19 सितंबर, 2017

चलो बच्चे बन जाओ




हर बार कहा
कहते आये हैं - बड़े हो जाओ
तुम बड़े हो गए
तुम बड़ी हो गई
तुम भी बड़ी हो गई
लेकिन मैं !
जब कहीं से हारी थकी
अपने स्वप्निल पंखों में छुपकर बैठती हूँ
तब सोचती हूँ
क्या सच में इस मायावी
दुनियादारी से भरी दुनिया में
तुम बड़े हो सके हो ?

वो जो बड़ा होना कहते हैं न
वो तुमलोग क्या
मैं ही नहीं हो पाई हूँ !
दुनिया प्रतिपल भाग रही
और हम
भागते हुए
एक दूसरे का हाथ पकड़ लेते हैं
फिर भी हमारी वह रफ़्तार नहीं होती
भागने का अर्थ है
सिर्फ अपने तक सिमटना
जो हम नहीं कर पाते
और हाथ छूटते ही
.... हम निष्प्राण हो जाते हैं !
........ ........ ........
बेहतर है
चलो बच्चे बन जाओ
मैं भी छोटी सी माँ बन जाती हूँ
कुछ शीशे छनाक से गिरें
कुछ शोर हो यूँ
किसने तोड़ा
हँसते हँसते कहीं छुप जाएँ
तुमलोगों के कुछ मन रह गए थे
चलो उनको पूरा करती हूँ

5 टिप्‍पणियां:

  1. कोशिश बच्चा बन जाने की
    बन गये तो बहुत बड़ी बात ।

    सुन्दर।

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (20-09-2017) को बहस माता-पिता गुरु से, नहीं करता कभी रविकर : चर्चामंच 2733 पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  3. कितना अच्छा हो बच्चा बन जाना लेकिन बड़े होकर संभव कहाँ होता है
    बहुत सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  4. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विश्व अल्जाइमर दिवस : एल्जाइमर्स डिमेंशिया और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

    जवाब देंहटाएं

दौड़ जारी है...

 कोई रेस तो है सामने !!! किसके साथ ? क्यों ? कब तक ? - पता नहीं ! पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से बहुत घबराहट होती है ! प्रश्न डराता है,...