18 मई, 2023

हवाओं के रुख़ का सामना


 

दौर का कमाल है,
बड़े बुजुर्गो की कौन कहे
जिनके दूध के दांत भी नहीं टूटे हैं
वे भी बुद्धिजीवी हैं,
वे सोच समझकर भले न बोलें,
आपका मान हो न हो 
आपको उसके मान का ख्याल रखना है,
अन्यथा बुरा असर पड़ेगा !

पहले तो छोटी सी बात पर कान उमेठे जाते थे
बड़ों के बीच से भगा दिया जाता था
घड़ी देखकर पढ़ने बैठा दिया जाता था
बात असर,बेअसर की करें
तो अति किसी बात की अच्छी नहीं
- वह प्यार हो या गुस्सा हो !

नि:संदेह, जन्मगत गुण अवगुण होते हैं,
पर वस्तु हो, फसल हो या मनुष्य
समय पर सिंचाई,
काट छांट... उसके लिए जरूरी है
उत्तम, श्रेष्ठ,बुद्धिजीवी घोषित करने से पहले 
उसे मौसम को सहने का ढंग सिखाइए
कीड़ों से बचाइए,
सही -गलत का फर्क बताइए
...
भले ही जमीन आपकी है,
पर हवाओं के रुख़ का सामना तो करना ही होगा !!!

7 टिप्‍पणियां:

  1. स्वीकार करना हवा के रुख को उड़ा कर नहीं ले जाता है स्व को |

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  2. सचमुच कितना सटीक लिखा आपने।
    सराहनीय सृजन दीदी।
    सस्नेह प्रणामःसादर।
    -----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १९ मई २०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  3. 'उसे मौसम को सहने का ढंग सिखाइए
    कीड़ों से बचाइए,
    सही -गलत का फर्क बताइए '
    - टिके रहने के लिए यह बहुत आवश्यक है ,और बातें तो पीछे रह जाती हैं.

    जवाब देंहटाएं
  4. सच में -- भले ही पहले के समय की तुलना न करें आज से लेकिन संभालना तो होगा ही । सटीक सलाह देती हुई रचना ।

    जवाब देंहटाएं
  5. नि:संदेह, जन्मगत गुण अवगुण होते हैं,
    पर वस्तु हो, फसल हो या मनुष्य
    समय पर सिंचाई,
    काट छांट... उसके लिए जरूरी है
    उत्तम, श्रेष्ठ,बुद्धिजीवी घोषित करने से पहले
    उसे मौसम को सहने का ढंग सिखाइए
    कीड़ों से बचाइए,
    सही -गलत का फर्क बताइए
    बहुत सटीक...
    काट छाँट जरूरी है हवाओं का रुख समझने के लिए जन्मजात गुण पर्याप्त नहीं।
    लाजवाब सृजन।

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