14 जून, 2013

यात्रा जारी है


धरती,आकाश के दराजों से 
हमेशा मैंने आशीष,दुआओं के
अनमोल,दुर्लभ 
चाभीवाले खिलौने निकाले हैं 
ताकि चेहरे की मुस्कान में क्षितिज नज़र आये 
जिसे जो भी देखे - दूर से देखे 
पास जाकर नफ़रत का आगाज़ न कर पाये 
.........
नफरत से चेहरे की कोमलता खत्म हो जाती है 
बचपन रूठ जाता है 
बात बात पर ज़ुबान से कटु बोल निकलते हैं 
जिनसे कोई रिश्ता नहीं पनपता 
हाँ - संजोये एहसास विकृत हो जाते हैं !!
......
जीवन में मैंने ख़ामोशी के अस्त्र-शस्त्र इसलिए नहीं उठाये 
कि मैं कमज़ोर थी 
दुर्गा के नौ रूप तो मेरा अस्तित्व हैं 
पर मातृ रूप को मैंने विशेष बनाया 
संहार किया प्रश्नों का निरुत्तर होकर ...
रक्तपात मेरे सपनों का उज्जवल भविष्य नहीं हो सकता था  
तो स्वयं को निर्विकार समझौते की कीलो से 
सामयिक यात्रा की सलीब पर चढ़ा दिया !
अदृश्य रक्त धरती को सिंचते गए 
वाष्पित हो आकाश को छूते गए 
सिलसिला जारी रहा ...

तारों के टिमटिमाते गीत यूँ ही नहीं मिले हैं मुझे 
ये तो उन खिलौनों का कमाल है 
जिसमें चाभी भरकर 
बच्चों के संग बच्चा बन मैंने भी तालियाँ बजाई हैं 
 !!! 
चाँद को मैं आज भी मामा कहती हूँ 
चरखा चलाती अम्मा के अनुभव सुनती हूँ 
अनुभवों की चाशनी बना खीर में डालती हूँ 
हौसलों के स्रोत को भोग लगाती हूँ 
खामोश धागों के कमाल पर आगे की यात्रा करती हूँ !!!

37 टिप्‍पणियां:

  1. इसी सिर्फ एक रचना नहीं कहा जा सकता। सच कहूं तो ये जीवन दर्शन है। जिसे पढ़कर अंश मात्र भी हम अपनाएं तो शायद जीवन को सार्थक और खुलहाल बना सकें। बहुत सुंदर


    नफरत से चेहरे की कोमलता खत्म हो जाती है
    बचपन रूठ जाता है
    बात बात पर ज़ुबान से कटु बोल निकलते हैं
    जिनसे कोई रिश्ता नहीं पनपता
    हाँ - संजोये एहसास विकृत हो जाते हैं !!

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  2. इसी सिर्फ एक रचना नहीं कहा जा सकता। सच कहूं तो ये जीवन दर्शन है। जिसे पढ़कर अंश मात्र भी हम अपनाएं तो शायद जीवन को सार्थक और खुलहाल बना सकें। बहुत सुंदर


    नफरत से चेहरे की कोमलता खत्म हो जाती है
    बचपन रूठ जाता है
    बात बात पर ज़ुबान से कटु बोल निकलते हैं
    जिनसे कोई रिश्ता नहीं पनपता
    हाँ - संजोये एहसास विकृत हो जाते हैं !!इसी सिर्फ एक रचना नहीं कहा जा सकता। सच कहूं तो ये जीवन दर्शन है। जिसे पढ़कर अंश मात्र भी हम अपनाएं तो शायद जीवन को सार्थक और खुलहाल बना सकें। बहुत सुंदर


    नफरत से चेहरे की कोमलता खत्म हो जाती है
    बचपन रूठ जाता है
    बात बात पर ज़ुबान से कटु बोल निकलते हैं
    जिनसे कोई रिश्ता नहीं पनपता
    हाँ - संजोये एहसास विकृत हो जाते हैं !!

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  3. अनहद नाद सी ......ईश्वरीय है ये रचना ....!!
    आप की सोच को नमन दी ....!!आपकी लेखनी को नमन ...!!

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  4. .
    .बेहतरीन अभिव्यक्ति आभार . सब पाखंड घोर पाखंड मात्र पाखंड
    आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -४.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN क्या क़र्ज़ अदा कर पाओगे?

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  5. बड़ी गहरी बातें सुन्दर शब्दों में व्यक्त कर दी हैं..बहुत ही सुन्दर रचना।

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  6. जेवण के अनुभव का निचोड़ है यह रचना .... और यात्रा तो अभी जारी है .... बहुत सुंदर और प्रेरक रचना

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  7. बहुत सीखने के साथ
    धैर्य रखना भी सीख गई
    आपकी रचनाओं से ....
    सच्ची अभिव्यक्ती
    सादर
    हार्दिक शुभकामनायें

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  8.   बहुतही खुबसूरत अहसासो को गूंथ दिया रश्मि जी आपने ॥।

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  9. खुबसूरत अहसास लिए ..सार्थक सन्देश देती आप की सुंदर रचना !
    बधाई और आभार !

