दलदल में तुम थे
दलदल में मैं थी
तुम मुझे निकाल सकते थे
मैं तुम्हें
पर ....
हम दूसरों के बनाये दलदल में धंसते गए !
ये तो हमारी मजबूत पकड़ थी
कि हम साथ मरे....
अब दलदल में जो कमल खिला है
वह मंदिर का हकदार बना है
तुम मुझे पहचानते हो
मैं तुम्हें ...
लोगों की मंशाओं के दलदल से
हम ऊपर हो गए
जाने कितनी सारी गांठें खुल गई
प्रभु के चरणों में हम एक हुए !
बहुत बहुत सुन्दर रश्मि दी...
जवाब देंहटाएंसच है जीवन के दलदल से मुक्ति ईश्वर दिला ही देते हैं...
आप पर और आपकी लेखनी पर माँ सरस्वती की कृपा यूँ ही बनी रहे..
ढेरों शुभकामनाओं और स्नेह के साथ...
-अनु
एक होना काफी है...कहीं हो...कभी हो कैसे हो ...ये मायने नहीं रखता
जवाब देंहटाएंजीवन का सत्य लिख दिया ...
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति.....
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति.....
जवाब देंहटाएंप्रभु ही एकमात्र सहारा हैं जहाँ एक हो जाएँ सब!
जवाब देंहटाएंलोगों की मंशाओं के दलदल से
जवाब देंहटाएंहम ऊपर हो गए...
satya evm sundar bahut hi sundar !!
ये तो हमारी मजबूत पकड़ थी
जवाब देंहटाएंकि हम साथ मरे....
अब दलदल में जो कमल खिला है
वह मंदिर का हकदार बना है
khubsoorat ahsaas. vasant panchmi kee haardik shubhkamnaaye !
लोगों की मंशाओं के दलदल से
जवाब देंहटाएंहम ऊपर हो गए
जाने कितनी सारी गांठें खुल गई
प्रभु के चरणों में हम एक हुए...
रश्मी जी, रचना अच्छी लगी,..सुंदर पंक्तियाँ
बहुत सुन्दर....मुझे बहुत पसंद आई आपकी कविता..
जवाब देंहटाएंआपको वसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं!
सच कहा रश्मि जी ईश्वर के चरणो में ही सब दुखो का अंत है..सुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंलोगों की मंशाओं के दलदल से ,
जवाब देंहटाएंहम ऊपर हो गए ,
बहुत गहरी सोच.... !
आप हमेशा लोगों की मंशाओं के दलदल से ऊपर उठी ही रहें.... !!
यह दिल के दलदल का बल है।
जवाब देंहटाएंजब तक एक न हो जाएँ, दो का भेद न समाप्त हो जाए, दुनिया की दलदल में फंसता ही जाता है इंसान... जिस दिन दो का भेद मिटा, वह कमल सरीखा अस्तित्व होता है.. दलदल में रहकर भी अछूता!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर!!
लोगों की मंशाओं के दलदल से
जवाब देंहटाएंहम ऊपर हो गए
sakaratmak ..gahan abhivyakti ...
जीवन की दलदल से मुक्ति तो प्रभु चरणो मे ही मिलती है।
जवाब देंहटाएंरस्मी जी ...कितनी खूबसूरत है रचना .. सच मैं जीवन किसी दलदल से कम नहीं हैं
जवाब देंहटाएंदलदल में तुम थे
जवाब देंहटाएंदलदल में मैं थी
तुम मुझे निकाल सकते थे
मैं तुम्हें
पर ....
हम दूसरों के बनाये दलदल में धंसते गए !
अदभुत रचना, ह्रदयस्पर्शी पंक्तियाँ।
दलदल में तुम थे
जवाब देंहटाएंदलदल में मैं थी
तुम मुझे निकाल सकते थे
मैं तुम्हें
पर ....
हम दूसरों के बनाये दलदल में धंसते गए !
अदभुत रचना, ह्रदयस्पर्शी पंक्तियाँ।
लोगों की मंशाओं के दलदल से
जवाब देंहटाएंहम ऊपर हो गए
जाने कितनी सारी गांठें खुल गई
प्रभु के चरणों में हम एक हुए !
मन की गांठें खुल जाएँ तो सब एक हों ..भाव पूर्ण अभिव्यक्ति
ओह..एक होना ही मायने रखता है...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन...बेमिसाल... लाजवाब।
जवाब देंहटाएंवसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं।
उच्चस्तरीय अध्यात्मिक अहसास कराती एवं जीवन का
जवाब देंहटाएंसत्य बयां करती रचना।
सराहनीय एवं सफल प्रयास.......
