28 फ़रवरी, 2013

सब दिन होत न एक समान !!!




पति-पत्नी 
भाई-भाई 
बुज़ुर्ग- युवा,बच्चे ....
रिश्ते क्यूँ टूटे 
क्यूँ हल्के हैं 
जानने के लिए 
- गड़े मुर्दे से कारणों को निकालने पर 
सिर्फ दुर्गन्ध आएगी 
तू तू मैं मैं के वीभत्स स्वर सुनाई देंगे 
और सही कारण लुप्त रहेगा 
और टूटने का पानी नाक तक आ जायेगा ...

तुम मन बहलाने के लिए 
यूँ कहें - मज़ा लेने के लिए 
प्रतिस्पर्द्धा की तृप्ति के लिए 
गड़े मुर्दे उखाड़ो 
अपनी मंशा शांत करो 
किसी के दर्द का मज़ाक उड़ाओ 
पर एक बार गिरेबान में देखो 
तुम भी न पतिव्रता हो न पत्नीव्रता
न श्रवण,न भरत 
क्योंकि क्षुद्र मानसिकतावाले ही 
दूसरों के दर्द में कुटिल मुस्कान बिखेरते हैं !
जो दर्द के समंदर से जा मिलते हैं 
वे आनेवाली नदियों का मर्म समझते हैं !!

टूटे रिश्तों के कारण 
हताशा में हुए प्रलाप में नहीं दिखते 
प्रलाप तो एक सुनामी है 
सत्य का भी,झूठ का भी 
बारीकी से अगर तुम टूटे नहीं कभी 
तो बारीकी से समझना सहज,सरल नहीं !
बेवजह चर्चा गोष्ठी बैठने,बैठाने का कोई अर्थ नहीं 
जिस रिश्ते को व्यक्तिविशेष निभाना नहीं चाहता 
उसे समाज,परिवार्,बच्चे ....
किसी का भी हवाला देकर निभाने की सलाह सही नहीं 
क्योंकि उसकी चिंगारियां 
समाज,परिवार,बच्चों के जिस्म और मन पर पड़ती हैं 
और घर' शमशान हो जाता है ....

किसी रिश्ते को तोड़ने से पहले 
तथाकथित तोडनेवाला 
स्वयं असह्य मानसिक द्वन्द से गुजरता है 
हर खौफ उसके जेहन में उभरता हैं 
टूटने से पहले वह कई मौत मरता है 
तब अकेलेपन को चुनता है 
सन्नाटे से दोस्ती करता है ..........

गड़े मुर्दे समान दर्द को कुरेदकर 
उसकी कहानी सुनकर 
फिर यह कहावत दुहराकर 
कि - ताली एक हाथ से नहीं बजती ....
क्या मिलेगा तुम्हें?
तुम ठहाके लगाओ 
या मगरमच्छी आंसू बहाओ 
दर्द सह्नेवाले शून्य हो जाते हैं 
और उनकी शून्यता से बिना उनके चाहे 
एक आवाज़ आती है तुम जैसों के लिए 
- सब दिन होत न एक समान !!!


51 टिप्‍पणियां:

  1. किसी रिश्ते को तोड़ने से पहले
    तथाकथित तोडनेवाला
    स्वयं असह्य मानसिक द्वन्द से गुजरता है.....sach kaha,rishton ko kabhi nahin todna chahiye....upar-neeche to chalta hi rahta hai.....

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  2. दर्द को ज्यादा उघेदना ठीक नहीं होता ... टूटते रिश्तों की चुभन रहती है जिसे दबा रहना ठीक है ...

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  3. बहुत बड़ी बात कह दी आपने ...और जब किसी दुखी मन की आह निकलती है ...तो दावानल सी सब कुछ भस्म कर देती है

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  4. व्यापक परिभाषा रिश्तों की भी, दर्द की भी

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  5. जो दर्द के समंदर से जा मिलते हैं
    वे आनेवाली नदियों का मर्म समझते हैं
    टूटने से पहले वह कई मौत मरता है
    तब अकेलेपन को चुनता है
    सन्नाटे से दोस्ती करता है
    एक आवाज़ आती है तुम जैसों के लिए
    - सब दिन होत न एक समान !!!
    ********************
    कुछ तो लोग कहेगें
    बिना कहे जिएगें कैसे .....

