हँसते,
भागते,
खेलते हुए,
सुबह से दोपहर
फिर शाम,
और रात हो जाती है
बदल जाती है तारीख ।
सोचती रहती हूँ,
अभी तो हम मिले थे,
मीलों साथ चले थे,
और किसी दिन
कभी तुम
कभी मैं
गाड़ी में बैठते हुए
हाथ छूते हैं,
कुछ दूर हाथ हिलते हैं
फिर गाड़ी का शीशा बन्द
गेट से बाहर निकलने के पहले ही
हम ओझल हो जाते हैं
कुछ यादों,
कुछ अगली बार की उम्मीदों के संग ...
वे उम्मीदें हमारे लिए नाश्ता हैं,
चाय हैं, बिस्किट हैं, पाव हैं, मक्खन हैं
दिन का रात का खाना हैं
वे हमारी कहानी
हम उनका फसाना हैं
वे दिन का सुकून, रातों का आराम हैं
हम उनके, वे हमारे नाम हैं
वे हैं तो हम हैं
और हम जबतक हैं,
वे रहेंगी,
हमसे दूर होकर
वे कहां जाएंगी
हम उनकी और वे हमारी
सांसें हैं, जीने की चाह हैं
सच यही है
कि हम दोनों
एक दूजे की पनाह हैं ।
हम तो भइया
रिश्तों की,
सुनहरी तवारीख़ के,
सफे ठहरे __
ये दिन रात, बिना रुके, छुक छुक चलतीं
मासूम सी तारीखें __
हमारा क्या कर लेंगी !
उन्हें बदस्तूर चलने दो
बदलती हैं तो बदलने दो
वे अपनी जगह हैं,
और हम बाउम्मीद
अपनी जगह !
उम्मीद और हम,
हम और उम्मीद
हम उनकी होली,
वह हमारी ईद है
तभी तो
सारी दुनिया
हमारी मुरीद है ।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 4 मार्च 2020 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर( 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-१ हेतु नामित की गयी है। )
जवाब देंहटाएं'बुधवार' ०४ मार्च २०२० को साप्ताहिक 'बुधवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'
उम्मीद है तभी तभी जीते हैं
जवाब देंहटाएंवाह!!!
बहुत लाजवाब।
बहुत खूब 🌹
जवाब देंहटाएंहम बाउम्मीद अपनी जगह ... बहुत सुंदर सकारात्मक भाव
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति :)
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों बाद आना हुआ ब्लॉग पर प्रणाम स्वीकार करें
रचना अच्छी लगी ।
जवाब देंहटाएंआप तो कलम की धनी ,अति उत्तम रचना ,
जवाब देंहटाएंउम्मीदों से ही तो हम हैं । बहुत सुंदर दी
जवाब देंहटाएंऔर हम आपके मुरीद है दी....♥️ क्योंकि उम्मीद पर दुनिया कायम है।
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