30 मई, 2015

सलीके से किराये की ज़िन्दगी बहुत जी लिए







रुलाई की 
जाने कितनी तहें लगी हैं 
आँखों से लेकर मन के कैनवस तक  … 
कोई नम सी बात हो 
आँखें भर जाती हैं 
गले में कुछ फँसने लगता है 
ऐसे में,
झट से मुस्कान की एक उचकन लगा देती हूँ 
....... बाँध टूटने का खौफ रहता है 



रो लेंगे जब होंगे साथ 
देखेंगे कौन जीतता है 
और फिर -
खुलकर हँसेंगे खनकती हँसी 
छनाक से शीशे पर गिरती बारिश जैसी 
………
होना है इकठ्ठा 
बेबात हँसना है 
सलीके से किराये की ज़िन्दगी बहुत जी लिए  …………… !!!

27 मई, 2015

काई का निर्माण किसने किया !




चिट्ठियाँ सहेजकर रखो 
तो अतीत गले में बाहें डाल 
हँसाता है 
रुलाता है  …. 
मोबाइल में तो कुछ मेसेज रहते हैं 
वो भी अचानक मिट जाते हैं 
और मिट जाती है गहराई  … 
……. 
अक्सर हम बुरी बातों को याद रखते हैं 
उनका ज़िक्र करते हैं 
… वे लम्हे 
जो कागज़ की कश्ती में खिलखिलाते हैं 
उसे समय के दरिया में डुबो देते हैं 
…. 
पर चिट्ठियों का जवाब नहीं  …
कुछ देर लैपटॉप बंद करके 
मोबाइल ऑफ करके 
टीवी बंद करके  ….  
समय निकालना होगा लिखने के लिए 
!!!
पर्दा जब गिर जाता है 
तब लगता है -
कह लेते।
लिख लेते, … 

कभी बड़ी गहरी शिकायत 
खुद से हुई है ?
बनाया है कोई इगो अपनी बनावट से ?
अपने किसी बुरे पहलू को 
उजागर किया है सबके आगे ?
…. 
उत्तर किसी को नहीं चाहिए 
… बस अपने मन की नदी में तैरो 
डूबके देखो 
अपने किनारों को देखो 
कितनी गहरी काई है 
कितनी फिसलन !
जरा गौर करना 
इस काई का निर्माण किसने किया !
…। 
बहुत से जवाब तुम्हें मिल जाएँगे 

गंगा

गंगा ! तुम परंपरा से बंधकर बहती,  स्त्री तो हो किंतु परंपरा से अलग जाकर  अबला अर्थ नहीं वहन करती  वो रुपवती धारा हो जिसका वेग  कभी लुप्त नही...