04 सितंबर, 2019

माँ माँ होती है (काल्पनिक लघु कथा)




एक बार सभी देवी देवता अपने बच्चों के साथ महादेव के घर पहुँचे । विविध पकवानों की खुशबू से पूरा कैलाश सुवासित हो उठा था । अन्नपूर्णा अपने हाथों सारे व्यंजन बना रही थी ! मिष्टान्न में खीर,रसगुल्ला,गुलाबजामुन,लड्डू... इत्यादि के साथ अति स्वादिष्ट मोदक बन रहा था ।

भोजन शुरू हुआ, सभी देवी-देवता मन से सबकुछ ग्रहण कर रहे थे । बच्चों के बीच मीठे पकवान की होड़ लगी थी, अचानक माँ पार्वती अपनी जगह से उठीं, रसोई में जाकर एक डब्बे में मोदक भरकर छुपा दिया कि कहीं खत्म न हो जाए और मेरा गन्नू उदास न हो जाये !

यह माँ की आम विशेषता है, अपने बच्चे के लिए इतनी बेईमानी हो ही जाती है ।

13 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 04 सितंबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं

  2. यह माँ की आम विशेषता है, अपने बच्चे के लिए इतनी बेईमानी हो ही जाती है ।
    सचमुच कितना सुंदर लिखा आपने , माँ की याद दिला गयी। इसे बेईमानी नहीं स्नेह कहते हैं। प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं
  3. अहा माँ तो माँ होती है न फिर वो खुद भगवान् की ही माँ क्यों न हों

    जवाब देंहटाएं
  4. सच मां बच्चे को लेकर सदा स्वार्थी हो जाती है ।
    बहुत सुंदर लघुकथा।

    जवाब देंहटाएं
  5. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 5.9.19 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3449 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  6. वाह!!बहुत सुंदर !सच ही है ,माँ जैसा कोई नहीं ।

    जवाब देंहटाएं
  7. ये बेइमानी हर माँ बार-बार करती है...
    वाह!!!
    बहुत लाजवाब...

    जवाब देंहटाएं
  8. बिल्कुल सही मां ऐसी ही होती है

    जवाब देंहटाएं
  9. निश्चित ही माँ ऐसी ही होती है ।

    जवाब देंहटाएं

दौड़ जारी है...

 कोई रेस तो है सामने !!! किसके साथ ? क्यों ? कब तक ? - पता नहीं ! पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से बहुत घबराहट होती है ! प्रश्न डराता है,...