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  6. भाई वाह ..
    बेहतरीन अभिव्यक्ति है रश्मिप्रभा जी !

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  7. जीवन की कडवी यादों को
    अपने मन से भूले कौन ?
    जीवन के प्यारे रिश्तों मे
    पड़ी गाँठ, सुलझाए कौन ?
    गाँठ पड़ी,तो कसक रहेगी,हर दम चुभता रहता तीर
    जानबूझ कर,धोखे देकर,कैसे नज़र झुकाते, गीत!

    याद मुझे अपमान, अश्रु का
    जिसे देख,कुछ लोग हँसे थे
    सिर्फ तुम्हारी ही आँखों से ,
    दो दो आंसू , साथ बहे थे !
    उन्ही दिनों लेखनी उठी थी,अश्रु पोंछ कर,लिखने गीत !
    विश्वविजय का निश्चय करके,निकले दिल से मेरे गीत !

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  8. किसी कवि की रचना देखूं !
    दर्द उभरता , दिखता है !
    प्यार, नेह दुर्लभ से लगते ,
    क्लेश हर जगह मिलता है !
    क्या शिक्षा विद्वानों को दूं,टिप्पणियों में,रोते गीत !
    निज रचनाएं,दर्पण मन का,दर्द समझते मेरे गीत !

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  9. क्या कहा जाए ...सच ही ..सब दिन होत न एक सामान.

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  10. kisi ne kaha hai - ye mahan vyaktiyon par chheentaa kashi karne vaalon ke liye hai (jaise mahatma gandhi, pandit nehru par)

    ki

    neeche ke log (chhoti pravrati vaale, vaise hi jaise aapne apni kavita men chitrit kiye hain) un tak to (oonche) pahunch nahin sakte, bas keechad uchhal kar khush ho lete hain!

    kisi ki barbaadi par hansne wale kitne a-manaviy hote hain, kitne bedard, wo hote hain duniyadari wale!

    meera ki tarah gaate chalo 'mero dard na jaane koy!'

    wo ho jaan ta hai jiske dil par guzarti hai.

    prem

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  11. jo a-manveey hote hain, yani sahriday nahin hote, ya jo kshudr manuvriti ke hote hain wo chhetan-kashi se dil bahlate hain, aur yun doosron ka mazak bana kari sukhi rahte hain - ve auron ke dard par apni zindgi men koi dukh nahin ane dena chaahte.

    aur jo adna log hain, chhote log hain wo oonche logon ki (mahaan logon ki) buraiyan chhant chhant kar nikalte hain hain aur unhen dohra kar hanste hain, maza lete hain - un tak pahunch nahin sake to un par keechad uchhal kar khush hote hain!
    khush kismat hain wo log!
    ham apna dard to sahte hi hain, auron ka dard apne dil men paal kar 'mahan' banne ki koshish men lage rahte hain!
    prem
    (yahan hindi men kaise type karen?)

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  12. जब रिश्ते टूटते हैं, तो उनके कारणों का कोई एक स्पष्टीकरण नहीं दिया जा सकता. कभी एकतरफ़ा कारणों से टूटता है, तो कभी दोनों की कमी होती है. इसलिए ये कहना सामान्यीकरण होगा कि "ताली एक हाथ से नहीं बजती" क्योंकि हर बार, हर एक केस में ऐसा नहीं होता. कभी-कभी कोई एक सहते-सहते इतना टूट जाता है कि और नहीं निभा सकता और वो घड़ी, जबकि उसके सब्र की सीमा खत्म हो जाय, कभी भी आ सकती है. कभी जल्दी तो कभी बहुत देर में.

    "जिस रिश्ते को व्यक्तिविशेष निभाना नहीं चाहता
    उसे समाज,परिवार्,बच्चे ....
    किसी का भी हवाला देकर निभाने की सलाह सही नहीं
    क्योंकि उसकी चिंगारियां
    समाज,परिवार,बच्चों के जिस्म और मन पर पड़ती हैं
    और घर' शमशान हो जाता है ...."

