13 अक्तूबर, 2018

चीख भर जाए तो अपना आह्वान करो




#me too

दर्द कहने से दर्द दर्द नहीं रह जाता ।
उफ़नते आक्रोश,
बहते आँसुओं के आगे कोई हल नहीं ।
माँ कहती है, चुप रह जाओ,
झिड़क देती है,
उसके साथ नानी ने भी यही किया था,
क्योंकि, कहने के बाद -
जितने मुँह,
उतनी बातें होंगी !
भयानक हादसों के चश्मदीद,
क्या करते हैं ?
इतिहास गवाह है ...
बेहतर है,
आगे बढ़ो ।
गिद्ध अपनी आदत नहीं बदलेगा,
समाज ढिंढोरा पीटेगा,
नाते-रिश्तेदार कहानी सुनेंगे,
नौटंकी' कहकर,
उपहास करेंगे,
... इसलिए इन गन्दी नालियों को पार करो,
दुर्गंध उजबुजाहट भरे तो थूको,
आगे बढ़ो ...
एक चीख भर जाए भीतर,
तो अपने उस अस्तित्व का आह्वान करो,
जिसे माँ दुर्गा कहते हैं ,
अपनी पूजा ख़ुद करो ।

10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब।
    अपने उस अस्तित्व का आह्वान करो,
    जिसे माँ दुर्गा कहते हैं ,
    अपनी पूजा ख़ुद करो ।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (14-10-2018) को "जीवन से अनुबन्ध" (चर्चा अंक-3124) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. बहुत उम्दा

    माँ कहती है, चुप रह जाओ,
    झिड़क देती है,
    उसके साथ नानी ने भी यही किया था

    जवाब देंहटाएं
  4. एक चीख भर जाए भीतर,
    तो अपने उस अस्तित्व का आह्वान करो,
    जिसे माँ दुर्गा कहते हैं ,
    अपनी पूजा ख़ुद करो ।..उम्दा पंक्तियाँ
    बहुत बढिया..

    जवाब देंहटाएं
  5. रास्ता ख़ुद तुझे, मंजिल का बनाना होगा,
    दाग अबला का, तुझे ख़ुद ही मिटाना होगा.
    ज़ुल्म सहते तुझे सदियाँ तो बहुत बीत गईं,
    रूप दुर्गा का तुझे, सबको दिखाना होगा.

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  6. अपने अस्तित्व को उकेर कर
    एक कलाकृति त्रिशूल की बनाइये

    बेहद सराहनीय अभिव्यक्ति, ऊर्जा का सतत प्रवास करती बहुत सुंदर रचना।

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  7. अद्भुत लेखन अति सुंदर आदरणीया रश्मि जी सब सार कह गयी आप

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  8. सच अपने दर्द का उपचार खुद ढूंढ लेना चाहिए किसी को बताने से सिर्फ बातें भर होती है
    बहुत अच्छी सीख

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  9. अप्रतिम रश्मि जी रचना के माध्यम से आपके विचारों को सहमति देती हू गढे मुर्दे उखाड़ने से गन्दी नालियों की दुर्गंध उजबुजाहट ही भरनी है कहीं हास्य का पात्र बनना है कहीं पहने चीर का फिर हनन करवाना है कांटों वाली आंखों के सवाल से गुजरना और सडी मानसिकता की बदबू से माहौल दुर्गंध युक्त करना है।
    स्वयं दुर्गा बन खुद को ही अर्थ चढ़ाना ही एक सम्माननीय पक्ष हो सकता है।
    बहुत कुछ कहती अत्योत्तम रचना ।

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