माँ का दिन तो उसी दिन से शुरू हो जाता है,
जब पहले दिन से
नौवें महीने तक
प्रसव पीड़ा से लेकर
बच्चे को छूने के सुकून तक
एक स्त्री
बच्चे की करवटों से जुड़ जाती है ।
बच्चे के रुदन से सुनाई देता है
"माँ"
और वह मृत्यु को पराजित कर
मीठी मीठी लोरी बन जाती है ।
चकरघिन्नी सी घूमती माँ,
तब तक नहीं थकती,
जब तक वह अपने बच्चे की आंखों में,
नींद बनकर नहीं उतर जाती,
सपनों के भयमुक्त द्वार नहीं खोल देती,
नींद से सराबोर
बच्चे के चेहरे की भाषा नहीं पढ़ लेती,
बुदबुदाकर सारी बुरी दृष्टियों को
भस्म नहीं कर देती !
कमाल की होती है एक माँ,
बच्चे को वह भले ही उंगली छोड़कर,
दुनिया से जूझना सिखा दे,
लेकिन अपनी अदृश्य उंगलियों से,
उसकी रास थामके चलती है,
सोते-जागते अपने मन के पूजा स्थल पर,
उसकी सुरक्षा के दीप जलाती है ।
जानते हो,
मातृ दिवस रविवार को क्यों आता है
ताकि तुम सुकून से,
माँ के द्वारा बुने गए पलों की गर्माहट को
गुन सको,
सुन सको
और पुकारो - माँ,
इस पुकार से बेहतर
कोई उपहार नहीं,
जो उसे दिया जा सके ।
और दुनिया के सारे बच्चो,
तुमसे मेरा,
एक माँ का यह अनुरोध है
कि जब तुम्हें वह थकती दिखाई दे,
उस दिन तुम अपनी अदृश्य उंगलियों से,
उसे थाम लेना,
अपने मन के पूजा स्थल पर एक दिया
उसके सामर्थ्य की अक्षुण्णता के लिए
रख देना जलाकर,
देखना फिर .... वह कुछ भी कर सकती है,
हाँ - कुछ भी ।
माँ थकती भी है तब भी कहाँ महसूस होने देती है?
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन टीम की ओर से आप सब को मातृदिवस की हार्दिक मंगलकामनाएँ !!
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 12/05/2019 की बुलेटिन, " माँ की वसीयत बच्चों के नाम “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !