कर
धीरे से बोली-
अब मिल-जुल साथ ही रहना
फिर होगा रथ ,
तीनो मिल कर आगे बढ़ना
कोई गलत कदम अक्सर पथ से भटकाता हैं
मनमानी करने का फल फिर सामने आता हैं.."
इस रथ के घोड़े अपने नशे में होते हैं, तो नशा उतरते असलियत सामने होती है ।
कोई भी व्यक्ति पूरी तरह सही नहीं होता है, इसलिए उसको समझाने से पहले समझना भी होता है । सच भयानक लगता है सुनने में, लेकिन सच कह देना ज़रूरी भी होता है । हाँ इकतरफा कभी नहीं ।
रथ के पहिये जब अलग हो जाते हैं,और जहाँ से यह बात आती है कि सब मिलजुल अब साथ ही रहना, वहाँ से, बुद्धि-विवेक को अनदेखा करना ख़ुद से ख़ुद का अपमान है । फिर सामनेवाला दोषी नहीं होता, क्योंकि उसने अपने सत्य को उजागर कर दिया था ।
समय गवाह है, जब जब हमने देखे हुए,भोगे गए सत्य को अनदेखा किया है, वर्तमान शूल बनकर चुभता है । रोओ, लेकिन इसलिए रोओ कि ईश्वर ने तुम्हें चेतावनी दी, बड़ों ने समझाया ... और तुमने सुनकर भी अनसुना किया ।
"मेरी ख़ुशी, मेरी इच्छा" ... यह सब क्षणिक उन्माद है ।
उन्माद को जीना चाहते हो तो जियो, और मजबूत बनो -क्योंकि उन्मादित लहरें दिशाहीन होती हैं ।
कभी मत कहो कि हमें पता नहीं चला" एक बार ऐसा हो सकता है, बार बार नहीं । समय हर बार कहता है, "रे मूरख, अब तू पछतायेगा,टूटा पंख लिए एक दिन वापस आएगा" !
सार यही है, कि ईश्वर ने जो तुमको दिया है, उसे गंवाओ मत, और जो तुम्हारे लिए नहीं, उसके पीछे भागो मत । भागना है तो उसके जैसा बनने की क्षमता लाओ, एक ही मुखौटा सही - अपने लिए भी लाओ ।