15 जनवरी, 2011

ब्रैंडेड चादर



धूप सिमटी पड़ी है
सूरज की बाहों में
कुहासे की चादर डाल
अधखुली आँखों से मुस्कुराती है ...
थरथराते हाथों से अलाव जला
सबने मिन्नतें की हैं धूप से
बाहर आ जाने की ...
अल्हड़ नायिका सी धूप
सूरज की आगोश में
कुनमुनाकर कहती है -
'साल में दो बार ही तो
बमुश्किल यह सौभाग्य जागता है
... कैसे गँवा दूँ !'
सूरज ने बावली धूप के प्यार में
कई दिनों का अवकाश ले रक्खा है
.......
कुहासे की चादर भी ब्रैंडेड है !!!

02 जनवरी, 2011

वारी वारी जावां.....



नए साल की सरगोशियाँ हुईं
मैंने उन्हें नहलाया धुलाया
पाउडर लगाया
नैपिज पहनाये
झबले सा ड्रेस
काला टीका लगाया
बलैयां ली ... नज़र ना लगे !
पूरी दुनिया इसे हाथोहाथ लेने में लगी रही
लगातार शोर ...
थक गया है
सबसे आँखें बचा
नाईट ड्रेस पहना दिया है
थपकियाँ दे रही हूँ
दुआ है -
रहे हर दिन तरोताजा
सुहाना सलोना खिलखिलाता हुआ
कामयाबियां कदम चूमे
हर कोई कहे -
वारी वारी जावां.......

जो गरजते हैं वे बरसते नहीं

 कितनी आसानी से हम कहते हैं  कि जो गरजते हैं वे बरसते नहीं ..." बिना बरसे ये बादल  अपने मन में उमड़ते घुमड़ते भावों को लेकर  आखिर कहां!...