27 फ़रवरी, 2009

होता है न ?


कभी-कभी
मैं प्रोज्ज्वलित तेज़ होती हूँ,
कभी
सारी पृथ्वी,
डगमगाती नज़र आती है,
कभी हौसला मेरी मुठ्ठी में होता है,
कभी कमज़ोर आंसू थमते नहीं...........
मैं ही सच होती हूँ,
मैं ही झूठ !
मैं ही अनंत,
मैं ही शून्य.....
क्या यह सबके साथ होता है?
क्या डर और हौसला साथ चलते हैं?
क्या सच की दीवार में ,
झूठ की मिलावट ज़रूरी है?
क्या यही सामान्य स्थिति है?
.... इन प्रश्नों के भंवर में,
सारा दिन गुजरता है....
मैं ही प्रश्न बनती हूँ,
मैं ही उत्तर.....
मैं ही वक्ता,
मैं ही श्रोता ,
मैं ही द्रष्टा....................
सच कहना -
तुम्हारे साथ भी
ऐसा होता है न ?

28 टिप्‍पणियां:

  1. rashmi ji ,

    sach aisa aksar hota hai...

    bahut bhavpurn abhivyakti .
    main hi sach hoti hun
    main hi jhooth,
    main hi anant
    main hi shuny

    sundar rachna
    badhai

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  2. जिस प्रकार से अँधेरे के बिना प्रकाश का न कोई आस्तित्व होता है, ना औचित्य, ठीक उसी प्रकार से डर और हौसला साथ-साथ चला करते है, हर पल, हर लम्हा | बहुत अच्छी कविता |

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  3. रशिम जी बहुत ही सुंदर लिखा आप ने, जी यह सब के साथ होता होगा.
    धन्यवाद

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  4. 'क्या सच की दीवार में मिलावट....'

    बहुत सुन्दर!
    रश्मि जी आप की कविता गहरे भाव लिए हुए है..
    ऐसा अक्सर सभी केसाथ होता है...जब प्रश्नों के भंवर में फँस जाते हैं...
    आप की कविता अभिव्यक्ति की सफल प्रस्तुति लगी.

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  5. सच कहते है ...
    यही सत्य है --- कब एक् सवाल उमड़ता है , कब उसका जवाब मिलता है और फिर कब वही जवाब , सवाल बन जाता है.., बस इसी सवाल - जवाब में सारा दिन बीत जाता है .
    झूठ की मिलावट समय की माँग है , जो नहीं कर पाते वो प्रश्नों के भवर में खो जाते है ... जैसे आप् , जैसे मैं ..

    हमेशा की तरह नि:शब्द .............

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  6. हाँ होता है ऐसा ही कुछ .......
    यदि झूठ न हो तो सत्य का क्या महत्त्व .......अच्छाई का महत्त्व बुराई के होने से ही है ....
    इसलिए ......

    मैं ही सच होती हूँ ....
    मैं ही झूठ !
    मैं ही अनंत ,
    मैं ही शून्य .........

    सब कुछ इतने में छिपा दिया है आपने.......
    मेरी शुभकामनाएं .........

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  7. sach baat kahe to haan hota hai,ek hi baar anek bhavnao se man ka gujarna hota hai,jab sawal uar jawab dono khud ho hota hai,bahut hi sundar sarthak rachana badhai.

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  8. इन्हीं सवालों जवाबों में ज़िन्दगी बीत जाती है ..बहुत सुन्दर लगी आपकी यह कविता रश्मि जी

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  9. rashmi di ,

    haan ,haan hota hai humaare saath bhi yahi ,haqiqat ye hai ki jo bhi
    dimmag se jyada dil se kaam lete hain un sabhi ke saath hota hai yahi .to aap ki biradari me hum bhi shaamil hue na .
    bahut achchi samvednaayen

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  10. behtareen nazm lafzon ki bandish bhi bemisaal hai main aapko mubarakbad pesh karta hun

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  11. होता है...हर संवेदनशील व्यक्ति के साथ ऐसा ही होता है... अद्भुत शब्द चयन और कमाल के भावः....मन भावन रचना...बधाई .
    नीरज

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  12. रश्मि जी, बहुत सुन्दर रचना है, हाँ डर और हौसला साथ चलते हैं... क्यों कि संतुलन ही तो प्रकृति का नियम है ..

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  13. khoobsoorat kawita likhi hai aapne
    waqai aanand ki anubooti hui padhkar........

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  14. कमाल कमाल और सिर्फ़ कमाल.. बहुत कुछ कोट करने लायक है.. पर कॉपी नही हो सकता ना... :)

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  15. Bahut hi sahi shabdon mein varnit kiya hai.. ye bilkul saty hai..Di ! Aisa sabhi ke sath kabhi na kabhi hota hai.. per aapne shabdon mein pirokar vyakt kar diya hai...

    You are Simply Great.

    Deepak Gogia

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  16. मन के अन्तर्द्वन्द्व को उकेरती सार्थक कविता कही है आपने। बधाई।

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  17. मन को छूती सुन्दर रचना. साधुवाद.

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  18. aapki kavita me ek alag tarah ki samvedanshilta hoti hai ... itne gahare bhav .... behad umda likha hai aapne...




    arsh

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  19. हाँ हर संवेदनशील व्यक्ति के साथ यह होता है.

    बहुत सुन्दर !!!

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  20. एक सुंदर भावपूर्ण रचना है। ऐसा अक्सर होता है। जब चारों तरफ दृष्टि जाती है तो मस्तिष्क को अनेक प्रश्न घेर लेते हैं, स्वयं ही अंतर मन के भीतर उत्तर खोजता है, कभी उसी उत्तर को नकारता है तो कभी उसे मान लेता है। बस एक कशमकश में फंस जाता है और दुविधा में ही जीवन चलता रहता है।
    महावीर शर्मा

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  21. आदरणीय रश्मि जी ,
    बहुत सुन्दर और यथार्थपूर्ण रचना .अक्सर सबके साथ ऐसा होता होगा .लेकिन उसे काव्य में सिर्फ आप बांध सकीं .......
    पूनम

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  22. शायद ये सब हमारे अपनो के कारण ही हमारे दिल में ये सवाल उठते है..क्योकि वो हमें कभी कुछ अच्छा और नया करने देते ही नहीं है..और करते है तो कहेते है की क्या कुछ ठिकाना नहीं..इसलिए हम कोई भी काम उनकों पसंद आयेगा की नहीं ये सोचा के करते है .. जो हमें chaahiye वो हम नहीं करते..इसलिए हमें कभी ख़ुशी और कभी दुःख भी unhi के कारण प्राप्त होते है ..

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  23. होता तो हम सबके साथ ऐसा ही है मैम.....किंतु इतने खूबसूरत शब्दों में बस आप ही इसे समझा सकती हैं

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  24. मैं ही सच होती हूँ ....
    मैं ही झूठ !
    मैं ही अनंत ,
    मैं ही शून्य .........

    मात्र चार शब्दों में आपने इतना कुछ कह दिया.
    शानदार!!!!!!!!!!!!

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