कीचड में भी कमल खिलाने का हुनर नदी जानती है!
जवाब देंहटाएंमेरी एक कविता का अंश है !
साथ मजबूत हो तो ईश्वर कहाँ दूर हैं !
बेहद प्रभावपूर्ण!
अपने दलदलीय अस्तित्वों से बचने का यही एक तरीका है..
जवाब देंहटाएंbahut sundar jajbaat vaah...vaah...
जवाब देंहटाएंजीवन और संवेदनाओं की सर्वोत्कृष्ट अभिव्यक्ति. यह दर्शन है, नीति शस्त्र है और है कर्त्तव्यों की अंतिम परिणति, परम और चर्म शुभ की परपी का इससे अच्छा सुयोग भला क्या हो सकता है? बहुत दिनों बाद पढने को मिली इतनी भावमयी और गंभी रचना. कई बार पढ़ा. मन नहीं भ्रा. लगता है अपनी ही कोई कहानी है. यही तो सत्य है, सच्छी कथा वैयक्तिक नहीं, सार्वभौम होती है. इस सर्भौमिकता का एहसास करा दिया आपने. आभार और नमस्कार आपकी लेखन शैली को. मर्मस्पर्शी संवेदनाओं को,
जवाब देंहटाएंवाह! बेहतरीन। आपकी श्रेष्ठ कविताओं में से एक। बहुत बधाई इस कविता के लिए।
जवाब देंहटाएंबड़ी प्यारी कविता है रश्मि जी। जितना सुंदर बिंब उतना ही व्यापक अर्थ। गागर में सागर। आज तो भाव विभोर हो गया इसे पढ़कर।
जवाब देंहटाएंअच्छे कर्म ही प्रभु के चरणों में स्थान दिलाते हैं ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना ।
बहुत उम्दा रश्मि जी....मंशाओं के दलदल से ऊपर उठे बिना एक हुआ भी नहीं जा सकता .....
जवाब देंहटाएं☺ दलदल में धंसने से बचने के लिए खड़े होने के बजाय लेट कर रेंग निकलना बेहतर रहता है... (टेक्नीकल टिपपणी)
जवाब देंहटाएंअब दलदल में जो कमल खिला है
जवाब देंहटाएंवह मंदिर का हकदार बना है
इन पंक्तियों का मर्म हृदय की अतल गहराइयों तक गोता लगाने पर ही समझा जा सकता है!
अनुभूतियों के धरातल पर खड़ी जगमगाती रचना!
बधाई!
दल दल से निकलने के लिए, एक को दूसरे का सहारा जरूरी है ...???
जवाब देंहटाएंखूबसूरत भाव !
अब दलदल मे जो कमल खिला है वह मंदिर का हकदार बना है... बहुत सुन्दर रचना ... बधाई
जवाब देंहटाएंअब दलदल में जो कमल खिला है
जवाब देंहटाएंवह मंदिर का हकदार बना है....गहरी और अदभुत अभिवयक्ति......
समाज के बनाये दलदल में भी जो साथ रहे...वो कमल सा खिलेगा और...अपनी नियति को प्राप्त करेगा....
जवाब देंहटाएंkya baat hai.......
जवाब देंहटाएंउच्च धरातल पर जन्मी रचना, वाह !!!!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर पोस्ट |
जवाब देंहटाएंअब दलदल में जो कमल खिला है
जवाब देंहटाएंवह मंदिर का हकदार बना है
वंदनीय भाव लिए हुए यह पंक्तियां ..
बहुत ही गंभीर और मन को प्रभावित करने वाली गहरी रचना ... बधाई |
जवाब देंहटाएंअध्यात्म की ओर मुड़ती कविता। जीवन का सार
जवाब देंहटाएंमोनिका जी की बात से पूर्णतः सहमत हूँ मंशाओं के दलदल से ऊपर उठे बिना एक होना भी संभव नहीं
जवाब देंहटाएंbahut sundar aur gahri panktiya
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर दी... वाह!
जवाब देंहटाएंसादर...
अति सुन्दर .... मिट कर ही प्रभु चरणों की शरण प्राप्त होती है.
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत है !
जवाब देंहटाएंदलदल में तुम थे
दलदल में मैं थी
सुनते ही लगने लगा
हम दोनो ही नेता थे !