29 अक्टूबर, 2012

अपमान से सम्मान का तेज बढ़ता है


सम्मान का अपमान नहीं हो सकता 
गरिमा धूमिल नहीं की जा सकती 
जो मर्यादित है 
उसे गाली देकर भी 
अमर्यादित नहीं किया जा सकता ...
शमशान में कर मांगते 
राजा हरिश्चंद्र की सत्य निष्ठा नहीं बदली 
पुत्रशोक,पत्नी विवशता के आगे भी 
हरिश्चंद्र अडिग रहे 
भिक्षाटन करते हुए 
बुद्ध का ज्ञान बाधित नहीं हुआ 
....
अपमान से सम्मान का तेज बढ़ता है 
अमर्यादित लकीरों के आगे 
मर्यादा का अस्तित्व निखरता है 
विघ्न बाधाओं के मध्य 
सत्य और प्राप्य का गौरव प्रतिष्ठित होता है 
...
उन्हीं जड़ों को पूरी ताकत से हिलाया जाता है 
जिसकी पकड़ पृथ्वी की गहराई तक होती है 
और दूर तक फैली होती है ...
पीड़ा होना सहज है 
पर पीड़ा में भय !!!
कदाचित नहीं ...
मजबूत जड़ें प्रभु की हथेलियों पर टिकी होती हैं 
और .... 
स्मरण रहे 
सागर से एक मटकी पानी निकाल लेने से 
सागर खाली नहीं होता !
हाँ खारापन उसका दर्द है 
क्योंकि अमानवीय व्यवहार से 
दर्द की लहरें उठती हैं 
बहा ले जाने के उपक्रम में 
निरंतर हाहाकार करती हैं 
....
पर प्रभु की लीला -
उन लहरों में भी अद्भुत सौन्दर्य होता है 
दर्द की गहराई में जो उतर गया 
वह मोती को पा ही लेता है !

42 टिप्‍पणियां:

  1. पीड़ा होना सहज है
    पर पीड़ा में भय !!!
    कदाचित नहीं ...
    मजबूत जड़ें प्रभु की हथेलियों पर टिकी होती हैं
    प्रत्‍येक शब्‍द में गहन भाव ... हमेशा की तरह सशक्‍त लेखन
    सादर

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  2. पर प्रभु की लीला -
    उन लहरों में भी अद्भुत सौन्दर्य होता है
    दर्द की गहराई में जो उतर गया
    वह मोती को पा ही लेता है !

    बहूत सुन्दर जीवन दर्शन है
    गहराई में उतरने की जिसके पास जितनी क्षमता उसी अनुपात में आनंद है
    उस आनंद को चाहे तो मोती भी कह लीजिये !

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  3. सही तो चाँद पर मैला फेंकने से चाँद मैला थोड़े ही होता है...
    बेहतरीन भावपूर्ण कविता

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  4. प्रभु को समर्पित सम्मानीय कार्य करने पर अपमान होने की गुंजाईश नहीं रह जाती ....सच्चा कर्म इनता कर्मठ हो कि कोई अपमान करने की सोच भी ना सके ....

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  5. सच है ये संसार विपरीतता के तर्क पर ही चलता है।

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  6. सागर से एक मटकी पानी निकाल लेने से
    सागर खाली नहीं होता !
    हाँ खारापन उसका दर्द है
    क्योंकि अमानवीय व्यवहार से
    दर्द की लहरें उठती हैं
    बहा ले जाने के उपक्रम में
    निरंतर हाहाकार करती हैं...

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  7. दर्द की गहराई में जो उतर गया
    वह मोती को पा ही लेता है !true

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  8. बहुत प्रेरक कविता। मुझे इसे पढ़कर रश्मिरथी का तीसरा सर्ग और उसकी पंक्तियां याद आ गए।

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  9. अपमान से सम्मान का तेज बढ़ता है
    अमर्यादित लकीरों के आगे
    मर्यादा का अस्तित्व निखरता है
    विघ्न बाधाओं के मध्य
    सत्य और प्राप्य का गौरव प्रतिष्ठित होता है,

    आपने कथ्य सही है,,,,

    RECENT POST LINK...: खता,,,

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  10. सागर से एक मटकी पानी निकाल लेने से
    सागर खाली नहीं होता !
    हाँ खारापन उसका दर्द है
    क्योंकि अमानवीय व्यवहार से
    दर्द की लहरें उठती हैं
    बहा ले जाने के उपक्रम में
    निरंतर हाहाकार करती हैं ..............भावपूर्ण कविता

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  11. रश्मि जी, जिंदगी की सबसे बड़ी सच्चाई को आपने बहुत सटीक शब्दों के माध्यम से व्यक्त किया है.
    बधाई!

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  12. कितनी सच्ची बात कही आपने ......वाकई
    सम्मान का अपमान नहीं हो सकता
    गरिमा धूमिल नहीं की जा सकती ...अगर कोई कोशिश भी करता है तो स्वयं अपना मखौल उड़ाता है ...आपकी हर रचना संजोने लायक होती है ...

