27 दिसंबर, 2010

नई उम्मीद



मैंने अपना कमरा बुहार लिया है...
जन्म से लेकर अब तक
बहुत कुछ बटोर लिया था
खुद के लिए ही कोई जगह नहीं बची थी !
इसे संवारो,
उसे सहेजो
करते करते भूल गई थी खुद को
यूँ कहो नज़रअंदाज कर दिया था
आज आईने में खुद को देखा
आँखों के नीचे स्याह उदासी
रेगिस्तान सा चेहरा
डूबता मन
...
तब ख्याल आया
किसी ने मुझे संवारा नहीं
सहेजा नहीं
पलभर में मोह भंग हुआ
वर्षों से बटोरती रही थी जो कुछ
उसे बाहर कर दिया ...
...
माना यह मेरे जीने का ढंग नहीं
पर एकतरफा चलकर
मैं जी भी तो नहीं रही थी
दर्द है
पर कम है
काम भी कम
और सोच भी कम !
सोचती हूँ - एक नींद ले लूँ
सोने को तरस गई हूँ
कोई सपना ऐसा देखूं
जिसे हकीकत बनाने की नई उम्मीद जगे
नई उम्मीद फिर से जीने की !!!

02 दिसंबर, 2010

सवेरा हो जायेगा



मुझे अकेलेपन से घबराहट तो नहीं होती
पर जब एक लम्बा$$$$$$$ वक़्त
गुज़र जाता है
तो यादें अलसाने लगती हैं
दीवारें जुम्हाइयां लेने लगती हैं
फिर मैं उम्मीदों की नन्हीं उंगलियाँ थामती हूँ
- जल्दी ही रात होगी
चाहूँ ना चाहूँ
नींद भी आ जाएगी
और सवेरा हो जायेगा ....

एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...