02 दिसंबर, 2010

सवेरा हो जायेगा



मुझे अकेलेपन से घबराहट तो नहीं होती
पर जब एक लम्बा$$$$$$$ वक़्त
गुज़र जाता है
तो यादें अलसाने लगती हैं
दीवारें जुम्हाइयां लेने लगती हैं
फिर मैं उम्मीदों की नन्हीं उंगलियाँ थामती हूँ
- जल्दी ही रात होगी
चाहूँ ना चाहूँ
नींद भी आ जाएगी
और सवेरा हो जायेगा ....

28 टिप्‍पणियां:

  1. उम्मीद की किरण सबेरा ला ही देती है।
    ..सुंदर भाव।

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  2. बहुत ख़ूबसूरती से मन की बात कह देती हैं.अकेलेपन से तुम-सी बहादुर लेडी क्यों कर घबराए?
    हर पल खुद के साथ रहने वाला कभी अकेला होता ही नही.उम्मीदों की नन्ही अँगुलियां??? नन्ही नन्ही उम्मीदे,नन्हे नन्हे सपने जब पूरे होते है जीने की उमंग जगा देते हैं.छोटी छोटी खुशिया जीवन के बड़े से केनवास को अपने रंगों से भर देता है न? ये तुम ,हम ज्यादा अच्छी तरह महसूस कर सकते हैं.मेरी उम्मीदों,सपनों की अंगुलियां,हाथ भी छोटे छोटे रहे.बहुत प्यारी हो तुम और.....तुम्हारा अंतर्मन...जिनसे ये निकल आते है जैसे सीप से....मोती ही निकलते हैं न?
    प्यार और....अकेलापन कभी ना डराए.उम्मीदों की नन्ही अंगुली को तुमने पकड़ा है न बेफिक्र रहो तूफ़ान में भी माँ अपने बच्चे की अंगुली नही छोडती.उम्मीदों के हाथ में अपनी अंगुली ना देना.प्यार.ढेरो शुभकामनाएं.

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  3. फिर मैं उम्मीदों की नन्हीं उंगलियाँ थामती हूँ-- बिलकुल रश्मिजी उमीद ही तो जीवन मे आगे बडःाने की प्रेरणा देती है सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  4. हमारे जीवन का आधार है मन
    मन है तो इच्छा है ...
    इच्छा है तो गतिविधि है,
    लक्ष्य है,कार्यकलाप है. जीवन है
    और जहां जीवन है वहीँ उम्मीद ....!

    जीवन की कच्ची डोर में
    आबद्ध रहता है जबतक आदमी -
    एकटक निहारता रहता है
    समय के आईने में
    कि न जाने कब दिख जाए
    उसमें सुबह का कोई प्रतिविंब...!

    मन में उम्मीदों की सुबह
    का बोध करा गयी आपकी अभिव्यक्ति
    और कह गयी धीरे से , कि -
    थामे रहना उम्मीदों की डोर
    तब तक जबतक सुबह न हो जाए !

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  5. कितना मीठा, कितना सच्चा, कितना अच्छा.

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  6. चाहूँ ना चाहूँ
    नींद भी आ जाएगी
    और सवेरा हो जायेगा ....

    कितनी उम्मीद जगा रही हैं ये रचना...
    सार्थक लेखन के लिए आभार...
    सच भी यही है-
    ’तब्दीलियां तो वक़्त का पहला उसूल है’

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  7. उम्मीद की किरणे जो लाती हैं वो सवेरा बहुत उजला ही होता है.....सुंदर

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  8. हमारे देखे भी ग़म का सोने से बेहतर कोई इलाज़ नहीं है.
    लिखते रहिये ...

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  9. चाहूँ ना चाहूँ
    नींद भी आ जाएगी
    और सवेरा हो जायेगा ....
    रात लम्बी ने हो तो सवेरा जल्दी हो जायेगा.

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  10. मैं उम्मीदों की नन्हीं उंगलियाँ थामती हूँ ...

    उम्‍मीद की यह नन्‍हीं उंगलियां आपको एक नये सवेरे
    की ओर ले जाती हैं ....बहुत सुन्‍दर भावमय करते शब्‍द ...।

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  11. उम्मीद की नन्ही अंगुलियाँ बहुत बड़ा सहारा होती है ...
    उम्मीदें बनी रहें ...बेहतर दुनिया की ...
    सुनहरे कल की ...!

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  12. सुन्दर कोमल सी अभिव्यक्ति है दीदी, यही तो करना होता है ... वरना रात बहुत लंबी होती है ...

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  13. बहुत ही सुन्‍दर भावमय पंक्तियां

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  14. ये उम्मीदें ही तो जीने का सबब बन जाती हैं…………बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  15. आदरणीय रश्मि मां
    नमस्कार !
    एहसास की यह अभिव्यक्ति बहुत खूब
    ......बहुत ही सुन्‍दर भावमय पंक्तियां

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  16. रात कितनी भी लम्बी हो..नींद भी अ जाएगी..और उसके बाद सवेरा तो होना ही है
    ख़ूबसूरत पंक्तियाँ

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  17. akelapan ka ehsaas apne saath samast wataawaran ko bhi tanhaa kar jata, aur wo bojhil mann tanha tanha ...shubhkaamnaayen.

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  18. जल्दी ही रात होगी
    चाहूँ ना चाहूँ
    नींद भी आ जाएगी
    और सवेरा हो जायेगा ....

    यह पंक्तियाँ बहुत ही अच्छी लगीं मम्मी जी... बहुत ही सुंदर कविता...

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  19. कितनी खूबसूरती से मन को उकेरा है आपने. बधाई.

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  20. आपका ब्लॉग आज खुल पाया .... और देखिये हो गया न सवेरा ....रात का भी उन्त्जार और सुबह होने की उम्मीद ..बेहतरीन भाव

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