26 अक्टूबर, 2018

इंतज़ार




वो जो सड़कों,शहरों,दो देशों की दूरियाँ है,
वह तुम्हारे लिए,मेरे आगे हैं
तो निःसंदेह, मेरे लिए तुम्हारे आगे भी हैं ।
बेचैनी बराबर भले न हो,
तुम समझदार हो,
मैं नासमझ ...
पर,
होंगी न !
कुछ बातें कह सुनाने को,
मेरे अंदर घुमड़ती हैं,
तो कुछ तो तुम्हारे भीतर भी सर उठाती होंगी ।
तुम्हें छूकर,
मेरे अंदर संगीत बजता है,
एक जलतरंग की चाह में,
तुम भी मेरे गले लग जाना चाहते होगे ।
रिश्तों के आगे,
उम्र की कैसी बाधा !
समय,लोग,संकोच के आगे रुक जाने से,
न समय समझेगा,
न लोग,
ना ही संकोच ...
सड़क,शहर,देश की दूरियां,
ज्यों ज्यों बढ़ेंगी,
बेचैनियां सर पटकेंगी,
और अगली बार तक
क्या पता मैं रहूँ ना रहूँ,
जिसके गले लग,
तुम अपने मन के धागे बांध सको !
यूँ यह यकीन रखना,
हर दूरी तय करके,
मैं तुम्हें सुनती हूँ,
सुनती रहूँगी,
और करूँगी इंतज़ार
- बिना कौमा,पूर्णविराम के,
तुम अपनी खामोशियाँ सुना जाओ ।

5 टिप्‍पणियां:

  1. और अगली बार तक
    क्या पता मैं रहूँ ना रहूँ,
    जिसके गले लग,
    तुम अपने मन के धागे बांध सको !

    –...–

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  2. मन के धागे खुले हुऐ
    कहीं खुद में ही उलझ लेंगे

    बहुत सुन्दर।

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (27-10-2018) को "पावन करवाचौथ" (चर्चा अंक-3137) (चर्चा अंक-3123) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 26/10/2018 की बुलेटिन, "सेब या घोडा?"- लाख टके के प्रसन है भैया !! “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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