27 सितंबर, 2008

मोह !!!!!!!


खट खट खट खट.........
मोह दरवाज़े पर
दस्तक देता रहता है !
कान बंद कर लूँ
फिर भी ये दस्तकें
सुनाई देती हैं -
और आंखों में
कागज़ की नाव बनकर तैरती हैं !
आँधी,तूफ़ान,घनघोर बारिश में लगा,
अब ये नाव डूब चली,
पर आँधी थमते
दस्तकें सुनाई देती हैं........
मैं आखिरी कमरे में चली जाती हूँ
पर मोह की दस्तकों से
मुक्त नहीं हो पाती.......
बैठ जाती हूँ हार के
....... प्रभु तुम ही कहते हो,
तुम्हारा क्या गया ?
तुम क्या लाये थे ?
तो - यह मोह,
क्यूँ मेरे साथ चलता है !

23 टिप्‍पणियां:

  1. tumhaara kya gaya ?
    tum kya laaye thai ?
    to - ye moh,
    kyun mere saath chalta hai?

    bahut sahi bhavna . yahi samajh liya to is sansaar se mukti mil jaayegi ....zindagi ka ek yatharth prashn...

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  2. काश इस मोह से मुक्ति मिल जाती दीदी....अच्छी लिखी है..!!

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  3. वाह दी, बहुत ही सटीक चित्रण किया है अपने मोह का.. मोह माया से पीछा छुडाना इतना आसान होता तो लगभग सभी लोग सुखी रहते.. मोह और माया का चक्कर ही तो इंसान को सब कुछ करने को विवश कर देता है.. इंसान वो भी करने कोई तैयार हो जाता है जो वो करना नहीं चाहता..
    भागवान श्री कृष्ण ने तभी तो गीता में उपदेश दिया था की कर्म करो फल की चिंता मत करो.. तेरा क्या गया जो तू रोता है.. तू क्या लाया था जो ये मेरा है वो मेरा है कहता रहता है.. ना कुछ हम ले कर आये थे ना ही ले कर जायेंगे.. उन्होंने तो सारी सच्चाई कह दी है गीता में.. हम लोग अर्जुन नहीं बन पा रहे हैं कि हम इस मोह माया के बंधन से खुद कोई मुक्त कर सकें.. मोह ही करना है तो हम उस कृष्ण जी के लिए मोह क्यूँ नहीं कर पाते ? उनसे जिस दिन सच्चे दिल से प्यार हो जायेगा सारा मोह इस दिल से निकल जायेगा.. उनकी शरण में मोह और माया का कोई काम नहीं..
    अच्छी कविता लिखी है आपने.. बधाई दी..!!

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  4. प्रभु तुम ही कहते हो,
    तुम्हारा क्या गया ?
    तुम क्या लाये थे ?
    तो - यह मोह,
    क्यूँ मेरे साथ चलता है !
    bahut sahi,hum khali haath aaye magar mann moh mein aise bandh jata hai,nikal hi nahi paata,kuch paane ki lalsa hamesha rehti hai usko.bahut sundar arth bodh.

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  5. jab tak hai yah deh
    kaise virakt ho sakte hain
    sansarikta se
    moh he nahin
    anya char-kaam,krodh,mad-aur lobh
    bhee to hamen
    karte hain akarshit.
    *MOH MEIN NIMGNATA AUR USASE MUKTI KEE CHHATPATAHAT KA SUNDER CHITRAN KIYA HAI APNE.
    http://ashoklavmohayal.blogspot.com

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  6. मोह है ... माया नहीं है ....
    प्रभु का दिया है !

    प्रभु !!!!

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  7. गीता के उपदेश सी है यह आपकी रचना ..बहुत सुंदर

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  8. सार्थक और सटीक .. लाज़बाब मज़ा आ गया ... मेरे ब्लॉग पर सरकारी दोहे पढने के लिए आपको सादर आमंत्रण है

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  9. बहुत खुब मेने कई बार कोशिश की हे मोह से छुटकारा पाने की लेकिन पहले से भी ज्यादा फ़ंस गया, यह काम साधारण लोगो के बस का नही, एक अति सुन्दर ओर प्रेणादायक कविता के लिये धन्यवाद

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  10. Moh ek meetha sa ahsas hai. moh jiske prati bhi ho sahaj chhutata nahin. bahut sundar chitran kiya aapne.

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  11. as always b'ful piece of poetry..!

    what i think we are all human beings. And desires are our basic need. So we cant left them..!!

    WE ARE ALL LIVING IN ILLUSION.
    JO JAISA DIKHTA HAI WO WAISA HOTA NAHI..AUR JO JAISA HOTA HAI WO WAISA DIKHTA NAHI.N
    SO ALL PHYSICAL THINGS R RELATED TO "MAYA"

    Aur jo ise tyag paya hai..wo saccha snayasi kehlayaa hai..!
    "kaga sab tan khaiyo mera chun chun khaiyo mans ..DO NAINA mat khaiyo mohe piya milan ki aass.......
    (a very true example of "MAYA")
    SO we are bound wid it...!

