19 फ़रवरी, 2021

अटकन चटकन


 



पहली बार जब यह नाम "अटकन चटकन" मेरी आंखों से गुजरा, लगा कोई नाज़ुक सी लड़की अपने दोस्तों के साथ चकवा चकइया खेल रही होगी ... सोचा,बचपन की खास सन्दूक सी होगी कहानी । शब्दों को, गज़लों को,किसी वृतांत को ज़िन्दगी देनेवाली वन्दना अवस्थी दूबे ने कोई जादू ही किया होगा, इसके लिए निश्चिंत थी । फिर भी आनन-फानन मंगवाने का विचार नहीं आया । 

फिर आने लगे प्रतिष्ठित लोगों के विचार और उन विचारों ने कौतूहल पैदा किया, इस कहानी की मुख्य पात्रों से मिलने की उत्कंठा ने बेटी से कहा, "जरा ऑर्डर दे दो तो" ... ।
और, किताब मुझ तक आ गई, आवरण चित्र ने कहा - शनैः शनैः पढ़ना तभी समझ सकोगी दो विपरीत स्वभाव की बहनों को, जो दो छोर पर नज़र आती क्षितिज बनी रहीं ।
शुरुआत के पन्नों को एक नहीं कई बार पढ़ा ... बचपन से जो हुआ उस पर गौर किया । क्या कुंती ईर्ष्यालु थी ? या लोगों के द्वारा किये गए फ़र्क ने उसे उच्श्रृंखल बनाया ! सुमित्रा का स्वभाव भी लोगों की देन रहा । उसका खुद में सिमट जाना, परिस्थिति से अनजान होने का उपक्रम करती कुंती को स्नेह देने का उसके मन का वह दर्द था, जो कुंती की उदासी को बर्दाश्त नहीं कर पाता था । लोगों द्वारा तुलना किये जाने का भय, यदि कुंती को आक्रोशित करता था तो सुमित्रा को सोने नहीं देता था । 
कुंती के स्वभाव की चर्चा आसान है, परन्तु लोगों के गलत व्यवहार ने उसे बचपन से चिढ़ने का कारण दिया, बड़ी बहन के विरुद्ध खड़ा किया - इसे हंसकर टाला नहीं जा सकता । एक चेहरे के प्रति यह रवैया कितना खतरनाक होता है, इस कहानी के माध्यम से समझा जा सकता है, समझने की ज़रूरत है ।
रंग रूप में भेद करते हुए घर के,आसपास के लोगों ने कुंती के मन को खतरनाक बना दिया, उसका उद्देश्य ही रहा - सुमित्रा का अपमान ! जबकि सुमित्रा की सारी सोच कुंती के प्रति थी, कुंती की पसंद,कुंती का सुख ... लेकिन कुंती का मन मंथरा हो चुका था, यूँ कहें कैकेई !


क्रमशः


12 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२०-०२-२०२१) को 'भोर ने उतारी कुहासे की शाल'(चर्चा अंक- ३९८३) पर भी होगी।

    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
  2. अधुरी होते हुए भी रोचकता बढ़ाती सुंदर पुस्तक समीक्षा ।
    समीक्षकजी और लेखिका वंदना अवस्थी जी दोनों को बहुत बहुत बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  3. क्या ये वही कहानी है जो भदूकड़ा नाम से वंदना अवस्थी जी के ब्लॉग पर है ? आठ भाग बड़ी उत्सुकता से पढ़े थे। अगले भागों का इंतजार था। पुस्तक कहाँ उपलब्ध है कृपया बताएँ। समीक्षा के अगले भाग का इंतजार है।

    जवाब देंहटाएं
  4. नौ भाग हैं, सही संख्या याद नहीं थी। अभी देखा।

    जवाब देंहटाएं
  5. उत्सुकता जगाती समीक्षा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं

एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...