मैं तुमसे या कर्ण से
बिल्कुल कम नहीं रही अर्जुन,
लक्ष्य के आगे से मेरी दृष्टि
कभी विचलित नहीं हुई ...
परिस्थितियों के आगे एकलव्य की तरह
मैंने आत्मविश्वास की मूर्ति बनाई
लक्ष्य साधा,
तुमसे (अर्जुन से)अधिक प्रबल हुई
पर वहीं कर्ण की सहनशीलता अपनाकर
श्राप की हकदार हुई !
लेकिन,
युद्ध में-
मैं कभी पीछे नहीं हटी,
गांडीव नीचे नहीं रखा,
तुमको जो गीता सुनाया था कृष्ण ने,
उसे गुनती रही ।
इस गुनने का चमत्कार कहो
या कृष्ण से पूर्व जन्म का रिश्ता,
शंखनाद कृष्ण ने किया,
चक्रव्यूह भी उसीने बनाया
प्रहार भी उसने ही किया......!
पर सामने यह सच भी खड़ा था
कि रण में नहीं था कोई निहत्था
न चक्र के व्यूह में था अभिमन्यु
और दु:शासनों से भरा था कुरुक्षेत्र
लेकिन मेरा गांडीव
मेरे पास सुरक्षित है
निमित्त कह लो या कारण
मैं ही हूं
रथ पर आरूढ़
मेरे खंडित सपनों की मिट्टी
अवतार स्वयं उठा रहे
उन्हें गीला कर,
चाक पर रख
नए पात्र बना रहे
उस विराट का खुद से करार है
और मुझसे एक वायदा
कि आएगी एक रात
जब खड्ग मैं उठाऊंगी
अंतिम वार
जब मेरा होगा
तभी दूसरा सवेरा होगा।
वाह! बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर जागरण।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंउम्मींदें बनी रहें इसी तरह। सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंउस सवेरे की प्रतीक्षा काल को भी है, सुंदर सृजन !
जवाब देंहटाएंबहुत ही लाजवाब ओजस्वी रचना ...
जवाब देंहटाएंउस सवेरे की ओरातिस्खा मानव जाती को है ...
बेहतरीन रचना रश्मि जी ,नमस्कार
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