नहीं लिखूँगी मैं उनका नाम
स्वर्णाक्षरों में,
जिन्होंने तार तार होकर भी
विनम्रता का पाठ पढ़ाया
सम्मान खोकर
झुकना सिखाया
और रात भर देखते रहे छत
और अचानक
बन्द कर ली आँखें !!!
इस स्वभाव ने जो भी सुकून दिया हो
उनके घाव हरे रहे।
...
मैं उनका नाम कत्तई नहीं लिखूँगी,
जो हर सही ग़लत पर
अपने हठ की मुहर लगाते हैं,
लेकिन सहनशीलता का पाठ पढ़ाते हैं,
और बड़ी सख़्ती से !!!
...
कुछ नाम बड़े ज़िद्दी होते हैं,
हाथ झटककर आगे बढ़ जाते हैं
ख़ुद को ऐसा दिखाते हैं
कि उन्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ता
लेकिन किसी मोहक सम्बन्ध से
यादों से
वे नहीं उबरते,
आवेश में भी उनका अनिष्ट नहीं चाहते,
ना ही उनकी प्रतीक्षा से निर्विकार होते हैं
मैं लिखूँगी उनका नाम
हर जगह की मिट्टी पर
एक बीज की तरह
ताकि उनकी जड़ें मजबूत रहें !
कभी जब सारे रास्ते बंद मिलें
तब उनके नाम की सरसराहट
शीतल,मंद हवा की तरह
कई अनोखे पल याद दिलाये
सच का सामना कराते हुए
ये पौधे,
ये वृक्ष
आपको अपने पास जी भरकर रोने का मौका दें
आपके घाव सूख जायें ... !
झूठे अहम के कीचड़ से
आप मुक्ति पायें
स्वर्ण और मिट्टी का अंतर
आपके रोम रोम में स्थापित हो
समय ऐतिहासिक गवाह बन जाए ।