बासी का स्वाद अनोखा होता है,
अगर वह बेस्वाद हो जाए,
मीठा से खट्टा हो जाए,
तो वक़्त देना खुद को
कि वजह क्या थी ।
रोटी हो,प्यार हो ,
बचपन हो,
या हो चिट्ठियाँ
बासी होकर
भूख मिटा देती है,
आँखों से बहुत कुछ उमड़कर
हलक तक आ जाता है,
इच्छा होती है,
भीग जाएँ इस बारिश में ।
बच गई रोटी
सिर्फ बासी नहीं होती,
किसने बनाई,
कितने जतन से बनाई,
जतन से रखा,
ये सारी बातें आती हैं।
बासी रोटी,
यानी की ताजे भोजन के लिए वक़्त मत बर्बाद करो,
बासी रोटी,
रात से सुबह
सुबह से रात की यात्रा करके आती हैं,
बहुत कुछ उसमें नमक घी की तरह लगा होता है
बासी रोटी, बासी बचपन,बासी प्रेम
कृष्ण की बांसुरी सा होता है,
खींचता है अपनी तरफ ...
Use and throw के इस युग में हर चीज को बासी होने से पहले ही बदल दिया जाता है। सुंदर अर्थपूर्ण रचना। सादर।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंबासी रोटी की भी अपनी एक गंध होती है..जो बचपन में चिरपरिचित थी..अब तो मन के किसी कोने में कहीं दुबकी पड़ी है उसकी स्मृति..
जवाब देंहटाएंसुखद अहसास देती यह कविता ....
जवाब देंहटाएं" एकांत के निर्जन वन में स्मृतियाँ उभरतीं हैं,
'अशु'प्रायः इसी वन में अक्सर ही विचरते हैं।"