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  13. जो दर्द के समंदर से जा मिलते हैं
    वे आनेवाली नदियों का मर्म समझते हैं
    टूटने से पहले वह कई मौत मरता है
    तब अकेलेपन को चुनता है
    सन्नाटे से दोस्ती करता है

    ....निशब्द कर दिया...बहुत मार्मिक..

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  14. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवारीय ब्लॉग बुलेटिन पर |

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  15. किसी रिश्ते को तोड़ने से पहले
    तथाकथित तोडनेवाला
    स्वयं असह्य मानसिक द्वन्द से गुजरता है
    हर खौफ उसके जेहन में उभरता हैं
    टूटने से पहले वह कई मौत मरता है
    तब अकेलेपन को चुनता है
    सन्नाटे से दोस्ती करता है ...
    रिश्ते तोड़ने का कष्ट खुद भी झेलता है
    latest post मोहन कुछ तो बोलो!
    latest postक्षणिकाएँ

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  16. किसी रिश्ते को तोड़ने से पहले
    तथाकथित तोडनेवाला
    स्वयं असह्य मानसिक द्वन्द से गुजरता है
    हर खौफ उसके जेहन में उभरता हैं


    बहुत सुंदर रचना,
    कुछ रचनाएं ऐसी होती है, जो हर आदमी के जीवन चक्र से मिलती जुलती हैं। ऐसे में भ्रम होता है कि रचना मेरे लिए ही तो नहीं लिखी गई है।
    खैर.. मन को छू गई

    जवाब देंहटाएं
  17. किसी रिश्ते को तोड़ने से पहले
    तथाकथित तोडनेवाला
    स्वयं असह्य मानसिक द्वन्द से गुजरता है
    हर खौफ उसके जेहन में उभरता हैं


    बहुत सुंदर रचना,
    कुछ रचनाएं ऐसी होती है, जो हर आदमी के जीवन चक्र से मिलती जुलती हैं। ऐसे में भ्रम होता है कि रचना मेरे लिए ही तो नहीं लिखी गई है।
    खैर.. मन को छू गई

    जवाब देंहटाएं
  18. किसी रिश्ते को तोड़ने से पहले
    तथाकथित तोडनेवाला
    स्वयं असह्य मानसिक द्वन्द से गुजरता है

    सच में ...... गहरी अभिव्यक्ति

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  19. गड़े मुर्दे से कारणों को निकालने पर
    सिर्फ दुर्गन्ध आएगी
    तू तू मैं मैं के वीभत्स स्वर सुनाई देंगे
    और सही कारण लुप्त रहेगा
    और टूटने का पानी नाक तक आ जायेगा ...
    सही कहा है ......

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  20. रिश्ते क्यों टूटे , समय के साथ कारण महत्वपूर्ण नहीं रह जाते , इसलिए गड़े मुर्दे उखाड़ने से दर्द , दुर्गन्ध से अतिरिक्त कुछ हासिल नहीं !
    दूसरों के दर्द पर कहकहे लगाने वाले कैसे भूल जाते हैं की सब दिन होत न एक समान !

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  21. किसी रिश्ते को तोड़ने से पहले
    तथाकथित तोडनेवाला
    स्वयं असह्य मानसिक द्वन्द से गुजरता है
    हर खौफ उसके जेहन में उभरता हैं
    टूटने से पहले वह कई मौत मरता है
    तब अकेलेपन को चुनता है
    सन्नाटे से दोस्ती करता है ..........

    टूटने से पहले वह कई मौत मरता है ...बेहद गहन एवं भावमय करती अभिव्‍यक्ति

    सादर

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  22. पर एक बार गिरेबान में देखो
    तुम भी न पतिव्रता हो न पत्नीव्रता
    न श्रवण,न भरत
    क्योंकि क्षुद्र मानसिकतावाले ही
    दूसरों के दर्द में कुटिल मुस्कान बिखेरते हैं !
    जो दर्द के समंदर से जा मिलते हैं
    वे आनेवाली नदियों का मर्म समझते हैं !!nice

    जवाब देंहटाएं
  23. किसी रिश्ते को तोड़ने से पहले
    तथाकथित तोडनेवाला
    स्वयं असह्य मानसिक द्वन्द से गुजरता है ,,,,

    बहुत सुंदर रचना ,,,,

    RECENT POST: पिता.

