फिर आया वह दिन
जब मैं निमित्त बन
माँ के गर्भ से निकल
काली रात की मुसलाधार बारिश में
गोकुल पहुंचा
यशोदा के आँचल से
अपने ब्रह्माण्ड को तेजस्वी बनाने …….
माँ देवकी के मौन अश्रु
द्वारपालों का मौन पलायन कंस के आसुरी निर्णय से
पिता वासुदेव के थरथराते कदम
यमुना का साथ
बारिश से शेषनाग की सुरक्षा
मेरा बाल मन कभी नहीं भुला …
मैंने सारे दृश्य आत्मसात किये
बाल सुलभ क्रीड़ायें कर
सबको सहज बनाया
पर हर पल असहजता की रस्सी पर
संतुलन साधता रहा ….
मातृत्व का क़र्ज़
नन्द बाबा के कन्धों का क़र्ज़
राधा की धुन का क़र्ज़ (जो मेरी बांसुरी के प्राण बने)
ग्वाल-बालों की मित्रता का क़र्ज़
कदम्ब की छाया का क़र्ज़
मैं कृष्ण …… भला क्या चुकाऊंगा !!!
तुम राधा के लिए सवाल करो
या माँ यशोदा के लिए
मैं निरुत्तर था
निरुत्तर हूँ
निरुत्तर ही रहूँगा ……
तुम्हारे अनुमानों में मेरा जो भी रूप उभरे
तुम्हारे ह्रदय से जो भी सज़ा निकले
मुझे स्वीकार है
क्योंकि मेरे जन्म के लिए तुम हर साल
एक खीरे में मेरी प्रतीक्षा करते हो
इस प्यार,प्रतीक्षा के आगे
मुझे सबकुछ स्वीकार है …।
पर अपने जन्मदिन पर
मुझे एक उपहार सबके हाथों चाहिए
………………
अपनी अंतरात्मा की सुनो
मेरी तरह संतुलन साधो
कंस का संहार करो
फिर जानो मुझसे किये प्रश्नों का उत्तर !!!