दिल कर रहा है,
मन की तमाम विपरीत स्थितियों से,
खुद को अपरिचित कर लूँ,
बैठ जाऊँ किसी नदी के किनारे
और पूछूं,
मछली मछली कितना पानी ।
नदी में पैर डालकर छप छप करूँ,
कागज़ की नाव में रखकर कुछ सपने
नदी में डाल दूँ,
देखती रहूँ उसकी चाल
तबतक,जबतक वह चलने का मनोबल रखे !
डूबना तो सबको है एक दिन,
कागज़ की नाव भी डूबेगी,
पर इतना प्रबल विश्वास है
कि जिस छोर भी डूबेगी,
वहाँ सपनों को एक आधार दे जाएगी ।
जी हाँ,
ज़िन्दगी एक चमत्कार है,
रहस्यों का भंडार है,
मिलिए एकांत से
- देखिए चमत्कार,
मन की विपरीत स्थितियों को मिलेगी अनुकूलता,
...मेरा यह विश्वास न कभी डगमगाया था,
न डगमगाएगा,
खुद आजमा लीजिये,
फिर कीजिये उसे साझा,
... बिना किसी बाधा के,
यह है एक सहज रास्ता। ...