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  24. सच ही, भावनात्मकता में बहकर अक्सर हम रिश्तों को मजबूरी बनाकर अपनाए रहते हैं। सटीक और मनोबल बढ़ानेवाली रचना।
    सादर,
    मधुरेश

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  25. संबंधों में सुख भी है, बद्धता भी है, बहुत सुन्दर रचना।

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  26. गड़े मुर्दे से कारणों को निकालने पर सिर्फ दुर्गन्ध आएगी ..........शब्दों का चयन अद्भुत......बहुत ही सुन्दर।

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  27. आज समाज में ऐसा हो रहा है बस इतना ही कहना काफी है..हर क्यों का उत्तर नहीं होता..प्रभावशाली रचना..

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  28. सुन्दर भाव. रिश्तों में गुज़रे बुरे वक़्त कुरेदने से सिवाय दर्द और क्या हासिल हो.

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  29. रिश्तों के टूटने और जुड़ने का दर्द बहुत व्यथित करता है. सुंदर भावपूर्ण रचना.

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  30. ये तो ब्रह्म वाक्य है , यदि ह्रदय में बस जाए तो जीवन सफल हो जाए..नहीं तो टूटन के अतिरिक्त कुछ नहीं बचता है..

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  31. दर्द सह्नेवाले शून्य हो जाते हैं
    और उनकी शून्यता से बिना उनके चाहे
    एक आवाज़ आती है तुम जैसों के लिए
    - सब दिन होत न एक समान !!!
    dard aur tutan ka marmik chitran

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  32. didi ki rachna.. speechless kar deti hai.. samajh me nahi aata comment me likhun to likhun kya :)

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  33. बहुत गहरी और विचारणीय सोच...

    जो दर्द के समंदर से जा मिलते हैं
    वे आनेवाली नदियों का मर्म समझते हैं !!

    बहुत प्रभावशाली रचना, शुभकामनाएँ.

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  34. सच है रिश्ते बन तो आसानी से जाते हैं, लेकिन टूटने के वक़्त असहनीय पीड़ा देते हैं... गहन भाव.. आभार

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  35. रिश्तों की गहराई व्यक्त करती बेहतरीन भावपूर्ण रचना...

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  36. किसी रिश्ते को तोड़ने से पहले
    तथाकथित तोडनेवाला
    स्वयं असह्य मानसिक द्वन्द से गुजरता है
    हर खौफ उसके जेहन में उभरता हैं
    टूटने से पहले वह कई मौत मरता है
    तब अकेलेपन को चुनता है

    पर ये समाज के ठेकेदार इन बातों को नहीं समझते ...
    बहुत मुश्किल होता है इन परिस्थियों से खुद को निकाल पान ...
    शायद इसमें माता -पिता के सहयोग की सबसे बड़ी आवश्यकता होती है ...

    आपने एक बहुत बड़े प्रश्न को सामने रखा है ..
    न जाने कितनी स्त्रियाँ इस दौर से गुजर कर फिर उसी कुंऐं में छलाँग लगा देती हैं जिससे वे निकलना चाहती हैं .....

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  37. बहुत गंभीर चिंतन....बहुत बढ़िया रचना ..
    रिश्ते कितने भी बुरे हों फिर भी अपनी ओर से कभी भी नहीं तोडना चाहिए क्योंकि पानी कितना भी गन्दा हो प्यास नहीं तो वह आग तो बुझा ही लेता है .. और सही कहा आपने सब दिन होत न एक समान

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  38. रिश्तों की सोच कर ...हर दिल अजीज़ की बात कह दी है आपने रश्मि दी

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  39. बिलकुल सच लिखा है रश्मि जी ..सब दिन होत न एक समान ....

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एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...