रात में,
जब कह देते हैं लोग शुभरात्रि
वक़्त के कई टुकड़े पास आ बैठते हैं,
सन्नाटा कहता है,
सब सो गए !
लेकिन जाने कितनी जोड़ी आँखें
जागती रहती हैं,
लम्बी साँसों के बीच
ज़िन्दगी को रिवाइंड करती हैं,
फिर एक प्रश्न
आँखों के सूखे रेगिस्तान में तैरता है
"जिन देवदारों ने तूफानों में दम तोड़ दिया,
उसकी टूटन को मिट्टी में मिलाकर,
कैसे कोई दर्द को शब्द देता है !"
क्या सच में वह दर्द
दर्द होता है ?
अनुत्तरित स्थिति में नींद आ जाती है,
सुबह जब आँखें खुलती हैं,
तब सर भारी भारी होता है,
सामने होती है लम्बी दिनचर्या
और ...
डब्बे में पड़ी अलग अलग नाप की मुस्कान से
एक मुस्कान निकाल लेता है,
प्रायः हर कोई,
सामनेवाले को क्या दिखाई दे रहा,
इससे बेखबर,
वह मुस्कान की धार पर चलता जाता है ...।
डब्बे में पड़ी अलग अलग नाप की मुस्कान से
जवाब देंहटाएंएक मुस्कान निकाल लेता है,
कितना मनोनुकूल है
डब्बे में पड़ी अलग अलग नाप की मुस्कान से
जवाब देंहटाएंएक मुस्कान निकाल लेता है,
वाह
बहुत खूबसूरत बिम्ब-विधान। वाह!
जवाब देंहटाएंजाने कितनी जोड़ी आँखें
जवाब देंहटाएंजागती रहती हैं,
लम्बी साँसों के बीच
ज़िन्दगी को रिवाइंड करती हैं,
वाह.. खूबसूरत सृजन ।
दर्द की ऐसी अभिव्यक्ति और मुस्कान की शुगरकोटिंग... दीदी, ये आपके बस की ही बात है!
जवाब देंहटाएंजागना फिर नींद में जागना और भारी सर से उठाना ... सभी कुछ एक ही तो है मन की सोच भी एक है जो निरंतर रहती है दर्द के साथ ... दर्द है जो ख़त्म नही होता ...
जवाब देंहटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन स्वतंत्रता और रक्षा की पावनता के संयोग में छिपा है सन्देश : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
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