21 मार्च, 2020

जब खड्ग मैं उठाऊंगी




मैं तुमसे या कर्ण से
बिल्कुल कम नहीं रही अर्जुन,
लक्ष्य के आगे से मेरी दृष्टि
कभी विचलित नहीं हुई ...
परिस्थितियों के आगे एकलव्य की तरह
मैंने आत्मविश्वास की मूर्ति बनाई
लक्ष्य साधा,
तुमसे (अर्जुन से)अधिक प्रबल हुई
पर वहीं कर्ण की सहनशीलता अपनाकर
श्राप की हकदार हुई !
लेकिन,
युद्ध में-
मैं कभी पीछे नहीं हटी,
गांडीव नीचे नहीं रखा,
तुमको जो गीता सुनाया था कृष्ण ने,
उसे गुनती रही ।
इस गुनने का चमत्कार कहो
या कृष्ण से पूर्व जन्म का रिश्ता,
शंखनाद कृष्ण ने किया,
चक्रव्यूह भी उसीने बनाया
प्रहार भी उसने ही किया......!
पर सामने यह सच भी खड़ा था
कि रण में नहीं था कोई निहत्था
न चक्र के व्यूह में था अभिमन्यु
और दु:शासनों से भरा था कुरुक्षेत्र
लेकिन मेरा गांडीव
मेरे पास सुरक्षित है
निमित्त कह लो या कारण
मैं ही हूं
रथ पर आरूढ़
मेरे खंडित सपनों की मिट्टी
अवतार स्वयं उठा रहे
उन्हें गीला कर,
चाक पर रख
नए पात्र बना रहे
उस विराट का खुद से करार है
और मुझसे एक वायदा
कि आएगी एक रात
जब खड्ग मैं उठाऊंगी
अंतिम वार
जब मेरा होगा
तभी दूसरा सवेरा होगा।


03 मार्च, 2020

उम्मीद और हम




हँसते,
भागते,
खेलते हुए,
सुबह से दोपहर
फिर शाम,
और रात हो जाती है
बदल जाती है तारीख ।
सोचती रहती हूँ,
अभी तो हम मिले थे,
मीलों साथ चले थे,
और किसी दिन
कभी तुम
कभी मैं
गाड़ी में बैठते हुए
हाथ छूते हैं,
कुछ दूर हाथ हिलते हैं
फिर गाड़ी का शीशा बन्द
गेट से बाहर निकलने के पहले ही
हम ओझल हो जाते हैं
कुछ यादों,
कुछ अगली बार की उम्मीदों के संग ...
वे उम्मीदें हमारे लिए नाश्ता हैं,
चाय हैं, बिस्किट हैं, पाव हैं, मक्खन हैं
दिन का रात का खाना हैं
वे हमारी कहानी
हम उनका फसाना हैं
वे दिन का सुकून, रातों का आराम हैं
हम उनके, वे हमारे नाम हैं
वे हैं तो हम हैं
और हम जबतक हैं,
वे रहेंगी,
हमसे दूर होकर
वे कहां जाएंगी
हम उनकी और वे हमारी
सांसें हैं, जीने की चाह हैं
सच यही है
कि हम दोनों
एक दूजे की पनाह हैं ।
हम तो भइया
रिश्तों की,
सुनहरी तवारीख़ के,
सफे ठहरे __
ये दिन रात, बिना रुके, छुक छुक चलतीं
मासूम सी तारीखें __
हमारा क्या कर लेंगी !
उन्हें बदस्तूर चलने दो
बदलती हैं तो बदलने दो
वे अपनी जगह हैं,
और हम बाउम्मीद
अपनी जगह !
उम्मीद और हम,
हम और उम्मीद
हम उनकी होली,
वह हमारी ईद है
तभी तो
सारी दुनिया
हमारी मुरीद है ।

एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...