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  13. रात - काला - अँधेरा दिन के उजाला का महत्त्व बढ़ा देता है ,उसी प्रकार अपमान ,सम्मान का महत्व और बढाता है -गहन चिंतन है आपका.

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  14. सच ही है ! खरे, सच्चे सम्मान को कोई नहीं मिटा सकता !
    ~सादर !

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  15. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार ३० /१०/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका स्वागत है |

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  16. ये रचना नहीं आजकी परिस्थिति में जीने का मेडिसिन हैबहुत ही बेहतरीन और सार्थक अभिव्यक्ति...
    :-)

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  17. बहुत सुन्दर बात दी....
    दिल को छू गयी...भाव मन भिगो गए...

    सादर
    अनु

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  18. जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखि तिन तैसी... बुनियाद पर ईमारत टिकी होती है...अपनी नीव पर भरोसा हो तो सारे झंझावातों से निपटा जा सकता है...

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  19. मजबूत जड़ें प्रभु की हथेलियों पर टिकी होती हैं
    ....और उन्हें उखाड फेंकना संभव नही होता ....बेहद भावपूर्ण .....दी! मन की बात ....अनुभव के साथ ....

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  20. दर्द की गहराई में जो उतर गया
    वह मोती को पा ही लेता है !sahi bat....

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  21. जी बिलकुल ...एक बैक़ ड्रॉप में हो तभी दूसरे का रूप निखरता है

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  22. सटीक बात ...सही ढंग समझा दी आपने ...आभार

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  23. अपमान से सम्मान का तेज बढ़ता है ...
    अपनी जिंदगी का ही अनुभव है , हर दिन इसी विश्वास से आगे बढ़ते रहे हैं !

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  24. आपके इस मोती पर आँखें टिकती नहीं है पर मन में झिलमिला रहा है..

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  25. मन की इस वैतरणी भाव गंगा में कौन न बह जाए .मनोहर अति सुन्दर भाव जगत की रचना सशक्त सम्प्रेष्ण लिए .बधाई .

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  26. सम्मान का अपमान नहीं हो सकता
    गरिमा धूमिल नहीं की जा सकती

    सुन्दर भाव संयोजन

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  27. अपमान से सम्मान का तेज बढ़ता है
    अमर्यादित लकीरों के आगे
    मर्यादा का अस्तित्व निखरता है

    सम्मान को स्वीकार न कर जो लोग सोचते हैं की दूसरे क अपमान कर दिया ....यह नहीं जानते कि सम्मान और निखर गया है ... बहुत सुंदर और गहन भाव ।

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  28. अमानवीय व्यवहार से
    दर्द की लहरें उठती हैं
    बहा ले जाने के उपक्रम में
    निरंतर हाहाकार करती हैं ..exceelent

    बहुत दिन बाद आया हूँ ब्लॉग पर कई कवितायेँ पढ़ी यक़ीनन मन को सुकून और ख़ुशी मिली ...बहुत खूब लिखा है हमेशा की तरह

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  29. पर प्रभु की लीला -
    उन लहरों में भी अद्भुत सौन्दर्य होता है
    दर्द की गहराई में जो उतर गया
    वह मोती को पा ही लेता है !

    सुन्दर...! :)

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  30. दर्द की गहराई में जो उतर गया
    वह मोती को पा ही लेता है !

    मन को सुकून देती पंक्तियाँ...

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  31. पर प्रभु की लीला -
    उन लहरों में भी अद्भुत सौन्दर्य होता है
    दर्द की गहराई में जो उतर गया
    वह मोती को पा ही लेता है !
    कितनी खूबसूरती से लिख दी आपने इतनी गहरी और सुंदर बात ऐसा कमाल बस सिर्फ आप ही कर सकती है....:)

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  32. भावों का अद्भुत कंट्रास्ट प्रस्तुत करती हैं आप दीदी, बस चिंतन की एक नयी दिशा मिल जाती हैं.. कमाल!!

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  33. अपमान से सम्मान का तेज बढ़ता है
    अमर्यादित लकीरों के आगे
    मर्यादा का अस्तित्व निखरता है
    दर्द की गहराई में जो उतर गया
    वह मोती को पा ही लेता है !
    हमेशा की तरह निशब्द कराती अभिव्यक्ति !!

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  34. जिसकी जडें गहराई तक जाती हों वह वृक्ष हिलते नही । सच है पर अपमान सहने के लिये उतना ज्ञानी होना पडता है ।

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  35. उन्हीं जड़ों को पूरी ताकत से हिलाया जाता है
    जिसकी पकड़ पृथ्वी की गहराई तक होती है
    और दूर तक फैली होती है ... अद्भुत रचना आभार

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  36. "उन्हीं जड़ों को पूरी ताकत से हिलाया जाता है
    जिसकी पकड़ पृथ्वी की गहराई तक होती है
    और दूर तक फैली होती है ...
    पीड़ा होना सहज है
    पर पीड़ा में भय !!!
    कदाचित नहीं ..."
    बहुत सम्बल दे गयी ये रचना ..
    सादर
    मधुरेश

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  37. बिलकुल सही लिखा है आपने. सोने को फेंक दो आग में, सोना ही निकलेगा.

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एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...