शोर से अधिक एकांत का असर होता है, शोर में एकांत नहीं सुनाई देता -पर एकांत मे काल,शोर,रिश्ते,प्रेम, दुश्मनी,मित्रता, लोभ,क्रोध, बेईमानी,चालाकी … सबके अस्तित्व मुखर हो सत्य कहते हैं ! शोर में मन जिन तत्वों को अस्वीकार करता है - एकांत में स्वीकार करना ही होता है
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जो गरजते हैं वे बरसते नहीं
कितनी आसानी से हम कहते हैं कि जो गरजते हैं वे बरसते नहीं ..." बिना बरसे ये बादल अपने मन में उमड़ते घुमड़ते भावों को लेकर आखिर कहां!...
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सम्मान का अपमान नहीं हो सकता गरिमा धूमिल नहीं की जा सकती जो मर्यादित है उसे गाली देकर भी अमर्यादित नहीं किया जा सकता ... ...
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पति-पत्नी भाई-भाई बुज़ुर्ग- युवा,बच्चे .... रिश्ते क्यूँ टूटे क्यूँ हल्के हैं जानने के लिए - गड़े मुर्दे से कारणों ...
वाह। सरेआम चुपचाप :)
जवाब देंहटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (03-07-2018) को "ब्लागिंग दिवस पर...." (चर्चा अंक-3020) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
इस खामोश यात्रा को भी कहाँ खामोश रहने दिया जाता है ...
जवाब देंहटाएंअंतिम यात्रा को तो ख़ास कर ...