धूप सिमटी पड़ी है
सूरज की बाहों में
कुहासे की चादर डाल
अधखुली आँखों से मुस्कुराती है ...
थरथराते हाथों से अलाव जला
सबने मिन्नतें की हैं धूप से
बाहर आ जाने की ...
अल्हड़ नायिका सी धूप
सूरज की आगोश में
कुनमुनाकर कहती है -
'साल में दो बार ही तो
बमुश्किल यह सौभाग्य जागता है
... कैसे गँवा दूँ !'
सूरज ने बावली धूप के प्यार में
कई दिनों का अवकाश ले रक्खा है
.......
कुहासे की चादर भी ब्रैंडेड है !!!