कहानी के काल्पनिक पात्रों को
परदे पर देखकर
हमने बहुत आँसू बहाये
बड़ी बड़ी बातें की
बड़े बड़े लेखकों के विषय में
अपनी अपनी जानकारी के पन्ने खोले
...
लेकिन वह लड़का
जो अचानक हादसे की चीख से
अपनों के आँसुओं के बीच से
सुरक्षित दूर भेज दिया गया
उसके बारे में किसी ने सोचा ?!
लड़ते-झगड़ते
डरते खेलते
सुरक्षा के नाम पर
वह बहुत अकेला हो गया !
किसने मज़ाक बनाया
किसको देखकर
उसके मन में क्या आया
हादसे की चीखें उसके मन से
किस तरह गुजरती रहीं
वक़्त पर वह बाँट नहीं पाया ...
बस करता रहा छुट्टियों का इंतज़ार
और जब खत्म हो गई छुट्टियाँ
वह समझदारी के लिबास में
लौटता रहा ... !
उम्र कहाँ रूकती है
गिरते-उठते
न उठना चाहो
तब भी उठकर
आगे बढ़ ही जाती है
ठहरा रह जाता है
वह अनकहा
जो सबकी बातों में
अपने अकेले हो गए बचपन को
एक बार देखना चाहता है
क्षणांश के लिए ही सही
उन वर्षों को जीना चाहता है
कुछ कहना चाहता है ! ...
कभी तौला है अपने एकांत में
अपनी अनुमानित आलोचनाओं से हटकर
कि
उसकी भी कुछ इच्छाएँ होंगी
उसके उतार-चढ़ाव ने
उसे भी बोझिल किया होगा
उसके आवेश में
उसकी भी मनःस्थिति होगी
या चलो आदत ही सही
जिसे अपने लिए सोचकर
मुहर की तरह जायज बना दिया हमने !
...
अनदेखे पात्रों को
गहराई से सोचकर क्या
यदि हमने देखे हुए
साथ चले हुए शख्स को
गहराई से नहीं लिया ...
मेरी नज़र से
हमारे भीतर कोई समंदर नहीं
कोई नदी नहीं
हाँ,
छोटे छोटे गड्ढे हैं
जो समय-असमय की बारिश में
पल में भरते हैं
पल में खाली हो जाते हैं
... --- ===