कभी-कभी
मैं प्रोज्ज्वलित तेज़ होती हूँ,
कभी
सारी पृथ्वी,
डगमगाती नज़र आती है,
कभी हौसला मेरी मुठ्ठी में होता है,
कभी कमज़ोर आंसू थमते नहीं...........
मैं ही सच होती हूँ,
मैं ही झूठ !
मैं ही अनंत,
मैं ही शून्य.....
क्या यह सबके साथ होता है?
क्या डर और हौसला साथ चलते हैं?
क्या सच की दीवार में ,
झूठ की मिलावट ज़रूरी है?
क्या यही सामान्य स्थिति है?
.... इन प्रश्नों के भंवर में,
सारा दिन गुजरता है....
मैं ही प्रश्न बनती हूँ,
मैं ही उत्तर.....
मैं ही वक्ता,
मैं ही श्रोता ,
मैं ही द्रष्टा....................
सच कहना -
तुम्हारे साथ भी
ऐसा होता है न ?
मैं प्रोज्ज्वलित तेज़ होती हूँ,
कभी
सारी पृथ्वी,
डगमगाती नज़र आती है,
कभी हौसला मेरी मुठ्ठी में होता है,
कभी कमज़ोर आंसू थमते नहीं...........
मैं ही सच होती हूँ,
मैं ही झूठ !
मैं ही अनंत,
मैं ही शून्य.....
क्या यह सबके साथ होता है?
क्या डर और हौसला साथ चलते हैं?
क्या सच की दीवार में ,
झूठ की मिलावट ज़रूरी है?
क्या यही सामान्य स्थिति है?
.... इन प्रश्नों के भंवर में,
सारा दिन गुजरता है....
मैं ही प्रश्न बनती हूँ,
मैं ही उत्तर.....
मैं ही वक्ता,
मैं ही श्रोता ,
मैं ही द्रष्टा....................
सच कहना -
तुम्हारे साथ भी
ऐसा होता है न ?
rashmi ji ,
जवाब देंहटाएंsach aisa aksar hota hai...
bahut bhavpurn abhivyakti .
main hi sach hoti hun
main hi jhooth,
main hi anant
main hi shuny
sundar rachna
badhai
जिस प्रकार से अँधेरे के बिना प्रकाश का न कोई आस्तित्व होता है, ना औचित्य, ठीक उसी प्रकार से डर और हौसला साथ-साथ चला करते है, हर पल, हर लम्हा | बहुत अच्छी कविता |
जवाब देंहटाएंरशिम जी बहुत ही सुंदर लिखा आप ने, जी यह सब के साथ होता होगा.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
'क्या सच की दीवार में मिलावट....'
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर!
रश्मि जी आप की कविता गहरे भाव लिए हुए है..
ऐसा अक्सर सभी केसाथ होता है...जब प्रश्नों के भंवर में फँस जाते हैं...
आप की कविता अभिव्यक्ति की सफल प्रस्तुति लगी.
bahut achha likha hai is baar bhee rashmi jee
जवाब देंहटाएंAnil
सच कहते है ...
जवाब देंहटाएंयही सत्य है --- कब एक् सवाल उमड़ता है , कब उसका जवाब मिलता है और फिर कब वही जवाब , सवाल बन जाता है.., बस इसी सवाल - जवाब में सारा दिन बीत जाता है .
झूठ की मिलावट समय की माँग है , जो नहीं कर पाते वो प्रश्नों के भवर में खो जाते है ... जैसे आप् , जैसे मैं ..
हमेशा की तरह नि:शब्द .............
वाह बहुत सुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंहाँ होता है ऐसा ही कुछ .......
जवाब देंहटाएंयदि झूठ न हो तो सत्य का क्या महत्त्व .......अच्छाई का महत्त्व बुराई के होने से ही है ....
इसलिए ......
मैं ही सच होती हूँ ....
मैं ही झूठ !
मैं ही अनंत ,
मैं ही शून्य .........
सब कुछ इतने में छिपा दिया है आपने.......
मेरी शुभकामनाएं .........
sach baat kahe to haan hota hai,ek hi baar anek bhavnao se man ka gujarna hota hai,jab sawal uar jawab dono khud ho hota hai,bahut hi sundar sarthak rachana badhai.