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  12. moh choot jaaye tho
    mukti kee raah aasan ho jatee hai...bahut sundar....


    sa-sneh
    gita pandit

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  13. यह मोह ही तो है, जो विपरीत परिस्थितयों से जूझने की शक्ति प्रदान करती है | लगाब न हो तो जीवन नीरस है, मृतप्राय है |

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  14. रश्मि जी...बहुत अर्थ पूर्ण रचना है ये आप की...बहुत ही सुंदर...बधाई.
    नीरज

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  15. vivekananda told in his great creation 'karmayoga'---- "Liberation means full freedom -freedom from the bondage of good,as well as from the bondage of evil.Real love makes us unattached.The selfness and unattached man may live in the very heart of crowded and sinful city,yet he will not be touched by sin."
    according to a great english poet ROBERT FROST - " The beauty of nature is charming.Man has so many duties to perform.He has his promises to keep.He has to continue his journey of life.His busy life prevents him from enjoying the beauty of nature."
    मोह तो हर वक़्त लगा ही रहता है,लेकिन इस मोह को अपनी कमजोरी नहीं बनाना चाहिए... और अगर ऐसा हुआ तो आदमी गुलाम हो जाता है,इस मोह का....'मोह' जिसका अपना कोई असितत्व है ही नहीं,ये 'मोह' तो हमारे अन्दर पैदा होता है! अगर हम चाहे तो इसकी उत्त्पति ही न होने दे....फिर खुशियाँ ही खुशियाँ..............ek khubsurat rachna maa

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  16. जीवन -दर्शन के मूलभूत द्वंद को शब्दों में रचने की सार्थक कोशिश है...

    पर मोह से भाग क्यों रही हैं ,उससे कौन बचा है आजतक ?????
    इस ब्रह्माण्ड के ग्रहों-पिंडो का आपस में मोहपास नहीं होता ,तब ???? शून्य का भी अस्तित्व नहीं होता ....
    वो "निर्मोही" भी तो "निर्गुण-ब्रह्म" से मोह रखते हैं !!!!!
    मानवमात्र के इस धरा पर होने के मूल में ही ये मोह है ,फिर पलायन क्यों?
    *****मैं तो बेलाग बेलौस मोह रखने में विश्वास करता हूँ*****

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  17. Di charanSparsh!

    moh to saath hai ya saarth hai!
    tore sang jeewan bhar nayno kee barsaat hai!!
    julmee tene bhee roop dhara hai bhala..
    bin tere jine main bhee bhala koyee baat hai!!...ehsaas!

    di kalam kee aur veecharon kee sarthakte kahan se le aatee hain aap...us khajaane ka rasta bataeeye na.......sundar ya ati sundar bina kisi alankaran ke bina mahima mandan ke aap saralta se kaavvy main apnee baat keh deti hain...yahi to kamaal hai



    ...aapka Ehsaas!

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  18. सातवी कक्षा में एक कविता पढ़ी थी.......
    " और भी दूं"
    उसमे पढ़ा था.......... तोड़ता हूँ मोह का बंधन क्षमा दो.........
    तब सिर्फ पढ़ा था नहीं पता की समझ पाई थी या नहीं,
    जैसे जैसे बड़ी हुई तब जाना की मोह के बंधन को तोड़ना नामुमकिन है........
    हम मोह से बंधे हुए है तभी ये संसार भी बंधा हुआ है......
    कही ये मोह ही सफलता का सूचक भी है,
    तो कही लालच की शुरुआत भी......
    यदि किसी चीज़ का मोह न हो तो ज़िन्दगी में कुछ पाने की चाह ही समाप्त हो जायेगी......
    हर आने वाला कल ek मोह लिए हुए है........
    खट खट खट खट
    मोह दरवाजे पर दस्तक देता है........
    यही जीवन सत्य है.........
    मैं आखिरी कमरे में चली जाती हूँ
    पर मोह की दस्ताको से मुक्त नहीं हो पाती......... सच है ये
    दीदी बहुत ही सरलता se आपने जीवन के इस सत्य को समझाया है..........

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  19. अगर मोह ना हो तो शायद कोई दुःख कोई इच्छा ना हो इस जरा से मोह ने क्या क्या नहीं दिखाया इसकी सबसे बड़ी सच्चाई तो इस "काश" शब्द मे छुपी है जो बार बार मोह के मायाजाल मे खुद को घिरा देख यही बोलता है "काश ऐसा होता"...........काश..............

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  20. moh....iske bina insan insan kaha rahta hai..ye to uski janamjaat fitrat hai janam lete hi uska moh ma ase ho jata hai swabhik hai ...bade hote hote to na jane kis kis ka moh....
    satya ka drshan hai yahan.
    sakhi with love

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  21. Moh choot jaaye tho
    mukti ki raah mil jaati hai....
    bahut acha likha hai aapne...

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दौड़ जारी है...

 कोई रेस तो है सामने !!! किसके साथ ? क्यों ? कब तक ? - पता नहीं ! पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से बहुत घबराहट होती है ! प्रश्न डराता है,...