06 जनवरी, 2025

ख्वाबों का कुंभ

 ख्वाबों का कुंभ क्या लगा

मेरे सारे ख्वाब मचल उठे

हमें भी डुबकी लगानी है ।

मैंने कहा भी,

बड़ी भीड़ होगी ख्वाबों की

कहीं तुम गुम न हो जाओ,

या फिर 

किसी मझदार में न फंस जाओ ...

ख्वाब खिलखिला उठे,

ख्वाबों का कुंभ है,

किसकी बिसात है

जो हमें खत्म कर दे

तुम हो तो हम हैं

हम हैं तो तुम

चलो, एक डुबकी लगा लेते हैं ।



रश्मि प्रभा

4 टिप्‍पणियां:

  1. इस कुंभ में डुबकी न लगायी तो फिर क्या ही किया! आवश्यक है ख्वाबों का डुबकी लगाते रहना

    जवाब देंहटाएं
  2. ख्वाबों का कुंभ ...सुंदर अभिव्यक्ति।
    सादर।
    -------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार ७ जनवरी २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं

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