जवाब देंहटाएंइन्हीं सवालों जवाबों में ज़िन्दगी बीत जाती है ..बहुत सुन्दर लगी आपकी यह कविता रश्मि जी
जवाब देंहटाएंrashmi di ,
जवाब देंहटाएंhaan ,haan hota hai humaare saath bhi yahi ,haqiqat ye hai ki jo bhi
dimmag se jyada dil se kaam lete hain un sabhi ke saath hota hai yahi .to aap ki biradari me hum bhi shaamil hue na .
bahut achchi samvednaayen
behtareen nazm lafzon ki bandish bhi bemisaal hai main aapko mubarakbad pesh karta hun
जवाब देंहटाएंहोता है...हर संवेदनशील व्यक्ति के साथ ऐसा ही होता है... अद्भुत शब्द चयन और कमाल के भावः....मन भावन रचना...बधाई .
जवाब देंहटाएंनीरज
रश्मि जी, बहुत सुन्दर रचना है, हाँ डर और हौसला साथ चलते हैं... क्यों कि संतुलन ही तो प्रकृति का नियम है ..
जवाब देंहटाएंkhoobsoorat kawita likhi hai aapne
जवाब देंहटाएंwaqai aanand ki anubooti hui padhkar........
कमाल कमाल और सिर्फ़ कमाल.. बहुत कुछ कोट करने लायक है.. पर कॉपी नही हो सकता ना... :)
जवाब देंहटाएंBahut hi sahi shabdon mein varnit kiya hai.. ye bilkul saty hai..Di ! Aisa sabhi ke sath kabhi na kabhi hota hai.. per aapne shabdon mein pirokar vyakt kar diya hai...
जवाब देंहटाएंYou are Simply Great.
Deepak Gogia
मन के अन्तर्द्वन्द्व को उकेरती सार्थक कविता कही है आपने। बधाई।
जवाब देंहटाएंमन को छूती सुन्दर रचना. साधुवाद.
जवाब देंहटाएंaapki kavita me ek alag tarah ki samvedanshilta hoti hai ... itne gahare bhav .... behad umda likha hai aapne...
जवाब देंहटाएंarsh
हाँ हर संवेदनशील व्यक्ति के साथ यह होता है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर !!!
एक सुंदर भावपूर्ण रचना है। ऐसा अक्सर होता है। जब चारों तरफ दृष्टि जाती है तो मस्तिष्क को अनेक प्रश्न घेर लेते हैं, स्वयं ही अंतर मन के भीतर उत्तर खोजता है, कभी उसी उत्तर को नकारता है तो कभी उसे मान लेता है। बस एक कशमकश में फंस जाता है और दुविधा में ही जीवन चलता रहता है।
जवाब देंहटाएंमहावीर शर्मा
आदरणीय रश्मि जी ,
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और यथार्थपूर्ण रचना .अक्सर सबके साथ ऐसा होता होगा .लेकिन उसे काव्य में सिर्फ आप बांध सकीं .......
पूनम
शायद ये सब हमारे अपनो के कारण ही हमारे दिल में ये सवाल उठते है..क्योकि वो हमें कभी कुछ अच्छा और नया करने देते ही नहीं है..और करते है तो कहेते है की क्या कुछ ठिकाना नहीं..इसलिए हम कोई भी काम उनकों पसंद आयेगा की नहीं ये सोचा के करते है .. जो हमें chaahiye वो हम नहीं करते..इसलिए हमें कभी ख़ुशी और कभी दुःख भी unhi के कारण प्राप्त होते है ..
जवाब देंहटाएंहोता तो हम सबके साथ ऐसा ही है मैम.....किंतु इतने खूबसूरत शब्दों में बस आप ही इसे समझा सकती हैं
जवाब देंहटाएंमैं ही सच होती हूँ ....
जवाब देंहटाएंमैं ही झूठ !
मैं ही अनंत ,
मैं ही शून्य .........
मात्र चार शब्दों में आपने इतना कुछ कह दिया.
शानदार!!!!!!!!!!!!
mahavirji ki tippani se me sahmat hoo.
जवाब देंहटाएंsundar rachna he.
Bahut Sunder Kabita Hai
जवाब देंहटाएं