15 अगस्त, 2022

आज़ादी के पचहत्तर साल ...


 





आज़ादी के पचहत्तर साल !!!
लिया था हमने जन्म आज़ाद भारत में,
लेकिन शहीदों की कहानी
बड़ों की ज़ुबानी
हमारी आँखों से बहे,
इंकलाब रगों में प्रवाहित होता रहा ...
नाम किनका लूँ
किनका छोड़ दूँ
या भूल जाऊँ ?
मन की धरती पर
उनकी मिट्टी भी है
_ जो अनाम रहकर भी
अपने देश के लिए 
हमेशा के लिए सो गए !
भगतसिंह के बारे में
सुनते, सुनाते हुए 
जेल के बाहर
उनकी माँ मेरे वजूद में होती हैं ...
जो धीरे से कहती हैं,
'मेरा भगत' !!!
तिरंगे के हर रंग से
सुखदेव,आज़ाद, बटुकेश्वर दत्त, 
दुर्गा भाभी, 
सहगल,ढिल्लन, शाहनवाज दिखाई देते हैं 
वन्देमातरम की गूंज के आगे
किन्हें भूलूं,  किन्हें याद करूँ जैसी स्थिति होती है !

पचहत्तर साल बीत गए 
विश्वास नहीं होता
मन कहता है,
"ऐ भगतसिंहा,
एक बार हाथ मिला ले यार,
तेरी बात समझ नहीं पाया
पर इतना तो तय है 
कि कुछ तो बात है !"

खैर,
आज़ादी के पचहत्तर सालों के पड़ाव पर,
मैं सभी शहीदों 
और स्वतंत्रता सेनानियों का आह्वान करती हूँ
और लहराते तिरंगे के आगे सर झुकाती हूँ
यह कहते हुए कि इसकी अक्षुण्णता बनी रहे,
हर रंग में अपना भारत सर्वस्व रहे  ...

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी सामयिक प्रेरक प्रस्तुति
    जय भारत!

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  2. शुभकामनाएं आजादी की और ७५ साल की भी। सुन्दर सृजन।

    जवाब देंहटाएं
  3. आज़ादी के पचहत्तर सालों के पड़ाव पर,
    मैं सभी शहीदों
    और स्वतंत्रता सेनानियों का आह्वान करती हूँ
    और लहराते तिरंगे के आगे सर झुकाती हूँ
    यह कहते हुए कि इसकी अक्षुण्णता बनी रहे,
    हर रंग में अपना भारत सर्वस्व रहे ...

    हर भारतवासी के मन की बात लिख दी है । नायाब रचना ।

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  4. पचहत्तर सालों का सटीक विश्लेषण किया है आपने रचना में। बलिदानियों के सर्वस्व समर्पण पर देश की नींव रखी गई।उसका उपकार अविस्मरणीय है।राष्ट्र के कण -कण को कोटि-कोटि प्रणाम 🙏🙏

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