आकाश की ऊँचाई ,
धरती का आँचल ,
चाँद की स्निग्धता ,
तारों की आँख मिचौली ,
हवाओं की शोखी ,
शाम की लालिमा ,
पक्षियों का घर लौटना.....
क्रमवार मैं इसमें जीती हूँ !
पर्वतों का अटल स्वरुप ,
इंसानों का अविस्मरनीय परिवेश -
मैं बहुत कुछ सीखती हूँ....
मैं एकलव्य की तरह
इनसे शिक्षा लेती हूँ
फिर दक्षिणा में,
अपने स्वरुप का वह हिस्सा देती हूँ,
जो उनका प्रतिविम्ब लगे !
अपने अन्दर ,
मैं - धरती,आकाश,हवा,पक्षी,शाम,पर्वत.....
और इंसानियत लेकर चलती हूँ
क्योंकि मुझे सार की खोज है.........................
धरती का आँचल ,
चाँद की स्निग्धता ,
तारों की आँख मिचौली ,
हवाओं की शोखी ,
शाम की लालिमा ,
पक्षियों का घर लौटना.....
क्रमवार मैं इसमें जीती हूँ !
पर्वतों का अटल स्वरुप ,
इंसानों का अविस्मरनीय परिवेश -
मैं बहुत कुछ सीखती हूँ....
मैं एकलव्य की तरह
इनसे शिक्षा लेती हूँ
फिर दक्षिणा में,
अपने स्वरुप का वह हिस्सा देती हूँ,
जो उनका प्रतिविम्ब लगे !
अपने अन्दर ,
मैं - धरती,आकाश,हवा,पक्षी,शाम,पर्वत.....
और इंसानियत लेकर चलती हूँ
क्योंकि मुझे सार की खोज है.........................
bahut sundar ehsaas hain.
जवाब देंहटाएंइंसानों का अविस्मरनीय परिवेश -
मैं बहुत कुछ सीखती हूँ....
मैं एकलव्य की तरह
इनसे शिक्षा लेती हूँ
saar yun khojate khojate mil hi jayega.bahut achchhi rachna lagi.
saadar
WAH, BAHUT HI SUNDAR KAVITA HAI..
जवाब देंहटाएंAUR INSAAN KO HUMESHA HI SEEKHTE BHI RAHNA CHAHIYE.. JISNE SEEKHNA BAND KAR DIYA WO EK TARAH SE THAM GAYA.. JAB KI-
JEEWAN CHALNE KA NAAM,
CHALTE RAHO SUBAH-O-SHAM..
IS LIYE SEEKHNA BAHUT JARURI HAI..
AUR JARURI NAHI KI KOI HATH PAKAD KAR SIKHAYE HI TABHI SEEKHA JAYE..
SEEKHNE WALA DEKH KAR BHI SEEKH SAKTA HAI..
HAR CHHEJ SE SEEKH SAKTA HAI.. PARWAT, NADEE, PAHAAD, CHIDIYA,
HAWA.. SABHI APNE ANDAR EK SANDESH LIYE RAHTE HAIN..
JARURAT HAI US NAJARIYE KI,
JIS NAJARIYE SE HUM WO SANDESH SEEKH SAKE..
BADHAAYI DI, IS SUNDAR KAVITA KE LIYE..!!
बहुत सुंदर दार्शनिक रचना...साधुवाद आप को इस अद्भुत अभिव्यक्ति के लिए...
जवाब देंहटाएंनीरज
kash aisee khoj sabki ho.....bahut khub!!
जवाब देंहटाएंkya baar hai hai, shabdo me saar garbhita saaf jhalkti hai
जवाब देंहटाएंbahut achche
Rakesh Kaushik
आकाश की ऊँचाई ,
जवाब देंहटाएंधरती का आँचल ,
चाँद की स्निग्धता ,
तारों की आँख मिचौली ,
हवाओं की शोखी ,
शाम की लालिमा ,
पक्षियों का घर लौटना.....
भाव और भाषा का सुन्दर समायोजन।
बहुत सुंदर एहसास है इस रचना के ..
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर कविता,सुन्दर भाव....
