13 मार्च, 2016

सुनी है ?




सुनी है अपनी पदचाप
जो तुम्हें छूने को
रोक लेने को
पीछे पीछे आती है ?
रख देती है कोई भुला-बिसरा स्पर्श
तुम्हारे कंधों पर
सहला देती है माथे को
और होठ हिल जाते हैं - कौन !
सुनी है कोई खोई हुई पुकार ?
जिसे सुनकर एक चिर परिचित मुस्कान
तुम्हारे चेहरे पर खिल उठती है
सारी थकान भूलकर
यादों का सबसे बड़ा बक्सा
अपनी बातों में खोलकर तुम बैठ जाते हो
धागे कुछ मनुहार के
कुछ रुठने के
कुछ बेबाक हँसी के
कुछ रोने के
कुछ झगड़ने के
बिखेर देते हो अपने इर्द गिर्द
बर्फ के रुपहले फाहों जैसे …
देखा है अचानक कोई अनजाना चेहरा
बरसों से जाना-पहचाना सा
जिसे देखते कोई अपना
बिजली की तरह
तुम्हारी आँखों के आगे कौंध जाता है
आगे बढ़ते क़दमों को रोककर
तुम देखते हो पीछे
और स्वतः बुदबुदाते हो
"थोड़ी देर को लगा कि …"
यह ज़िन्दगी इसी धुरी पर चलती है
कभी तुम चलते हो
कभी हम …

9 टिप्‍पणियां:

  1. आपने लिखा...
    कुछ लोगों ने ही पढ़ा...
    हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
    इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना दिनांक 15/03/2016 को पांच लिंकों का आनंद के
    अंक 242 पर लिंक की गयी है.... आप भी आयेगा.... प्रस्तुति पर टिप्पणियों का इंतजार रहेगा।

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  2. देखा है अचानक कोई अनजाना चेहरा
    बरसों से जाना-पहचाना सा
    जिसे देखते कोई अपना
    बिजली की तरह
    तुम्हारी आँखों के आगे कौंध जाता है
    आगे बढ़ते क़दमों को रोककर
    तुम देखते हो पीछे
    और स्वतः बुदबुदाते हो
    "थोड़ी देर को लगा कि …" ... जाने कितनी बार एसा होता है जिन्दगी मे, वो अनुभूति, वो अहसास बहुत खूबसूरती से व्यक्त हुये है, सबके मन की कहानी रश्मि जी की जुबानी :-)

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