27 मई, 2015

काई का निर्माण किसने किया !




चिट्ठियाँ सहेजकर रखो 
तो अतीत गले में बाहें डाल 
हँसाता है 
रुलाता है  …. 
मोबाइल में तो कुछ मेसेज रहते हैं 
वो भी अचानक मिट जाते हैं 
और मिट जाती है गहराई  … 
……. 
अक्सर हम बुरी बातों को याद रखते हैं 
उनका ज़िक्र करते हैं 
… वे लम्हे 
जो कागज़ की कश्ती में खिलखिलाते हैं 
उसे समय के दरिया में डुबो देते हैं 
…. 
पर चिट्ठियों का जवाब नहीं  …
कुछ देर लैपटॉप बंद करके 
मोबाइल ऑफ करके 
टीवी बंद करके  ….  
समय निकालना होगा लिखने के लिए 
!!!
पर्दा जब गिर जाता है 
तब लगता है -
कह लेते।
लिख लेते, … 

कभी बड़ी गहरी शिकायत 
खुद से हुई है ?
बनाया है कोई इगो अपनी बनावट से ?
अपने किसी बुरे पहलू को 
उजागर किया है सबके आगे ?
…. 
उत्तर किसी को नहीं चाहिए 
… बस अपने मन की नदी में तैरो 
डूबके देखो 
अपने किनारों को देखो 
कितनी गहरी काई है 
कितनी फिसलन !
जरा गौर करना 
इस काई का निर्माण किसने किया !
…। 
बहुत से जवाब तुम्हें मिल जाएँगे 

12 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी बातें, अच्छी सीख हमेशा याद रहे उससे औरों को भी लाभ पहुंचे इसके लिए जरुरी है लेखन और सहेजना ...
    बहुत अच्छी सीख भरी रचना प्रस्तुति हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं
  2. चिट्ठियाँ अब हैं कहाँ
    कौन लिखे किसे भेजे ?
    किसे फुरसत है
    खोलने की
    बहुत सारा
    गोंद लगे हुऐ
    चिपके हुऐ
    कागज को
    धैर्य के साथ
    बिना फाड़े ?
    रोज कूद कर
    लाँघ कर काई
    के ऊपर से
    याद भी नहीं
    रह जाता है
    काई है तो सही
    देखी थी कहीं ।

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 28-05-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1989 में दिया गया है
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर रचना

    http://cricketluverr.blogspot.in/
    http://chlachitra.blogspot.in/

    जवाब देंहटाएं
  5. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (29-05-2015) को "जय माँ गंगे ..." {चर्चा अंक- 1990} पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

    जवाब देंहटाएं
  6. काले टेम्पलेट पर पोस्ट के अक्षरों का रंग भी काला।
    --
    अगर हल्के रंग का होता तो सुपाठ्य होता।

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुंदर लि‍खा है दी...मुझे भी अखरती है यह बात...जो भावनाएं चि‍ट्ठि‍यों से उभरती हैं वो मोबाइल के मैसेज में कहां...

    जवाब देंहटाएं
  8. हमेशा की तरह बेहतरीन रचना , भावनाओ से ओतप्रोत.

    जवाब देंहटाएं
  9. सही कहा है खतों की बात ही कुछ और थी..डाकिये का इंतजार और लाल डब्बे में खत डालना...फिर जवाब की प्रतीक्षा..कितना धैर्य था तब इन्सान में...

    जवाब देंहटाएं
  10. बेहतरीन ... बदलते समय को बाखूबी लिखा है ...
    यही तो बात है जो प्रेरित करती है ...

    जवाब देंहटाएं

एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...