यदि तुम कुछ ठीक करना चाहते हो
तो सही-गलत के अन्तर को समझना होगा !
अहम की शिला को
ताक पर रखना होगा
खुलकर सच कहना
और सुनना होगा ...
हर बात पर यदि अहम आड़े आए
तब कोई भी कोशिश बेकार है !!!
ना,ना
आप बेसिर पैर की वजहें नहीं खड़ी कर सकते
जब तक चेहरे और व्यवहार में
शालीनता, मृदुता नहीं है
आपकी कोशिश सिर्फ और सिर्फ एक झूठ है . . .
इससे परे _
यदि तुम अपनी जगह सही हो
पर बातों, चीजों को
तुम ही सही करना चाहते हो
_ तब तुम्हें कृष्ण से सीखना होगा
पांच ग्राम जैसा प्रस्ताव ही सही होगा
अर्थात बीच का वह मार्ग,
जिसमें सम्मानित समझौता हो,
. ..
पर इसमें भी बाधा हो,
बड़ों की ग़लत ख़ामोशी उपस्थित हो
तब न्याय के लिए विराट रूप लेना होगा
सारथी बन जीवन रथ को घुमाना
और दौड़ाना होगा
... आवेश _ बिल्कुल नहीं
बल्कि सहजता से झूठ के बदले झूठ
साम दाम दण्ड भेद की तरह
मन की प्रत्यंचा पर
बातों के शर को चढ़ाना होगा ...
प्रिय,
यहां किसी महाभारत की जरुरत नहीं
बल्कि उस समय को अनुभव की तरह लेना है
गीता को खुद में आत्मसात करना है !!!