" तुम थकती नहीं ?तूफ़ान के मध्य भी कैसे खा लेती हो ?
कैसे हँस लेती हो ?
कैसे औरों के लिए सोच लेती हो ? "
..... पूछता था मेरा ही मैं मुझसे !
हंसकर कहती थी -
" मैं तो जिनी हूँ थकूंगी कैसे ...
और पापा डांटा करते थे खाना नहीं खाने पर
तो जब कभी नहीं खाने का विचार आता है
तो पापा का गुस्सा भी याद आता है
फिर सबसे बड़ी बात ये है कि
मुझे भूख लग जाती है
...
ना हंसकर मैं मान लूँ कि मैं हार गई
रोने लगूँ ?
रुलानेवालों को सुकून दूँ ?
...
औरों के लिए सोचना बड़ी बात कहाँ है
ये 'और' तो मेरे अपने ही हैं न ....
'मैं' को चैन नहीं मिलता
वह बाएँ दायें से उदाहरण उठाता -
" इसे देखो , देखो इसकी गंभीर मुद्रा
बड़े से बड़े जोक पर भी मातमी सूरत बनाये रखता है
थकान हो ना हो - दिखाता ज़रूर है
चेहरा ऐसा कि बगल में गीत बज उठे
" ग़म दिए मुस्तकिल कितना नाज़ुक है दिल ..."
और एक तुम हो !
अभावों के बीच भी रानी बनी बैठी रहती हो ..."
......बात दरअसल ये है मेरे मैं
कि कुछ लोग मानसिक रईस होते हैं
और इसी रईसी के संग आब होता है
मेरी हँसी से फूल झड़ते हैं
ऐसा मेरा ख्याल होता है
मेरा साई जादुई छड़ी सा मेरा विश्वास होता है
फिर इस जन्नत को अपने चेहरे से कैसे हटा दूँ !...
अपने मैं को एक विराम देती
तो कोलाहल का चिंतन शुरू होता
" कोई तो बात होगी
जो इसकी हँसी नहीं थमती ...
तूफानों के मध्य चेहरे पर रौनक !
झूठ बोलती है ....
समय पर नहाकर अच्छे कपड़े पहन लेती है
अरे छोटी सी घटना पर मन नहीं होता
और यह तो हर दिन ..... कोई तो बात ज़रूर होगी !"
कोलाहल के चिंतन की परतों में
क्षणांश को उलझता था मन
पर अपने लगाए बिरवों पर नज़र जाती
उनकी मासूम काया ...
बेपरवाह मैं सिंड्रेला के सपने देखने लगती
और लाल परी मेरे साथ हो जाती ....
एक नहीं दो नहीं ..... कई साल हवाई जहाज पर
ज़ूऊऊऊऊऊऊऊऊउन से गुजर गए ...
अचानक मेरे " मैं " ने मुझसे पूछा है -
" अरे ... क्या बात है
तुम इतनी उदास !
ये आँखों के नीचे आंसुओं के दाग !
ये थका थका चेहरा !
अभी तो तेरे उत्तरदायित्व बाकी हैं
फिर मस्तिष्क में यह रक्त प्रवाह ! -
कुछ हो गया तो ?
तुम्हें पता हैं न असलियत ?-
सब बिखर जायेगा .... "
" मैं " के इस सवाल से
कही गई बातों से
मन डरा है .... धो लिया है चेहरे को
अच्छे से बाल बाँधा है
दांये बाँए देखकर मुस्कुराई हूँ
अपनी कृत्रिमता मुझे नज़र आई है
खुद को आँखें दिखाते मैंने पूछा है -
" तूफानों के वेग को इतनी सहजता से तुमने लिया
अब जब सिर्फ पूरब तुम्हारे हिस्से आया है
तो ऐसी सूरत .... "
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