ख्वाबों का कुंभ क्या लगा
मेरे सारे ख्वाब मचल उठे
हमें भी डुबकी लगानी है ।
मैंने कहा भी,
बड़ी भीड़ होगी ख्वाबों की
कहीं तुम गुम न हो जाओ,
या फिर
किसी मझदार में न फंस जाओ ...
ख्वाब खिलखिला उठे,
ख्वाबों का कुंभ है,
किसकी बिसात है
जो हमें खत्म कर दे
तुम हो तो हम हैं
हम हैं तो तुम
चलो, एक डुबकी लगा लेते हैं ।
रश्मि प्रभा
इस कुंभ में डुबकी न लगायी तो फिर क्या ही किया! आवश्यक है ख्वाबों का डुबकी लगाते रहना
जवाब देंहटाएंख्वाबों का कुंभ ...सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार ७ जनवरी २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
वाह
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति.
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