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  10. खामोश धागों के कमाल पर आगे की यात्रा करती हूँ !!!
    shubhkamnaayen ....jivn ka satya ukerti rachna ....

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  11. बहुत बहुत सुन्दर है दी...
    धरती,आकाश के दराजों से
    हमेशा मैंने आशीष,दुआओं के
    अनमोल,दुर्लभ
    चाभीवाले खिलौने निकाले हैं
    ताकि चेहरे की मुस्कान में क्षितिज नज़र आये
    वाह!!!
    सादर नमन...

    अनु

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  12. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(15-6-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
    सूचनार्थ!

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  13. जीवन में मैंने ख़ामोशी के अस्त्र-शस्त्र इसलिए नहीं उठाये
    कि मैं कमज़ोर थी
    दुर्गा के नौ रूप तो मेरा अस्तित्व हैं
    पर मातृ रूप को मैंने विशेष बनाया
    संहार किया प्रश्नों का निरुत्तर होकर ...-----

    जीवन के सारगर्भित सच को--
    जीवन दर्शन,आध्यात्म,अतीत और वर्तमान को गहन अनुभूतियों
    के माध्यम से रचना में व्यक्त किया है,
    यह रचना नहीं समूचा जीवन दर्शन है--
    सादर

    आग्रह है- पापा ---------

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  14. नारी का यही रूप वन्दनीय है

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  15. नफरत से चेहरे की कोमलता खत्म हो जाती है
    बचपन रूठ जाता है !!

    सरल शब्दों में स्वच्छ अभिव्यक्ति ..

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  16. चाँद को मैं आज भी मामा कहती हूँ
    चरखा चलाती अम्मा के अनुभव सुनती हूँ
    अनुभवों की चाशनी बना खीर में डालती हूँ
    हौसलों के स्रोत को भोग लगाती हूँ
    खामोश धागों के कमाल पर आगे की यात्रा करती हूँ !!!

    और यही यात्रा सुखद है !
    सार्थक रचना !

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  17. इसी यात्रा में कई मील के पत्थर को भी तो लगाते जाना है.. ह्रदय को एक अलौकिक भाव से भर रही है ये यात्रा..

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  18. सच है कि कुछ भी यूँ ही नहीं मिलता ...
    दर्शन और अध्यात्म आपकी कविताओं की पूँजी हैं !

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  19. आपकी इस कविता पर क्या टिप्पणी करूँ ...निशब्द हूँ बस ये ही कहूँगी ...यहाँ मेरे ही मन की बाते हैं ...जो मैं सोचती हूँ

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  20. सिखाया तो यही गया है की दुश्मन से भी प्यार करो. कभी किसी से नफ़रत मत पालो. लेकिन ऐसा होता मुश्किल से.

    बहुत सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति.

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  21. जीवन रात्र का निचोड़ है ... निरंरत चलती हई सी ... लाजवाब ...

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  22. नफरत से चेहरे की कोमलता खत्म हो जाती है
    बचपन रूठ जाता है
    बात बात पर ज़ुबान से कटु बोल निकलते हैं
    जिनसे कोई रिश्ता नहीं पनपता
    हाँ - संजोये एहसास विकृत हो जाते हैं !!

    ....गहन जीवन दर्शन संजोये एक उत्कृष्ट रचना..हरेक पंक्ति एक सार्थक सन्देश देती हुई...

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  23. सरल शब्दों में गहरी बात कह जाना तो कोई आप से सीखे ...:)बहुत खूब

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  24. बहुत ही सुंदर अहसासो की खुबसूरत लाजबाब प्रस्तुति,रश्मि जी ,,

    RECENT POST: जिन्दगी,

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  25. ..सार्थक सन्देश देती बहुत सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति.

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  26. दुर्गा के नौ रूप तो मेरा अस्तित्व हैं
    पर मातृ रूप को मैंने विशेष बनाया
    संहार किया प्रश्नों का निरुत्तर होकर ...

    सच में माँ क्या कुछ नहीं करती ...
    सादर !

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  27. आपकी लेखनी पढ़कर हर बार निःशब्द हो जाती हूँ. जीवन को जानने और समझने के लिए जैसे एक और सूत्र हाथ लग जाए. बहुत बधाई.

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  28. shayad ise padkhar main bhi kuch seekh sakun...kuch shakti prapt kar sakun....behad prernamayi rachna...aabhaar...

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  29. जीवन के अनुभव ...उनसे उपजी परिस्थितियां ....ऐसे कई रास्तों से होकर गुज़रती हैं...पर इश्वर पर विश्वास और अपनी सहन शक्ति से हर राह कट जाती है ...बस वह विश्वास बनाये रखिये .....

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  30. क्या बात है दीदी काफी दिनों से कुछ नहीं पेश किया.

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  31. हमेशा की तरह एक और खुबसूरत भावना ...आभार दीदी

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  32. जीवन में मैंने ख़ामोशी के अस्त्र-शस्त्र इसलिए नहीं उठाये
    कि मैं कमज़ोर थी
    दुर्गा के नौ रूप तो मेरा अस्तित्व हैं
    पर मातृ रूप को मैंने विशेष बनाया
    संहार किया प्रश्नों का निरुत्तर होकर .


    bahut khoob!

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एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...