20 अगस्त, 2022

मैं अपना ही अर्थ ढूंढता हूँ ।


 


गोकुल की वह सुबह,

सोहर के बीच 
माँ यशोदा ने जब मुझे कसकर गले लगाया 
उनके बहते आँसुओं को 
अपनी नन्हीं हथेली पर महसूस करते हुए 
मेरा आँखें माँ देवकी को
वासुदेव बाबा को ढूंढ रही थीं ...

समय की मांग से परे
मैं उसी वक्त चाह रहा था विराट रूप लेना
अपने सात भाईयों की हत्या 
माँ देवकी के गर्भनाल की असह्य 
निःशब्द पीड़ा को अर्थ देना
कंस को उसी कारागृह की दीवार पर
उसी की तरह पटकना... !!!
लेकिन माँ यशोदा के हिस्से लिखी बाल लीला
सूरदास के अंधेरे में उजास भरने के लिए 
मुझे चौदह वर्षों का गोकुलवास मिला था !!

ईश्वरीय चमत्कार की चर्चा छोड़ दें
तो न मेरे आगे माँ देवकी की व्यथा थी
न उनकी गोद में मैं !!
मेरे आगे भी एक निर्धारित अवधि थी
जिसमें मुझे गोकुल का सुख बनना था,
प्रेम बनना था 
और फिर सबकुछ छोड़कर
मथुरा लौटना था
उलाहनों,आँसुओं की थाती लिए !

बिना भोगे,
बिना जिए,
कौन मेरे करवटों की व्याख्या करेगा ?
कैसे कोई जानेगा
कि जब मैं माँ देवकी के गले लगा
तो मेरा रोम रोम माँ यशोदा के स्पर्श से भरा था !
माँ देवकी भी सिहर उठी थीं ...
दो बूंद आंसू गिरे थे
लेकिन होनी के इस अन्याय को स्वीकार करते हुए 
उन्होंने मेरे सर पर हाथ रख दिया था
ताकि मैं मथुरा के साथ न्याय कर सकूँ ... !!!

मैंने क्या न्याय या अन्याय किया
_ नहीं जानता !
मेरे मुख में ब्रह्मांड था या नहीं
- मुझे ज्ञात नहीं 
पर जो अन्याय मेरे जीवन में होनी ने तय किया,
उसके आगे मेरा वजूद गीता बना ...
अगर ऐसा नहीं होता,
तो मैं जी नहीं पाता !

तुमसब भले ही मुझे द्वारकाधीश कहो
पर अपने एकांत में 
मैं अपना ही अर्थ ढूंढता हूँ । 


रश्मि प्रभा 


14 टिप्‍पणियां:

  1. ओह! सृष्टि रचयिता को भी वेदना होती होगी या फिर उसके अन्तर्मन में भी कोई व्यथा संचित है ये बात अविश्वसनीय सी लगती है पर ये कडवा सत्य जरुर उसके जीवन की सच्चाई हो सकता है।कृष्ण का कृष्ण होना इतना आसान नहीं है।उसे भी अपनी पीड़ा को कहने का अधिकार है।एक सार्थक रचना जो सूक्ष्म कवि दृष्टि का परिचायक है।एक चिंतनपरक रचना के लिए बधाई और शुभकामनाएं प्रिय रश्मि जी।🙏🙏

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(२२-०८ -२०२२ ) को 'साँझ ढलती कह रही है'(चर्चा अंक-१५२९) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  3. श्री कृष्ण की संवेदनाओं को थाहना हो, उनके गहन चिन्तन का आभास पाना हो
    तो स्वयं को कंडीशन करना पड़ जाता है.

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  4. कृष्ण की वेदना को बहुत सटीक शब्द दिये हैँ 👏

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  5. मानव तन धर कर ईश भावनाओं की सरिता में नहाये तो होगे
    जिनमें समाहित ये ब्रह्मांड सारा कुछ अश्रु उसने भी बहाये तो होगे।
    ----
    अकल्पनीय वैचारिकी मंथन दीदी।
    प्रणाम
    सादर।

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  6. Pehle bhi apki ye rachna padhi aaj Sangeeta ji k prayason se firse padhna hua. Aaj kal apki kalam ki dhar aseemit ho gyi he... Jisko jitna jante.... Padhte jate he aap per garv karte chale jate he.
    Krishan k jeevan ko is angel se dekhte he to khud khud ko dhadhas de pane jaisi halaat hote hain... Aur man me ek dhun si bajti he..... Ki... Ik Tu hi nhi tanha.... Means jab krishan ko is dharti lok per aa ker dukhon ka samna karna pada to ham to seedhe saadhe.... Common ma he.... So All is welllllll. Keh k khud ko samjhate he.

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  7. तुमसब भले ही मुझे द्वारकाधीश कहो
    पर अपने एकांत में
    मैं अपना ही अर्थ ढूंढता हूँ ।
    ... अहा ! भगवान कृष्ण के मन का बहुत ही मार्मिक भाव ।बधाई दीदी ।

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  8. बिना भोगे,
    बिना जिए,
    कौन मेरे करवटों की व्याख्या करेगा ?
    ,जिनसे हम इतने सुखों की कामना करते हैं उन्होंने अपने जीवन काल में कौन से सुख देखे...
    लाजवाब सृजन।

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  9. गहन रचना, साधुवाद स्वीकारें दी

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