जवाब देंहटाएंमैं एकलव्य की तरह
इनसे शिक्षा लेती हूँ
फिर दक्षिणा में,
अपने स्वरुप का वह हिस्सा देती हूँ,
धन्यवाद
Saar khojane chale, aur vah bhi hava,pani......insaaniyat lekar. wah kya sabdon aur bhavnaon ka sundar sanyojan hai. bahut khoob.
जवाब देंहटाएंअपने अन्दर ,
जवाब देंहटाएंमैं - धरती,आकाश,हवा,पक्षी,शाम,पर्वत.....
और इंसानियत लेकर चलती हूँ
क्योंकि मुझे सार की खोज है.........................
Bahut achchi kavita, iiswar aapko shristi ke saar ko samajhne ki kshmta pradan kare.
आकाश की ऊँचाई ,
जवाब देंहटाएंधरती का आँचल ,
चाँद की स्निग्धता ,
तारों की आँख मिचौली ,
हवाओं की शोखी ,
शाम की लालिमा ,
पक्षियों का घर लौटना.....
क्रमवार मैं इसमें जीती हूँ !
khojiye saar milega ajarur.....
जवाब देंहटाएंbhaut kuch seekha ja skata hai is parkrti se hai na....
achi rachna lagee bahut.
ईश्वर द्वारा की गई प्रकृति रचना आकाश धरती चाँद ,
जवाब देंहटाएंतारे ,हवा शाम इनमें जीना ईश्वर की सत्ता स्वीकार करना ईश्वर का सनिध्य प्राप्त करना है पर्वतों का अटल स्वरुप साधना ,इंसानों अविस्मरनीय परिवेश एक उपासना का स्वच्छ निर्मल वातावरण दे रहा है इस सबको इस रूप में ग्रहण करना एक साधक हृदय के ही बूते की बात है इन पंक्तियों ने कवि के निच्छल मन के दर्शन करवा दिए हैं इनसे प्रतीत होता है कि कवि कितनी सूक्षम दृष्टि रखता है जीवन का एक-एक पल और प्रकृति का एक-एक कण कवि ने जीया है इनसे जीवन पाया है और इनके रचयिता को सराहया है उसकी राधना की है उसनें समा जाने की कामना की है -
न सुंदर भावनाओं की स्वामिनी को शतशत नमन
poetry versus discovery............खोज करने का यही तो तरीका है!जबतक हम प्रकृति मे घटित होनेवाले घटनाओं का गहराई से अध्ययन नहीं करेंगे , खोज हम कर ही नहीं सकते! 'science' भी तो यही कहता है....'कविता' भी तो एक तरह का खोज ही है,अपनी एहसासों का,अपनी भावनाओं का,अपने अन्दर होनेवाले उथल-पुथल का........'खोज' का विषय चाहे जो हो,इसके लिए हमें अपनी दिव्य-दृष्टि का उपयोग करना ही होगा.......और आपने तो अपनी दिव्य-दृष्टि का उपयोग किया और कर रही है...........आपकी खोज को दुनिया जान गयी है,और आने वाली पीढी भी इसे जान लेगी ............एक बेहद ही खुबसूरत रचना mam
जवाब देंहटाएंअपने अन्दर ,
जवाब देंहटाएंमैं - धरती,आकाश,हवा,पक्षी,शाम,पर्वत.....
और इंसानियत लेकर चलती हूँ
क्योंकि मुझे सार की खोज है
बहुत सुन्दरता से अपने भावः प्रकट करे हैं आपने , धरती,आकाश,हवा,पक्षी,शाम,पर्वत इश्वर ने इन्हें एक सार्थक रूप दिया उसी तरहां हमें भी इन सब के लिए बनाया है है सब खूबियाँ हमारे अन्दर हैं
है आकाश की ऊँचाई ,
धरती का आँचल ,
चाँद की स्निग्धता ,
तारों की आँख मिचौली ,
हवाओं की शोखी ,
शाम की लालिमा ,
पक्षियों का घर लौटना..
ये मर्म है मेरा तुम्हारा सबका इस सार को हमें ही खोजना है
इस तरहां सिर्फ आप ही सोच सकती हैं और कोई दूसरा नहीं बहुत बढ़िया :)
behad khoobsurat....
जवाब देंहटाएंAbha